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चर्चा में.... | आवास-नीति मे बदलाव की जरुरत- नई रिपोर्ट

आवास-नीति मे बदलाव की जरुरत- नई रिपोर्ट

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published Published on Jan 16, 2014   modified Modified on Jan 16, 2014

एक अरसे से आशंका जतायी जा रही है कि देश में सस्ती कीमत के आवास की मांग तेजी से बढ़ी है लेकिन इस जरुरत की पूर्ति के मामले में कुछ खास प्रगति नहीं हो पा रही। राष्ट्रीय आवास बैंक की एक नई रिपोर्ट के तथ्य और आंकड़े इस आशंका की पुष्टि करते हैं।(देखें नीचे दी गई लिंक पर पूरी रिपोर्ट)

रिपोर्ट के अनुसार भारत के शहरी क्षेत्र में 1 करोड़ 80 लाख 78 हजार आवास इकाइयों की जरुरत है। इसमें डेढ़ करोड़ इकाइयां फिलवक्त मौजूद हैं लेकिन इन इकाइयों की हालत ऐसी नहीं कि उनमें रहने योग्य कहा जा सके। (गौरतलब है कि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण द्वारा हाल ही में जारी की इंडीकेटर्स ऑव अर्बन स्लमस् इन इंडिया-जुलाई 2012 से दिसंबर 2012- 69 वां दौर, के अनुसार देश के शहरी इलाकों में तकरीबन साढ़े तैंतीस हजार झुग्गी-बस्तियां हैं और इन बस्तियों में 80 लाख से ज्यादा(8.8 मिलियन) परिवार रहते हैं। तकरीबन 32 फीसदी झुग्गी-बस्तियों का संपर्क मार्ग बारिश के दिनों में पानी जमा होने के कारण अवरुद्ध हो जाता है ।अखिल भारतीय स्तर पर देखें तो 31 फीसदी झुग्गी बस्तियों में शौचालय की सुविधा नहीं है और 31 फीसदी झुग्गी-बस्तियां मलजल की निकासी की सुविधा से वंचित हैं।)
 
द रिपोर्ट ऑन ट्रेन्ड एंड प्रोगेस ऑन हाऊसिंग इन इंडिया 2013 नामक इस रिपोर्ट में भारत में आवासन की स्थिति और उसकी चुनौतियों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में आवास-ऋण जीडीपी के 9 फीसदी के हिस्से के बराबर है। यह विकसित देशों की तुलना में कम है फिर भी स्थिति में सुधार की काफी गुंजाइश है।

नवीनतम जनगणना(2011) के आंकड़ों के अनुसार भारत में 37.1 फीसदी परिवार एक कमरे के मकान में रहते हैं जबकि 2.8 फीसदी परिवार 6 या इससे अधिक कमरों के मकान में रहते हैं। देश के 15.1 फीसदी परिवारों के घर की छत घास-फूस, बांस-बल्ली-मिट्टी इत्यादि से बना हुआ है। देश के 9 फीसदी परिवार ऐसे मकानों में रहते हैं जिनकी दीवार कच्ची(घास-फूस, बांस इत्यादि की बनी हुई) है। 17.6 फीसदी परिवारों के मकान में पेयजल की सुविधा नहीं है और देश के 0.5 फीसदी परिवार अंधेरे में रहते हैं।

रिपोर्ट में सिफारिश के तौर पर केंद्र और राज्य स्तर पर समुचित नीतिगत हस्तक्षेप की बात कहते हुए वित्त-व्यवस्था और तकनीक के मामले में नये प्रयोग करने तथा लचीला रुख अपनाने की जरुरत पर ध्यान दिलाया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में आवासन की कमी का एक बड़ा कारण कम आमदनी वाले परिवारों को संस्थागत और औपचारिक रीति से ऋण का ना मिलना है।

रिपोर्ट में सस्ती कीमत के आवास उपलब्ध कराने के रास्ते में आने वाली रुकावटों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि एक तो आवास-निर्माण की जमीन की कीमत बहुत ऊंची है, दूसरे आवास-निर्माण संबंधी नियम भी बहुत पुराने और आज की जरुरत के हिसाब से बेमेल हैं। रिपोर्ट के अनुसार आवास-परियोजना की मंजूरी में बहुधा देरी होती है और ऋण-प्राप्ति के प्रावधान कंस्ट्रक्शन एजेंसियों के अनुकूल नहीं हैं

इस कथा के विस्तार के लिए देखें निम्नलिखित लिंक-

Report on Trend and Progress of Housing in India 2013 by National Housing Bank
http://www.nhb.org.in/Publications/Progress-report-2013-EN
GLISH.pdf

Report on Trend and Progress of Housing in India (previous years),
http://www.nhb.org.in/Publications/trends.php

Houselisting and Housing Census Data Highlights-2011,
http://www.censusindia.gov.in/2011census/hlo/hlo_highlights.html

Key Indicators of Urban Slums in India (July 2012 to December 2012), National Sample Survey 69th Round,
http://www.im4change.org/latest-news-updates/key-indicator
s-of-urban-slums-in-india-23741.html

http://www.im4change.org/siteadmin/http://www.im4change.or
ghttps://im4change.in/siteadmin/tinymce///uploaded/NSS%2
069th%20Round%20Slum%2 0Survey.pdf

Housing Shortages in Rural India-Shamsher Singh, Madhura Swaminathan, and VK Ramachandran, Review of Agrarian Studies, Volume 3, Number 2 (July-December, 2013),

http://www.ras.org.in/housing_shortages_in_rural_india

 

 



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