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चर्चा में.... | 20 साल में 60% एक्वीफर हो जायेंगे खाली फिर कैसे मिलेगा हर खेत को पानी ?
20 साल में 60% एक्वीफर हो जायेंगे खाली फिर कैसे मिलेगा हर खेत को पानी ?

20 साल में 60% एक्वीफर हो जायेंगे खाली फिर कैसे मिलेगा हर खेत को पानी ?

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published Published on Aug 28, 2018   modified Modified on Aug 28, 2018
हर खेत को पानी मिले, बेशक यह सोच नेक है लेकिन इस नेक सोच को एक कारगर नीति में कैसे बदलें ? राजधानी दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सभागार में बीते 27 अगस्त को आयोजित नेशनल वाटर कांफ्रेंस में इस मसले पर कई जरुरी सवाल सामने आये.
 

केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, योजना आयोग के पूर्व सदस्य मिहिर शाह, केंद्रीय जल आयोग तथा नीति आयोग के सदस्यों समेत देश की जल-नीति से जुड़े कई प्रमुख संगठनों की भागीदारी वाले इस सम्मेलन में एक सवाल उठा कि :

 

खेती को हासिल सिंचाई के कुल पानी का 60 फीसद हिस्सा सिर्फ धान और गन्ना की फसल उपजाने में खर्च होता है, सो बाकी की फसलों के लिए पानी बहुत कम बचता है. क्या धान और गन्ने की फसल पर निर्भरता कम किये बगैर हर खेत को पानी पहुंचाया जा सकता है ?

 

देश के निजी क्षेत्र के अग्रणी विश्वविद्यालयों में शुमार शिव नडार यूनिवर्सिटी के द्वारा आयोजित सम्मेलन में दूसरा अहम सवाल था कि:

 

देश में खेती के लायक 200.8 मिलियन हेक्टेयर जमीन है लेकिन फिलहाल खेती की 95.8 मिलियन हेक्टेयर यानि 48 फीसद जमीन पर ही सिंचाई की व्यवस्था हो पायी है. लेकिन एक तथ्य यह भी है कि देश में ताजे पानी का 78 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ खेती में इस्तेमाल होता है और पानी की बढ़ती मांग को ध्यान में रखें तो केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक 2050 तक खेती में इस्तेमाल के लिए ताजे पानी का बस 68 फीसद हिस्सा ही बचेगा. फिर कम पानी से ज्यादा ज्यादा खेतों तक सिंचाई की सुविधा कैसे हो पायेगी ?

 

सम्मेलन का तीसरा अहम सवाल भूजल को बढ़ते उपयोग से जुड़ा था. सिंचाई की सुविधा वाली 60 फीसद खेतिहर जमीन और पेयजल-आपूर्ति का 85 प्रतिशत हिस्सा फिलहाल भूगर्भी पानी के भरोसे है. विश्वबैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सालाना 230 घन किलोमीटर भूर्गभी पानी का इस्तेमाल होता है जो भूगर्भी पानी के वैश्विक इस्तेमाल का 25 प्रतिशत है और भूर्गभी जल के इस्तेमाल की यह रफ्तार जारी रही तो 2030 तक भारत के 60 प्रतिशत एक्विफर(भूगर्भी जलभंडार) नाजुक हालत में आ जायेंगे. जल-नीति के सम्मेलन में वक्ता और भागीदार इस सवाल से जूझते नजर आये कि क्या भूमिगत जल पर निर्भरता बनाये रखते हुए हर खेत को पानी पहुंचाना संभव है ?

 

मसले पर सम्मेलन में सरकार का पक्ष रखते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि ‘कई राज्य पानी की कमी से जूझ रहे हैं और उनके बीच पानी के बंटवारे को लेकर अदालती झगड़े चल रहे हैं लेकिन कोई कारगर समाधान अभी नहीं निकल पाया है. नदियों को आपस में जोड़ना समस्या के समाधान का एक विकल्प हो सकता है. नदियों की जल-संभरण क्षमता पर भी ध्यान देने की जरुरत है ताकि बाढ़ की समस्या कम की जा सके, साथ ही सुनिश्चित करना होगा कि मॉनसून के दौरान हासिल अतिरिक्त पानी नदियों के जरिए समुद्र में गिरकर व्यर्थ ना हो.'

 

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि हमें भूगर्भीय जल के संरक्षण के लिए तकनीकी के इस्तेमाल सहित तमाम विकल्पों पर विचार करने होंगे और सरकार इस काम में रचनात्मक भूमिका निभायेगी.

 

शिव नडार यूनिवर्सिटी में विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर तथा योजना आयोग के पूर्व सदस्य मिहिर शाह ने सम्मेलन में अपने बीज-वक्तव्य के दौरान कहा कि देश के जल-संकट से निबटारे के प्रयासों में समस्या से जुड़े सभी पक्ष की बात सुनी जानी चाहिए और समस्या का हल समावेशी संवाद के सहारे ढूंढ़ा जाना चाहिए.

 

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21वीं सदी की जरुरतों के पेशेनजर देश में जल-प्रबंधन का कारगर ढांचा तैयार करने के मसले पर यूपीए सरकार के दौरान एक रिपोर्ट पेश कर चुके मिहिर शाह का कहना था ‘सरकार के नुमाइंदे, नागरिक संगठन, शोध-संस्थाओं के विद्वत जन तथा जल-संकट से प्रभावित समुदायों को आपस में मिल-बैठकर रचनात्मक संवाद के जरिए समाधान तलाशने के प्रयास करने होंगे. इससे जल-प्रबंधन की रीति-नीति को एक नई दिशा मिलेगी और यही आज के वक्त की जरुरत है.'

 

गौरतलब है कि दो साल पहले बनी मिहिर शाह समिति ने अपनी रिपोर्ट में केंद्रीय जल आयोग तथा केंद्रीय भूजल बोर्ड जैसी संस्थाओं के नये सिरे से पुनर्गठन की जरुरत पर बल देते हुए कहा था कि इक्कीसवीं सदी के भारत की जरुरतों के मद्देनजर सिंचाई के साधनों के निर्माण से ज्यादा ध्यान मौजूदा सिंचाई-ढांचे के प्रबंधन और रख-रखाव पर दिया जाना चाहिए.

 

रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि गुजरात और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में किसानों को कमान-एरिया के प्रबंधन में शामिल किया जाय. सिंचाई के प्रबंधन में किसानों के शामिल करने से रिपोर्ट के मुताबिक ‘हर खेत को पानी' का सपना साकार किया जा सकेगा और पानी के इस्तेमाल में तकरीबन 20 फीसद की बचत होगी.

 

रिपोर्ट का सुझाव है राज्यों को सिंचाई के उसी ढांचे पर अपना ध्यान लगाना चाहिए जिनकी साज-संभार या निर्माण तकनीकी या आर्थिक रुप से बहुत जटिल है. मिसाल के लिए, बांध और उससे लगी मुख्य नहर और इन्हें जारी रखने वाली मुख्य संरचनाओं तक राज्यों को अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए. सिंचाई का इसके बाद का तीसरे स्तर का ढांचा वाटर यूजर्स एसोसिएशन बनाकर किसानों को सौप दिया जाना चाहिए.

 

रिपोर्ट में ध्यान दिलाया गया है पानी को लेकर अबतक हमारा नजरिया सरकारी खर्चे से ऊपर-ऊपर एक विशाल ढांचा खड़ा करने का रहा है. नौकरशाही के भारी ताम-झाम में तकनीक के विशेषज्ञ और इंजीनियरों को शामिल करके जरुरत की जगह पर पानी पहुंचाने की इस रीत से हटकर पानी के प्रबंधन का जन-केंद्रित नजरिया अपनाना होगा जिसमें जोर नदियों और जलागारों के नये सिरे से पुनर्जीवित करने पर हो. ऐसा करके ही देश के नागरिकों को पानी के उपयोग के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है और सूखे से बचने के इंतजाम किए जा सकते हैं.

 

Image Courtesy: cohn&wolfe | 6 Degrees, Shiv Nadar University and Inclusive Media for Change



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