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चर्चा में.... | महामारी में मजहब के आधार पर हुआ भेदभाव- वैश्विक रिपोर्ट
महामारी में मजहब के आधार पर हुआ भेदभाव- वैश्विक रिपोर्ट

महामारी में मजहब के आधार पर हुआ भेदभाव- वैश्विक रिपोर्ट

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published Published on Dec 22, 2022   modified Modified on Jul 26, 2023

बात कोविड काल की है। अफगानिस्तान में बहुसंख्यक तबके ने करीब 25 सिखों को मौत के घाट उतार दिया। और इस कारण से सिखों में डर पसरा। जिसका नतीजा था लगभग 200 सिक्खों का हिंदुस्तान की ओर पलायन। यह पलायन उनकी ख्वाहिश से नहीं मजबूरी से उपजा था। प्रश्न यह है कि सिखों के साथ यह अत्याचार क्यों हो रहा था? अफगानिस्तान के बहुसंख्यक तबके का कहना था कि सिख कोविड को फैला रहे हैं। क्या कोरोना वायरस ने इंसान का मजहब और जाति देख के व्यवहार किया ? शायद नहीं।

सिर्फ अफगानिस्तान की बात नहीं है। महामारी के दौरान पूरी दुनिया में इस तरह का माहौल बना हुआ था। बहुसंख्यक तबके ने अल्पसंख्यकों को कोरोना फ़ैलाने के लिए जिम्मेदार ठहराया। नतीजन इस अलगाव का फायदा, अलगाव की राजनीति करने वालों को हुआ।

यह भेदभाव समाज और सरकार दोनों के स्तर पर हुआ था। अमेरिका की जानी मानी संस्था, प्यू रिसर्च सेंटर ने अपनी रिपोर्ट में दोनों तरह के भेदभावों को दर्ज किया है। लेख की शुरुआत हम सरकारों के द्वारा किए गए भेदभावों से करते हैं।

 

हुकूमतों ने मजहब देख कर व्यवहार तय किया

 

दुनियाभर के, अधिकांश देशों में भेदभाव दर्ज किया गया है। सर्वेक्षण में कुल 198 देशों को शामिल किया गया था। अध्ययन ने पाया कि लगभग 74 देशों में निम्न तीन में से एक तरह की घटना हुई–

1.सरकार ने किसी धर्म विशेष के जलसे पर पाबंदी लगाई। 2.सरकार, समाज और व्यक्ति ने किसी एक मजहब को कोरोना फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहराया है। 3.किसी गैर सरकारी शख्स ने खास धार्मिक पहचान को धारण करने वालों के साथ हिंसा की है।

हालाँकि, इसी दरमियान, सरकारी प्रतिबंध सूचकांक में गिरावट आई है; (वर्ष 2019 में 2.9 था जोकि गिरकर वर्ष 2020 में 2.8 हुआ)। वहीं सोशल हॉस्टिलिटीज इंडेक्स में बढ़ोतरी हुई है।

इस रिपोर्ट को कैसे तैयार किया गया है?
प्यू रिसर्च ने इस रिपोर्ट में कुल 198 देशों और प्रदेशों को शामिल किया है। रिपोर्ट में कुल 10 पॉइंट सूचकांकों को आधार बनाया गया है।जिनमें से दो सूचकांक महत्वपूर्ण हैं– 
1,गवर्मेंट रिस्ट्रिक्शन इंडेक्स (जीआरआई)– सरकारें, नागरिकों के ऊपर जनहित में पाबंदियां लगाती हैं, कानूनों, नीतियों और निर्देशों के बूते।इस सूचकांक के माध्यम से किसी भी हुकूमत की ओर से अलग-अलग मजहबों के प्रति अपनाएं गए रवैये को समझ सकते हैं।


2, सोशल हॉस्टिलिटीज इंडेक्स – यह सूचकांक किसी व्यक्ति, संस्था–समूह और समाज की तरफ से किसी खास मजहब के अनुयायी के साथ किए गए बर्ताव को दर्ज करता है। इस सूचकांक में मजहब के कारण उपजे सैन्य संघर्षों, आतंकवाद, सुनियोजित हिंसा (मॉब लिंचिंग) और धार्मिक पहनावे के कारण किए गए उत्पीड़न जैसे पहलुओं को भी सम्मिलित किया जाता है।
भारतीय समाज के द्वारा कोविड काल में किए गए भेदभाव को यह सूचकांक रेखांकित करता है।
इन सूचकांकों के लिए संस्था प्रतिवर्ष आंकड़े जुटाती है।

लगभग 46 देशों में हुकूमतों ने धार्मिक गतिविधियों पर नियम या कानून लागू करने के लिए बल का प्रयोग किया गया था। उदाहरण के तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका में 15 लोगों को हिरासत में लिया, ये लोग यहूदियों के किसी धार्मिक अनुष्ठान में भाग ले रहे थे।

इसी तरह म्यांमार में 12 मुसलमानों को तीन महीने की सजा दी। ये मुस्लिम किसी धार्मिक जलसे में शिरकत करने गए थे। गौर करने वाली बात यह है कि इसी दौरान करीब 200 लोग जोकि बौद्ध धर्म के अनुयायी थे, इकट्ठा हुए थे, उन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। 

रिपोर्ट का कहना है कि इस देश के अल्पसंख्यक समूह यथा मुस्लिम और ईसाइयों के साथ सरकार ने भेदभाव किया।

करीब 18 देशों में सरकारों ने कोरोना के फैलाव को एक धर्म विशेष से जोड़ दिया।

पड़ोसी देश पाकिस्तान ने अपने देश में महामारी के फैलाव के लिए हजारा समुदाय के लोगों को जिम्मेदार ठहराया। हजारा समुदाय के लोग ईरान से धार्मिक यात्रा कर अपने वतन वापस लौटे थे।

 

तो अब भारत की दास्तां– अप्रैल 2020 की बात है। भारत सरकार का गृह मंत्रालय एक प्रेस कांफ्रेंस करता है। सूचना दी जाती है कि दिल्ली के एक इलाके में तबलीगी जमात के कई लोग एकसाथ, एक भवन में मौजूद हैं। करीब 900 लोग।
जैसे ही यह सूचना मिली मीडिया ने इसे हाथों हाथ लिया। हरकारों ने कुलाँचें भरते हुए चिल्ला चिल्ला कर इसे एक साजिश बताया। फिर इस तथाकथित साजिश को जिहाद के एक नए संस्करण के रूप में गढ़ दिया, कोरोना जिहाद

कोरोना जिहाद, शब्दजाल असल में एक समाज के द्वारा किए गए भेदभाव का प्रतीक था। एक तरह की घेराबंदी थीं। इस घेराबंदी का असर बहुत दूर तक हुआ। देश भर में व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ने इस्लामोफोबिया को मजबूत किया। इस इस्लामोफोबिया ने कोरोना के फैलाव हेतु मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराया।
कई जगहों पर एक खास मजहब के लोगों का बहिष्कार किया गया। इस बहिष्कार की चपेट में ठेले पर सब्जी बेचने वाले भी आए। इस सफेद झूठ (कोरोना जिहाद) को सही साबित करने के लिए सोशल मीडिया पर कई पुराने वीडियो फैलाएँ गए। कृपया यहाँ, यहाँ, यहाँ और यहाँ क्लिक कीजिये।


यह घेराबंदी कई अल्पसंख्यकों के साथ मारपीट और मौत की घटनाओं में बदल गई। तमिलनाडु की पुलिस ने कोविड कानून तोड़ने के जुर्म में दो ईसाइयों को हिरासत में लिया और सलाखों के पीछे उन्हें इतना पीटा की वो मर गए
जिहाद के इस कल्पित नए संस्करण के ईजाद कर देने के बाद जनता ने सरकार से प्रश्न पूछना धीमा कर दिया, घर–घर टीवी ने यह बात पहुंचा दी कि कोरोना फैलाव के पीछे एक खास मजहब के लोगों का हाथ है। सरकारों को अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा मिल गया!

समाज ने एक खास मजहब के खिलाफ घेराबंदी की थी। सरकार की जिम्मेदारी बनती थी कि वो उस घेराबंदी को तोड़े। क्या हुक्मरानों ने समाज की तरफ से बनाई जा रही घेराबंदी को तोड़ने की कोशिश की? भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने 6 अप्रैल को प्रेस कांफ्रेंस की। इस वार्ता में मंत्रालय ने कोविड से संबंधित आंकड़ों को देश के सामने रखा। इन आंकड़ों में तबलीगी जमात के आंकड़े अलग से बताए गए। बताया कि देशभर में तबलीगी जमात के लोग गए हैं। इस वार्ता के बाद समाज ने एक खास मजहब के लोगों के साथ अलग तरह का बर्ताव करना शुरू किया।

इसी तरह दिल्ली के मुख्यमंत्री जी ने प्रेस कांफ्रेंस कर कोविड संक्रमण के आंकड़ों को मीडिया में रखा। इसी वार्ता में तबलीगी जमात से जुड़े लोगों के आंकड़ों को भी अलग से बताया। इस तरह के बयानों ने मीडिया को कोरोना जिहाद नामक ट्रेंड चलाने में मदद की।

सोशल हॉस्टिलिटीज इंडेक्स

 

करीब 39 देशों में निजी व्यक्ति या समाज ने कोरोना वायरस को फ़ैलाने के लिए जिम्मेदार किसी धर्म विशेष को ठहराया।

तुर्की में ईसाई अनुयायियों को भेदभाव झेलना पड़ा। कंबोडिया में मुसलमानों को और मोरक्को में ईसाइयों को।

अर्जेंटीना और इटली में यहूदियों की संपति को नुकसान पहुंचाया गया।

वहीं बहुसंख्यक तबके ने मजहबी कामों में कानून को ताक पर रखा। बांग्लादेश में मुस्लिम हजारों की संख्या में एक धर्म प्रचारक की अंतिम यात्रा के लिए जुटे।

एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के तत्कालीन सत्ताधारी दल के सदस्यों ने महामारी रोकथाम के लिए बने कानून की अवहेलना की, जिसका नतीजा उस क्षेत्र में कोरोना के अधिक मामलों के रूप में सामने आया।

रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में सबसे अधिक सामाजिक घेराबंदी भारत में हुई थी। भारत को सामाजिक घेराबंदी सूचकांक में 10 में से 9.4 अंक मिले। यह अंक पड़ोसी देश पाकिस्तान की तुलना में भी अधिक हैं।

सामाजिक घेराबंदी का एक और उदाहरण है शाहीन बाग का आंदोलन। वर्ष 2019 में पारित नागरिकता कानून के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में भारत के नागरिक धरने पर बैठे थे। जिहाद के कल्पित संस्करण कोरोना जिहाद की आड़ लेकर इस आंदोलन को भी निशाना बनाया।  

सन्दर्भ- 

How COVID-19 Restrictions Affected Religious Groups Around the World in 2020, please click here
2020 Report on International Religious Freedom: Afghanistan by U.S. Department of State please click here.

It Was Already Dangerous to Be Muslim in India. Then Came the Coronavirus from TIME Please click here.

Father and son duo allegedly killed in police custody for opening shop beyond time in Tamil Nadu from indian express. please click here.
"If I See You Again...": On Camera, BJP MLA Bullies Muslim Vegetable Seller from NDTV. Please click here.

Covid-19: Muslim vendors stopped from selling vegetables in UP, accused of being Tablighi members from scroll.in, Please click here.

पिज़्ज़ा में थूक लगाने का पुराना वीडियो मुस्लिम धर्म के लोगों के ख़िलाफ़ भड़काऊ बातों के साथ शेयर by Kinjal for Alt news, please click here.
मुस्लिम लड़के की पिटाई का वीडियो फल बेचनेवाले द्वारा कोरोना वायरस फैलाने के नाम पर शेयर किया गया by Archit for Alt news, please click here.

फ़िलीपींस का पुराना वीडियो मुस्लिम लड़के के थूक लगाकर ब्रेड के पैकेट बंद करने के दावे के साथ वायरल by Priyanka Jha for Alt news, please click here.
India saw highest levels of Covid-19 related religious hostilities in 2020: Pew Research Center from scroll.in Please click here.

Tens of thousands defy Bangladesh lockdown for imam's funeral from yahoo news please click here
Covid death rates are higher among Republicans than Democrats, mounting evidence shows from nbc news, please click here.
 


Image by Ashok/ IM4Change
 

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