Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
साक्षात्कार | हमने पत्रकारिता के उसूलों की हिफाजत की

हमने पत्रकारिता के उसूलों की हिफाजत की

Share this article Share this article
published Published on May 1, 2012   modified Modified on May 1, 2012

बोफोर्स कांड अब एक ऐसा नासूर बन गया है, जो रह-रहकर रिस उठता है। स्वीडन के पूर्व पुलिस प्रमुख स्टेन लिंडस्ट्रॉम ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कुछ नई बातें कही हैं, जिनसे यह मामला फिर सुर्खियों में आ गया है। बोफोर्स सौदे में शीर्ष स्तर पर हुए भ्रष्टाचार का जो खुलासा हुआ, उसमें द हिंदू अखबार के पूर्व प्रधान संपादक एन राम का किरदार काफी अहम था। एन राम से उस खबर की तफ्तीश और विवादों के बारे में निखिल कनकल ने बात की। प्रस्तुत हैं, उसके कुछ अंश-( दैनिक हिन्दुस्तान से साभार)

 

जब आप और चित्र सुब्रमण्यम बोफोर्स पर खबरें लिख रहे थे, उस वक्त द हिंदू के भीतर क्या कुछ चल रहा था?


बोफोर्स कांड की हमारी पूरी छानबीन काफी जटिल और लंबी थी- तथ्यों को जुटाना, उनसे संबंधित जरूरी कागजात हासिल करना, फिर उनके बीच के संबंधों की पड़ताल करना, नतीजे निकालना, दस्तावेजों का प्रकाशन, और फिर कई-कई पन्नों पर व हजारों शब्दों के उनसे जुड़े विश्लेषणों का प्रकाशन एक असामान्य कवायद थी। इसकी प्रकिया अप्रैल 1987 में ही शुरू हो गई थी, जब स्वीडिश पब्लिक रेडियो ने एक विस्फोटक रिपोर्ट प्रसारित की कि बोफोर्स सौदे में कथित तौर पर कुछ शीर्ष राजनेताओं, फौजी अफसरों और अन्य लोगों को रिश्वत दी गई थी। अक्तूबर 1989 में हमारी रिपोर्ट मुकम्मल हो गई थी। हम जुटे रहे, अपना धैर्य नहीं खोया। हम बिल्कुल तटस्थ थे। वह एक टीम वर्क था, न कि किसी एक पत्रकार का। चित्र सुब्रमण्यम उस वक्त जेनेवा में हमारी स्ट्रिंगर थीं और वह अप्रैल 1988 में एक अधिकृत स्त्रोत साबित हुईं, मनोज जोशी रक्षा से संबंधित मामलों के जानकार थे, मालिनी पार्थसारथी ने बोफोर्स मामले की जांच करने वाली संयुक्त संसदीय समिति के एक सदस्य से खास जानकारियां हासिल की थीं, जिनसे हमें खबरों को तैयार करने में जबर्दस्त मदद मिली। फिर स्टाफ से बाहर के लोगों में वी के रामचंद्रन और हेलसिंकी के एक अर्थशास्त्री ने भी मदद की थी। उन साहब ने स्वीडिश प्रधानमंत्री को बेनकाब करते हुए एक अद्भुत इंटरव्यू किया था। संपादक कस्तूरीजी भी इस खबर के परत-दर-परत प्रकाशन में बढ़-चढ़कर शामिल थे। न्यूज एडीटर के नारायणन ने ले-आउट तैयार किया था और दस्तावेजों के प्रकाशन की रूपरेखा तैयार की थी। हां, कुछ भीतरी मतभेद थे, जो 1989 के आखिरी दिनों में नाटकीय हो गया, लेकिन जब मैं आज उन अनुभवों के बारे में सोचता हूं, तो हैरत होती है कि किस तरह संपादक से लेकर नीचे तक सभी पत्रकारिता की दिशा बदलने वाली उस जांच में एक साथ अडिग खड़े थे। मैं सोचता हूं कि वह पत्रकारिता ही नहीं, बल्कि राजनीति का रुख भी मोड़ने वाला  था। 

स्टेन लिंडस्ट्रॉम ने अपने ताजा इंटरव्यू में कहा है कि उन्होंने जिसे बोफोर्स कांड से जुड़े कागजात सौंपे, उनमें से ही किसी ने उनके नाम को लीक कर दिया था?


मैं स्त्रोत के बारे में न तो कोई खंडन करूंगा और न ही पुष्टि करूंगा। पत्रकारिता के उसूलों को देखते हुए और उनका सम्मान करते हुए हमारे लिए तब भी स्त्रोत की गोपनीयता महत्वपूर्ण थी और आज भी है। अखबार में चंद जरूरी लोगों के अलावा किसी ने मुझसे अधिकृत स्त्रोत के बारे में कभी नहीं पूछा, न तो तत्कालीन सीबीआई प्रमुख मोहन कत्रे ने, न तब के रक्षा मंत्री के सी पंत ने, न ही राजीव गांधी ने ही 1988 के मध्य में हुई हमारी मुलाकात के दौरान मुझसे स्रोत के बारे में जानने की कोशिश की। अलबत्ता, हमने हमेशा इस बात को साफ रखा कि हमें जो दस्तावेज मिले हैं, उन्हें स्वीडन के एक बेहद जिम्मेदार स्त्रोत ने हमें उपलब्ध कराए हैं। और इतना उल्लेख करने के लिए हमने बाकायदा स्त्रोत से इजाजत ली थी। मैं किसी कथित अफवाह का जवाब नहीं दूंगा, क्योंकि मुझे तो उस वक्त ऐसी कोई अफवाह सुनने को नहीं मिली और यदि थी भी, तो उसे हमने नहीं जन्म दिया था।

आपमें और लिंडस्ट्रॉम में खबर प्रकाशन के समय को लेकर कोई मतभेद था?


हमारी खोजबीन के दौरान एक बार भी हमारे स्त्रोत ने खबर के प्रकाशन के समय को लेकर कोई असहमति नहीं जताई थी। सच्चाई यह है कि स्वीडन का हमारा अधिकृत स्त्रोत एक बार में पूरा दस्तावेज हमारे हवाले करने को तैयार ही नहीं था। उसके साथ समझौते की प्रक्रिया में ही डेढ़ साल लग गए। न जाने किन वजहों से, लेकिन हमारे उस स्त्रोत ने 18 महीनों में हमें किस्तों में सुबूत उपलब्ध कराए। जहां तक खबर को काफी समय तक रोके रखने और अपनी इच्छा से उसे प्रकाशित करने का आरोप है, तो ऐसा करने का सवाल ही नहीं उठता था। हम इतने बेवकूफ नहीं थे कि बगैर किसी वजह के खबर को रोककर रखते और कोई अन्य उसे उड़ा ले जाता! एक ऐसी खबर में, जिसमें अखबार की साख और लोगों की प्रतिष्ठा दांव पर हो, यह जरूरी था कि खबर के सभी पहलू की बारीकी से जांच हो, हमने वैसा ही किया। बहरहाल, मैं अपने स्त्रोत के बारे में इतना ही कह सकता हूं कि उसने जो किया, उसके लिए अपार नैतिक बल की जरूरत होती है। मैं उसके साहस का कायल हूं कि उसने बगैर किसी स्वार्थ के इतने खास दस्तावेज हमें उपलब्ध कराए।

बोफोर्स से जुड़ी खबर करते हुए या बाद में क्या आप में और चित्र सुब्रमण्यम में कोई प्रोफेशनल मतभेद था?


बिल्कुल नहीं, जब तक हम द हिंदू में बोफोर्स के लिए खबरें करते रहे, यानी 1988 के शुरुआती दिनों से 9 अक्तूबर, 1989 तक हमारे बीच कोई प्रोफेशनल मतभेद नहीं था। हां, उनके कुछ दावे मुझे उस समय पढ़ने को मिले, जब उन्होंने द हिंदू से इस्तीफा दे दिया था और सक्रिय पत्रकारिता का करियर छोड़ दिया था। अब उन दावों के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना। मैं बस इतना ही कहूंगा कि बोफोर्स कांड की खोजबीन में जुटी द हिंदू की टीम में चित्र ने लाजवाब योगदान दिया था और इस बेहतरीन पत्रकारिता को बी डी गोयनका अवॉर्ड के रूप में पहचान भी मिली, जिसे चित्र ने 1990 में मेरे साथ साझा किया था।


http://www.livehindustan.com/news/editorial/rubaru/article1-story-57-61-230288.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close