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चर्चा में.... | छह राज्यों की साठ फीसद किशोरियों ने कहा- हां, बाहर जाने में लगता है डर..!
छह राज्यों की साठ फीसद किशोरियों ने कहा- हां, बाहर जाने में लगता है डर..!

छह राज्यों की साठ फीसद किशोरियों ने कहा- हां, बाहर जाने में लगता है डर..!

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published Published on Jul 25, 2018   modified Modified on Jul 25, 2018
क्या आप मानते हैं कि ‘भारत महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक' देश है जैसा कि एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने हाल में जनमत सर्वेक्षण के आधार पर कहा था ? या आपको लगता है कि ऐसा कहना किसी ‘देश को बदनाम' करने की कोशिश है, जैसा कि भारत सरकार ने कहा ?
 

अपना जवाब तय करने से पहले खूब गौर से सोचिए क्योंकि एक नई रिपोर्ट आयी है, इस बार देश के भीतर से ही आयी है और इस नई रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि देश की ज्यादातर किशोरियां घर से बाहर की दुनिया को अपने लिए असुरक्षित मानती हैं. उन्हें स्कूल और बाजार जाने में ही नहीं बल्कि सार्वजनिक शौचालयों तक के इस्तेमाल में डर लगता है !

 

किशोर उम्र की लड़कियों के मन में घर से बाहर की दुनिया के लिए मौजूद भय-भावना की बात करने वाली इस नई रिपोर्ट का नाम है- ‘वर्ल्ड ऑफ इंडियन गर्ल्स: ए स्टडी ऑन द परसेप्शन ऑफ गर्ल्स सेफ्टी इन पब्लिक स्पेसेज'. ‘सेव द चिल्ड्रेन' की यह रिपोर्ट देश के छह राज्यों- असम, दिल्ली, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में हुए नमूना सर्वेक्षण पर आधारित है.

 

डर की वजह

 

रिपोर्ट के मुताबिक सर्वेक्षण में शामिल एक चौथाई किशोरियों को आशंका थी कि घर से बाहर की जगहों पर जाने पर उनके साथ अगवा या बलात्कार जैसे वारदात पेश आ सकते हैं, एक तिहाई किशोरियों का मानना था कि घर से बाहर निकलने पर कोई ना कोई उन्हें बदनीयती से छुएगा या उनका पीछा करेगा. शहरी और ग्रामीण दोनों ही जगहों पर सर्वेक्षण में शामिल 60 फीसद से ज्यादा लड़कियों ने कहा कि सार्वजनिक जगहों पर उन्हें डर सताता है कि कोई ना कोई उनके ऊपर गंदे कमेंट करेगा.

 

इन आशंकाओं के पेशेनजर किशोर उम्र की साठ फीसद लड़कियों को भीड़ भरी जगहों पर होना सुरक्षित नहीं लगता. एक तिहाई लड़कियों को अपने आसपास के गली-चौबारों और स्कूल तथा बाजार ले जाने वाली सड़क पर जाने में डर लगता है. ग्रामीण इलाकों में एक चौथाई लड़कियों का मानना है कि खेत, मैदान या शौच की सार्वजनिक जगहों पर जाना उनके लिए सुरक्षित नहीं है.

 

बस या ट्रेन की सवारी सबसे असुरक्षित

 

रिपोर्ट के मुताबिक कहीं आने जाने के लिए बस, ट्रेन और मेट्रो की सवारी को लेकर किशोर उम्र की लड़कियों के मन में भय भावना ज्यादा है, उन्हें लगता है सार्वजनिक इस्तेमाल की इन सवारियों पर उनके साथ यौन-दुर्व्यवहार हो सकता है. शहरी इलाकों में 47 फीसद तथा ग्रामीण इलाकों में 40 फीसद किशोरियों को लगता है कि सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल उनके लिए निरापद नहीं. सड़क, बाजार या सार्वजनिक वाहन के मुकाबले स्कूल और कॉलेज को किशोरियों ने अपने लिए कहीं ज्यादा सुरक्षित करार दिया.

 

घर सबसे सुरक्षित

 

सर्वेक्षण में शामिल 90 फीसद से ज्यादा(ग्रामीण इलाकों में 96 प्रतिशत तथा शहरी इलाकों में 91 प्रतिशत) किशोरियों का मानना था कि घर या फिर माता-पिता के पास होना उनके लिए सबसे ज्यादा निरापद है जबकि लगभग 20 प्रतिशत(शहरी इलाके में 19 प्रतिशत और ग्रामीण अंचल में 20 प्रतिशत) किशोरियों ने स्थानीय पुलिस की देखरेख में होने को सबसे निरापद माना. पुलिस की तुलना में शिक्षा संस्थानों में शिक्षकों तथा हमजोलियों के साथ होने को सबसे निरापद बताने वाली किशोरियों की तादाद ज्यादा(शहरों में 29 प्रतिशत तथा ग्रामीण अंचलों में 25 प्रतिशत) ज्यादा थी.

 

किशोरियों ने क्यों बताया घर को सबसे ज्यादा सुरक्षित ?

 

सेव द चिल्ड्रेन के सर्वेक्षण में शामिल ज्यादातर किशोरियों का भले ही मानना हो कि घर उनके लिए सबसे ज्यादा सुरक्षित है लेकिन सर्वेक्षण के कुछ अन्य तथ्यों से एक अलग तस्वीर उभरती है.

 

रिपोर्ट का एक तथ्य यह भी है कि घर से बाहर अगर किशोरी के साथ कोई दुर्व्यवहार होता है तो माता-पिता इसका दोष किशोरी पर ही मढ़ते हैं. सेव द चिल्ड्रेन के सर्वेक्षण में शामिल लगभग 50 फीसद अभिभावकों का मानना था कि दुर्व्यवहार की स्थिति में वे बेटी को ही डांटेंगे, 42 प्रतिशत अभिभावकों का कहना था कि बेटी के साथ दुर्व्यवहार की जानकारी मिलने पर उसके बाहर आने-जाने पर वे निगरानी रखेंगे यानि तय करेंगे कि बेटी कहां जाये, कब जाये और अकेले जाय या हिफाजत के लिहाज से किसी को साथ लेकर जाय.

 

अभिभावकों इस सोच का असर किशोर उम्र की लड़कियों पर भी दिखता है. सर्वेक्षण में शामिल 40 फीसद लड़कियों का कहना था कि दुर्व्यवहार की बात जानने पर मां-बाप उनका घर से निकलना बंद कर देंगे, सो वे अपने साथ हुए दुर्व्यवहार की जानकारी मां-बाप को नहीं देंगी. तकरीबन 60 फीसद किशोरियों का मानना था कि अभिभावक हिफाजत के नाम पर दरअसल उनकी निगरानी किया करते हैं.

 

बाहर हुए दुर्व्यवहार का दोष किशोरी को दिया जाय, उसपर निगरानी रखी जाय और कई मामलों में घर से बाहर निकलने पर पाबंदी आयद कर दी जाय- अगर घर का माहौल ऐसा है तो फिर ज्यादातर किशोरियां घर ही को सबसे ज्यादा सुरक्षित क्यों मानती हैं ?

 

सवाल का एक संभावित उत्तर राष्ट्रीय बाल अधिकार सुरक्षा आयोग(एनसीपीसीआर) के एक तथ्य में छुपा हो सकता है ? एनसीपीसीआर की हाल की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 15-18 साल की उम्र की 39.4 फीसद किशोरियां स्कूल या कॉलेज की शिक्षा से वंचित हैं और इन किशोरियों में 64.8 फीसद लड़कियां ऐसी हैं जो आमदनी वाला काम नहीं करतीं यानि ये लड़कियां या तो घरेलू कामकाज में लगी हैं, जीवन-यापन के लिए परिवार पर निर्भर हैं या फिर उनका जीवन दान की रकम के सहारे चल रहा है.

 

इस न्यूज एलर्ट के आखिर में एक सवाल -- घर को सबसे ज्यादा सुरक्षित बताने की और भी वजहें हो सकती हैं, आपको ऐसी कौन सी वजह सबसे महत्वपूर्ण लगती है ?

 



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