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चर्चा में.... | वन (संरक्षण) संशोधन बिल-2023 से उपजी बहस का लेखाजोखा
वन (संरक्षण) संशोधन बिल-2023 से उपजी बहस का लेखाजोखा

वन (संरक्षण) संशोधन बिल-2023 से उपजी बहस का लेखाजोखा

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published Published on Aug 7, 2023   modified Modified on Aug 29, 2023

2 अगस्त को लोकसभा के बाद राज्यसभा से भी वन (संरक्षण) संशोधन बिल, 2023 पारित हो गया। यह बिल वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में संशोधन करेगा। इस बिल को 2023 के बजट सत्र के दौरान लोकसभा में पेश किया था। तब इस बिल को लोकसभा अध्यक्ष ने ‘संयुक्त संसदीय समिति’ के पास भेज दिया था। समिति ने मूल मसौदे को यथावत रखा; उसमें किसी भी तरह के बदलाव की सिफारिश नहीं की। 

लेकिन, इस बिल पर कई पक्षों ने अपनी आपत्तियाँ जाहिर की हैं। क्या है यह बिल ? इस बिल के माध्यम से मूल अधिनियम में कौन से परिवर्तन किए जाएँगे ? सरकार का पक्ष क्या है? किस तरह की आपत्तियाँ जताई जा रही हैं ? उनके क्या तर्क हैं ? इन सारे सवालों का जवाब आज के लेख में। 

 

वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980

जब संविधान बना था तब फॉरेस्ट विषय को राज्य सूची के अंतर्गत रखा था। यानी कि हरेक राज्य ने अपने–अपने हिसाब से कानून बनाएँ। ऐसे में वन से जुड़े मामलों को लेकर पूरे देश में विविधता आ गई। नतीजा यह हुआ कि वन के मुद्दे पर विवाद छिड़ गया। यह विवाद 1980 के दशक में अपने चरम पर था। इसी दौरान सन् 1976 में किए गए 42वें संविधान संशोधन ने ‘फॉरेस्ट’ विषय को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में रख दिया।

विवादों के उचित समाधान को मध्यनज़र रखते हुए केंद्र सरकार ने वन (संरक्षण) कानून,1980 बनाया। इस कानून से भारत की वन–संपदा को संरक्षण मिला। साथ ही इस कानून की बदौलत केंद्र सरकार के पास वनों से जुड़े मामलों को विनियमित करने का अधिकार आ गया। 

 

किस तरह के संशोधन किये जा रहा हैं ?

1980 के कानून में ‘वन भूमि’ (फॉरेस्ट लैंड) को परिभाषित किया है। साथ ही यह भी प्रावधान किया गया है कि वन भूमि का गैर वानिकी उद्देश्यों में इस्तेमाल करने से पहले केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी आवश्यक है।

2023 का यह संशोधन मूल कानून में परिभाषित ‘वन भूमि’ की परिभाषा में बदलाव की पेशकश करता है। कुछ प्रकार की वन भूमि को कानून के दायरे से बाहर कर देता है और कुछ प्रकार की ज़मीन को ‘वन भूमि’ की सूची में शामिल करता है।

 

  • बिल के अनुसार – 2 (क) रेल लाइन या सार्वजनिक सड़क जिसका रखरखाव केंद्र सरकार करती है, के आस–पास की 0.10 हेक्टेयर वन–भूमि को सुख–सुविधाओं के उद्देश्य से इस्तेमाल किया जा सकेगा।
  • 2(ख) ऐसी ज़मीन जिस पर पौधारोपण या पुनर्वनरोपण किया है, को वन भूमि के अंतर्गत शामिल नहीं किया जाएगा।
  • 2(ग) ऐसी वन भूमि जो कि अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा, नियंत्रण रेखा और वास्तविक नियंत्रण रेखा के आस–पास की 100 किलोमीटर वन भूमि को किसी राष्ट्रीय महत्ता की रणनीतिक परियोजना के लिए वन भूमि की श्रेणी से बाहर कर दिया जाएगा।
  • सुरक्षा संबंधी अवसंरचना के निर्माण के मामले में यह दायरा 10 हेक्टेयर तक प्रस्तावित है।
  • केंद्र सरकार द्वारा घोषित किए गए वामपंथी अतिवाद प्रभावित क्षेत्रों, रक्षा संबंधी परियोजना या अर्धसैनिक बलों या लोकोपयोगी परियोजनाओं के निर्माण हेतु अधिकतम दायरा पाँच हेक्टेयर का है। 
  • लीज़ या अन्य तरीके से वन भूमि को देना - 1980 के कानून के तहत राज्य सरकार किसी वन भूमि को किसी संगठन (जिस पर राज्य का कोई स्वामित्व या नियंत्रण नहीं है) को सौंपता है (लीज या किसी अन्य तरीके से) तो उसके लिए पहले केंद्र सरकार की मंजूरी लेना आवश्यक था। 2023 का यह संशोधन, इस शर्त को राज्य के स्वामित्व और नियंत्रण वाले संगठनों के ऊपर भी लागू करने की सिफारिश करता है।

 

वन भूमि पर निम्न गैर वानिकी गतिविधियों को अनुमति दी जा सकती है–

  • अग्निशामक लाइनों की स्थापना और रखरखाव के लिए।
  • चेक पोस्ट और अन्य जरूरी अवसंरचना का निर्माण के लिए।
  • वायरलेस संसार नेटवर्क के लिए।
  • बाड़, सीमा चिह्न, पुल बनाने, चेक डैम बनाने, पाइपलाइन लगाने के लिए।
  • वन्य जीव (संरक्षण )अधिनियम से अलग अन्य क्षेत्रों में चिड़ियाघर और सफारी की स्थापना के लिए।
  • इको टूरिज्म के लिए सुविधाएँ बढ़ाने के लिए।
  • इन सबके साथ ऐसे ही किसी उद्देश्य के लिए, जिसे केंद्र सरकार ज़रूरी समझे वन–भूमि में छूट दी जा सकती है।
  • केंद्र सरकार ऐसे नियमों का निर्माण करेगी जिसके तहत किया गया कोई सर्वेक्षण गैर वानिकी प्रयोजन नहीं माना जाएगा।

 

सरकार का पक्ष–

बिल के साथ पेश किए गए ‘उद्देश्यों और कारणों का कथन’ के अनुसार–

टी.एन.गोदावर्मन तिरुमुलपद बनाम भारत संघ मामले में दिए गए निर्णय से पहले 1980 का यह कानून अधिसूचित वन भूमि पर लागू होता था, राजस्व वन क्षेत्रों पर नहीं। लेकिन, माननीय उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद इस कानून का दायरा बढ़ गया; इसमें राजस्व वन भूमि भी शामिल हो गई।

जिसके कारण वन भूमि, निजी वन भूमि और बागानों आदि में कई ज़रूरी काम करने के लिए पूर्व अनुमति आवश्यक हो गई। सरकार का कहना है कि विकास के लिए ज़रूरी कदम उठाने हेतु यह संशोधन किये जा रहा है।

राष्ट्रीय महत्ता की सामरिक और सुरक्षा संबंधित परियोजनाओं के त्वरित निपटान की आवश्यकता को देखते हुए यह संशोधन प्रस्तावित किये हैं।

चूँकि 1980 के अधिनियम को पारित हुए लंबा समय हो गया है, समय के साथ देश की पारिस्थितिकी, सामरिक और आर्थिक अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए यह संशोधन जरूरी है।

मौजूदा कानून से कई मसलों पर अस्पष्टताएँ पैदा हो गई हैं, जिन्हें दूर करने के लिए यह संशोधन ज़रूरी है।

 

आपत्ति जताने वालों के तर्क–

- वन क्षेत्रों के ऊपर खतरे के बादल पहले से ही मंडरा रहे हैं; ऐसे में जंगलों के अंदर चिड़ियाघर जैसी व्यावसायिक गतिविधियों को अनुमति देना खतरे से खाली नहीं है।

- इस बिल में कई प्रकार के सर्वेक्षणों को गैर वानिकी उद्देश्य नहीं माना है; यानी उन्हें किसी से अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है। ऐसे में कई पर्यावरणविद् का मानना है कि इसका फायदा कई खनन–उत्खनन करने वाली कंपनियों को मिलेगा। और वन संरक्षण के नज़रिए से यह घाटे का सौदा साबित होगा।

इस बिल में वन को परिभाषित किया है। बिल के अनुसार–

निम्नलिखित भूमि इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन समाविष्ट होगी-
क. वह भूमि, जिसे भारतीय वन अधिनियम, 19 27 के तहत वन भूमि घोषित किया हो,
ख. वह भूमि, जो खंड (क) के अधीन नहीं आती है किन्तु 25 अक्टूबर, 1980 को या उसके बाद किसी सरकारी अभिलेख में वन के रूप में दर्ज की गई है.


साथ ही, इस बिल में यह स्पष्ट उल्लेख किया है कि अगर कोई भूमि जिसे 12 दिसम्बर, 1996 (टी.एन.गोदावर्मन तिरुमुलपद बनाम भारत संघ मामले) से पहले गैर वानिकी कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है तो वो इस कानून के तहत आने वाली वन भूमि के अंतर्गत नहीं गिनी जाएँगी 

यह प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विपरीत है। सर्वोच्च न्यायालय ने वन की परिभाषा को विस्तार रूप देते हुए, इस फैसले में कहा था कि इन कानूनों के इतर भी अगर कोई जमीन है, जहाँ वन संपदा मौजूद है तो उसे वन भूमि कहा जाएँगा।

- पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में वन क्षेत्रों का दायरा निरंतर सिमटता जा रहा है। ऐसे में कई लोग यह चिंता जता रहे हैं कि सीमावर्ती क्षेत्रों में निर्माण कार्यों की छूट का असर पूर्वोत्तर भारत की वन भूमि पर पड़ सकता है।

- 18 जुलाई को 400 से ज्यादा पर्यावरणविद् ने पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव को पत्र लिखा था; जिसमें इस बिल के कारण उत्तर-पूर्व में बाढ़ की घटनाओं में संभावित बढ़ोतरी की आशंका जताई थी।
- छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले राज्यों में 100 किलोमीटर तक की छुट के कारण भी आदिवासी समुदाय विरोध कर रहा है।
- विपक्ष के सांसदों का कहना है कि संयुक्त संसदीय समिति में उठाये गए मुद्दों को नजरंदाज किया है।

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सन्दर्भ-
लोकसभा में इस बिल पर चर्चा, कृपया यहाँ क्लिक कीजिये.
राज्यसभा में इस बिल पर चर्चा, कृपया यहाँ क्लिक कीजिये.
वन (संरक्षण) संशोधन बिल, 2023 कृपया यहाँ और यहाँ क्लिक कीजिये.
वन (संरक्षण) विधेयक, 1980 कृपया यहाँ क्लिक कीजिये.
PRS का इस बिल पर विश्लेषण कृपया यहाँ क्लिक कीजिये.
टी.एन.गोदावर्मन तिरुमुलपद बनाम भारत संघ, कृपया यहाँ क्लिक कीजिये.
वन अधिनियम, 1927 कृपया यहाँ क्लिक कीजिये.

Explained | Why is there a controversy on the forest Bill? By Jacob Koshy for THE HINDU, Please Click Here
Parliament clears contentious bill that seeks to amend forest act By Jayashree Nand for Hindustan Times, Please Click Here
'Passing bill without opposition is a case study,'' says Jairam Ramesh on Forest (Conservation) Amendment Bill by India Today NE, Please Click Here
Joint panel okays forest bill, but 5 opposition MPs dissent by Times of India, Please Click Here
Ecologists, conservationists express serious concerns over Forest Conservation Amendment Bill by THE HINDU, Please Click Here 
वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक ‘आदिवासी विरोधी’, विधानसभा इसके खिलाफ प्रस्ताव पारित करे: एनपीएफ, Please Click Here

New Forest Conservation Bill: Ministry Ignores Dissent, JPC Pushes Ahead by The Wire Please Click Here

400+ Ecologists Write to Environment Minister Against Amendments to Forest Conservation Act by The Wire, Please Click Here


तसवीर लोकसभा टीवी से साभार.
 

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