Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
चर्चा में.... | भारत की शिक्षा व्यवस्था पर 'असर' ने क्या असर डाला ?
भारत की शिक्षा व्यवस्था पर 'असर' ने क्या असर डाला ?

भारत की शिक्षा व्यवस्था पर 'असर' ने क्या असर डाला ?

Share this article Share this article
published Published on Jan 16, 2024   modified Modified on Jan 17, 2024

औपचारिक शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए अधिकांश अभिभावक-गण अपने बच्चों को स्कूल भेजना चाहते हैं। बच्चों के लिए स्कूल ढूँढते हैं, बस्ता खरीदते हैं, पेन- पेन्सिल, कॉपी-किताब खरीदते हैं, स्कूल की पोशाक खरीदते हैं। तमाम सरकारों की भी यही कोशिश रही कि बच्चे स्कूल जाएँ। सरकारों ने विद्यालयों का निर्माण करवाया, शिक्षकों की नियुक्ति की और ज़रूरी सुविधाएँ उपलब्ध करवाई। पिछले कई दशकों में ऐसे कई कदम उठाए गए जिसका नतीजा नामांकन दर में आये बदलाव के रूप में देखा जा सकता है। आज भारत में नामांकन दर कई देशों की तुलना में उच्च है। वर्ष 2021-22 में, आयु वर्ग 6 से 10 वर्ष के बच्चों की नामांकन दर 99.1 प्रतिशत रही।

लेकिन, क्या सिर्फ़ नामांकन दर का उच्च हो जाना ही काफ़ी है ? क्या किसी प्रदेश में नामांकन दर का उच्च हो जाना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की निशानी है ? स्कूल में विद्यार्थी कितना सीख पा रहे हैं इसके मूल्यांकन के लिए कोई तंत्र मौजद है ? 

स्कूल की इमारत सबको दिखती है, स्कूल जाते हुए बच्चे सबको दिखते हैं और पढ़ाने के लिये जाते हुए कर्मचारी दिखते हैं। लेकिन, बच्चे क्या सीख पा रहे हैं, यह किसी को नहीं दिखता। क्योंकि वो चारदीवारी के भीतर होता है। स्कूल जाते हुए बच्चों को देख यह मान लिया जाता है कि फलाना बच्चा पढ़ता है। लेकिन, कितना सीख पा रहा है इसकी जानकारी किसके पास है ? स्कूल जाना और वहाँ से संबधित कक्षा के स्तर का सीख पाना दोनों अलग बातें हैं। 
आज़ादी के बाद के कई दशकों तक तमाम सरकारों का पूरा ध्यान नामांकन दर को बेहतर करने पर केंद्रित रहा। अच्छी नामांकन दर का होना भी जरूरी है लेकिन, केवल उच्च नामांकन दर का होना काफ़ी नहीं है। विद्यार्थी वाकई कुछ सीख पा रहे हैं (लर्निंग आउटकम) या नहीं इसकी जानकारी का होना अति आवश्यक है।

 

 

'असर' की शुरुआत
वर्ष 2004 तक भारत सार्वभौमिक प्राथमिक विद्यालय नामांकन हासिल करने की दिशा में अग्रसर था। लेकिन, नामांकन से इतर सीखने के पहलु पर काम करना ज़रूरी था। इस मसले पर काम करने की पहल 'प्रथम' नामक एनजीओ ने की। प्रथम ने वर्ष 2005 में पहली ‘असर’ रिपोर्ट जारी की।

क्या है ‘असर’ रिपोर्ट 
असर (ASER) का अर्थ है—- ऐन्युअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट। इसे गाँव की शैक्षणिक रिपोर्ट कह सकते हैं। ग्रामीण भारत के बच्चे जो विद्यालयों में नामांकित हैं वो क्या सीख रहे हैं, का आकलन किया जाता है। यह रिपोर्ट वर्ष 2005 से वर्ष 2014 तक प्रतिवर्ष जारी की गई। वर्ष 2018 से यह रिपोर्ट दो वर्ष के अन्तराल पर जारी की जा रही है। इस रिपोर्ट के लिए एक सर्वेक्षण किया जाता है। सर्वेक्षण में ग्रामीण भारत के 3 से 16 वर्षीय बच्चों की स्कूली शिक्षा की स्थिति और 5-16 वर्षीय बच्चों की बुनियादी पढ़ने और गणित की समझ पर राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर के आँकड़े तैयार किये जाते हैं।

 
 2005 की रिपोर्ट में 489 जिलों के करीब 9,593 गाँवों को शामिल किया था। हालाँकि वर्ष 2022 तक आते-आते जिलों की संख्या 616 और गाँवों की संख्या 19,060 हो जाती है।


असर रिपोर्ट के लिए किया जाने वाला सर्वे कई मायनों में अलग है। यह देश का एकमात्र सर्वे है जो करीब 17,000 गाँवों के बच्चों को शामिल करता है। इस सर्वे में हिस्सा लेने वाले बच्चों की संख्या करीब-करीब पाँच लाख के आस-पास ठहरती है। इस सर्वे को पूरा करने के लिए लगभग 30 हजार स्वयंसेवक घर-घर जाते हैं। इस सर्वे में बच्चों की जाँच केवल उनके घर जाकर ही की जाती है। ऐसा क्यों ? स्कूल से क्यों नहीं ? कई कारणों से बच्चों का मूल्यांकन स्कूल में जाकर नहीं किया जाता है। जैसे- बच्चे सीख पा रहे हैं या नहीं इसके लिए केवल स्कूल जिम्मेदार नहीं है। सीखने की प्रक्रिया वृहत और लम्बी है जिसमें कई लोग भूमिका निभाते हैं।
सर्वेक्षण की इस प्रणाली के माध्यम से स्कूल जाने और सीख पाने के बीच के अंतर को अभिभावक तक पहुँचाने की कोशिश की जाती है। इससे अभिभावकों के बीच इस विषय पर जागरूकता बढ़ती है। अलग-अलग गाँवों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ती है।
एक अन्य कारण यह भी है कि सर्वे में हिस्सा लेते समय बच्चा किसी भी तरह के भय और दबाव से मुक्त रहता है।
 

 

भारतीय समाज का स्वरूप पितृसत्तात्मक है। ऐसे में लैंगिक आधार पर भेदभाव होने की सम्भावना रहती है। जिसे दर्ज करना अति आवश्यक है। ताकि नीतियों का निर्माण करते समय उसे मध्यनजर रखा जा सके। असर रिपोर्ट में कई पहलुओं पर लैंगिक नजरिये से आँकड़े दर्ज किये जाते हैं। जैसे ऐसी लड़कियों का अनुपात जो सर्वेक्षण के समय किसी स्कूल में नामांकित नहीं हैं।

इस रिपोर्ट में विद्यालय में मौजूद सुविधाओं से जुड़े आँकड़ों को दर्ज किया जाता है जैसे मध्यान्ह भोजन, पेयजल,शौचालय, लड़कियों के लिए शौचालय, पुस्तकालय, बिजली और कंप्यूटर की सुविधा। सुविधाओं से सम्बंधित आँकड़ों को दर्ज करने से कमी वाले खास क्षेत्रों पर अधिक धयान दिया जा सकता है। साथ ही, इस सम्बन्ध में होने वाली प्रगति को भी समझा जा सकता है। 

'असर' का असर

असर ने "बच्चे स्कूल में हैं लेकिन, सीख नहीं रहे हैं"  के मूल सन्देश के साथ भारत के नीति निर्माताओं का ध्यान नामांकन से सीखने की ओर लाया है। हालाँकि यह कहना तो मुश्किल है कि सरकारी नीतियों में किस कारण बदलाव आता है लेकिन, यह कहा जा सकता है कि असर रिपोर्ट के निष्कर्षों से उपजे जन दबाव ने बच्चों की शिक्षा नीति में बदलाव का रास्ता तैयार किया। इस बदलाव को वर्ष 2017 में शिक्षा के अधिकार अधिनियम के संशोधन के रूप में देखा जा सकता है। इस संशोधन में राज्यों के लिए बच्चों के सीखने के प्रतिफल का आकलन करना अनिवार्य कर दिया। ऐसे ही, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) में बुनियादी शिक्षा पर बल देते हुए यह लक्ष्य तय किया कि कक्षा 3 तक सभी छात्रों को बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान के कौशल से प्राप्त हो जाना चाहिये।

कई राज्य सरकारों द्वारा केंद्र सरकार के इन क़दमों से पहले ही अपने स्तर पर सीखने के प्रतिफल को बेहतर बनाने पर काम करना शुरू कर दिया था। जिसके कारण आज वो प्रतिस्पर्धा में आगे हैं।

असर की रिपोर्ट में गाँव, जिला और राज्यवार आँकड़े जारी किये जाते हैं। जिसके कारण गाँवों के बीच भी प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाती है। स्थानीय जन प्रतिनिधि रिपोर्ट के आँकड़ों को आधार बनाकर अपनी सफलता सिद्ध करने की कोशिश करते हैं, तो वहीं तुलनात्मक रूप से पिछड़े गाँव के जन प्रतिनिधि सीखने के प्रतिफल को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं।

संसद से लेकर राज्यों की विधानसभाओं में पूछे जाने वाले कई प्रश्नों का आधार असर की रिपोर्ट था। नीति आयोग ने भी अपने तीन वर्षीय एक्शन-प्लान (2017-2020) में असर के निष्कर्षों का उल्लेख किया था। 

असर के निष्कर्षों को व्यापक स्तर पर संदर्भ के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यूनेस्को, विश्व बैंक और यूनिसेफ ने अपनी कई रपटों में असर के निष्कर्षों को आधार बनाया है।

कुलमिलाकर, यह कहा जा सकता है कि असर ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप किया। जिसकी दरकरार थी। अभिभावकों और हुकूमतों का बल सिर्फ इस बात पर नहीं रहा कि बच्चे स्कूल जाएँ। इसके साथ-साथ सीखने के प्रतिफल पर भी ध्यान दिया जाने लगा।

____________________

सन्दर्भ- असर की वेबसाइट.

विपुल मुद्गल द्वारा सम्पादित किताब- Claiming India from Below; Activism and democratic transformation

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close