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चर्चा में.... | मौसमी शाकाहारी
मौसमी शाकाहारी

मौसमी शाकाहारी

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published Published on Oct 13, 2022   modified Modified on Oct 13, 2022

कुछ लोग होते हैं मौसमी शाकाहारी. यानी खास मियाद के लिए वो विशुद्ध शाकाहारी बन जायेंगे. जैसे ही यह खास मियाद पूरी होगी तब शाक‘आहार’ के प्रवर्तक का चोला उतार कर टूट पड़ेंगे मांस–मछली पर.

इन मौसमी शाकाहारियों को लगता है कि जिस मियाद के लिए वो मांस नहीं खा रहें हैं तब कोई और शख्स भी नहीं खाएगा.

इसी पूर्वाग्रह को लेकर हाल ही में नवरात्रि पर कई जगह, स्वघोषित धर्म रक्षकों ने मांसाहार की दुकानें बंद करवाई थी.

आज के इस लेख में भारतीय जनता के आहार प्रतिरूप को समझने की कोशिश करेंगे.

समझने के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 4 और 5 का तुलनात्मक अध्ययन करेंगे. तुलनात्मक अध्ययन से मौजूदा स्थिति सहित 'रुझान' से रूबरू हो सकेंगे.

भारत में वर्ष 2015–16 की तुलना में वर्ष 2019–21 में मांसाहारियों का अनुपात बढ़ा है.

15 से 49 आयु वर्ग की आबादी में कभी मांस का सेवन नहीं करने वालों का अनुपात 2015–16 में 21.6 फीसदी था जो घटकर 2019–21 में 16.6 फीसदी हो गया.

किसी भी शख्स के शाकाहारी या मांसाहारी होने का निर्णय कई कारकों से प्रेरित होता है. इन कारकों में सबसे बड़ा कारक भौगोलिक अवस्थिति है. फिर जाति, धर्म, लिंग, वैवाहिक स्थिति सहित व्यक्तिगत निर्णय जैसे कारक शामिल होते हैं.

मांस‘आहार’ और भारतीय लोग –
एनएफएचएस–5 के अनुसार 83.4 फीसदी पुरुष और 70.6 फीसदी महिलाएं रोजाना या साप्ताहिक या कभी कभार मांस‘आहार’ लेते हैं

एनएफएचएस के सर्वे ने आंकड़ों को सेवन के आधार पर तीन भागों में बांटा है. रोजाना सेवन करने वाले, साप्ताहिक सेवन करने वाले और कभी कभार सेवन करने वाले.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण–5 के अनुसार (अंडा, मछली, चिकन और मीट) खाने के मामले में पुरुषों का अनुपात महिलाओं की तुलना में अधिक है.

मिसाल के तौर पर देखें तो प्रतिदिन खाने (अंडा, मछली, चिकन और मीट) वाले पुरुषों और महिलाओं के आंकड़े इस प्रकार के हैं–
अंडा (पुरुष 7.1 फीसदी और महिला 5.2 फीसदी), मछली (पुरुष 6.8 फीसदी और महिला 5.1 फीसदी), चिकन और मीट (पुरुष 2.4फीसदी और महिला 1.4 फीसदी), मछली, चिकन और मीट (पुरुष 8.0 फीसदी और महिला 5.9 फीसदी) (आंकड़े 15 से 49 आयु वर्ग से ताल्लुकात रखते हैं,यह आंकड़े 2019–21 के हैं.)

ज्यादा जानकारी के लिए देखें ग्राफ- 1A

  • प्रिय पाठकों अगर आप इस ग्राफ को देखना चाहते हैं तो इस ग्राफ पर भार दीजिये फिर ओपन इमेज पर क्लिक कीजिये. ग्राफ का आनंद लीजिये.

जैसे रुझान एनएफएचएस 5 में दिखे हैं वैसे ही आंकड़े एनएफएचएस 4 के हैं. पुरुषों द्वारा किया जा रहा सेवन महिलाओं की तुलना में अधिक है.
ज्यादा जानकारी के लिए देखें ग्राफ- 1B

स्त्रोत--- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 (2019-21) रिपोर्ट के लिए कृपया यहाँ क्लिक कीजिए

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 4 (2015-16) रिपोर्ट के लिए कृपया यहाँ क्लिक कीजिए

साप्ताहिक या कभी कभार मांसाहार खाने का पैमाना ले, तो भी पुरुष महिलाओं की तुलना में अधिक सेवन करते हैं.

  • कभी मांस का सेवन नहीं करने वालों में वर्ष 2015–16 की तुलना में वर्ष 2019–21 में गिरावट आई है. यह गिरावट पुरुषों में तेजी से आई है जबकि महिलाओं में यह गिरावट धीमी है.

वर्ष 2015–16 में कभी मांस नहीं खाने वाले पुरुषों की संख्या 21.6 फीसदी थी जो कि घटकर 2019–21 में 16.6 फीसदी हो गई.
वहीं वर्ष 2015–16 में कभी मांस नहीं खाने वाली महिलाओं की संख्या 29.9 फीसदी थी जो धीमी गति से घटकर 2019–21 में 29.4 फीसदी पर पहुंच गई.

खाने के संदर्भ में मौजूद यह अंतराल सेहत के मामले में स्पष्ट रूप में दिखता है. एनएफएचएस 5 के अनुसार अनीमिया से पीड़ित महिलाओं की संख्या (57 फीसदी), पीड़ित पुरुषों (25 फीसदी) की तुलना में दुगने से अधिक है.
खाने का अधिकार को लेकर सक्रीय कार्यकर्ताओं द्वारा हाल ही में जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार थाली में व्यंजनों की विविधता और एनिमल सोर्स फ़ूड के माध्यम से पोषकता की कमी को दूर किया जा सकता है. 

 

मांसाहारियों का धर्म!

“भारत में मांस‘आहार’ खाने के बाबद् होने वाले अधिकतर विवादों के पीछे धर्म एक प्रमुख कारक रहता है”

एनएफएचएस के सर्वे में मांस खाने वालों के आंकड़ों को धर्म के आधार पर दर्शाया गया है. आइए जानते हैं विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग और उनमें बसे मांसाहारियों के बारे में– 

एनएफएचएस 5 के अनुसार –कम से कम सप्ताह में एक बार अंडों का सेवन- सबसे अधिक ईसाई महिलाओं द्वारा (70.9 फीसदी) किया जाता है. उसके बाद मुस्लिम महिलाएं (65.6 फीसदी), बौद्ध महिलाएं (59.6 फीसदी), हिंदू महिलाएं (41.5 फीसदी), सिख महिलाएं (13.4 फीसदी) और जैन महिलाएं (6.7 फीसदी) सेवन करती हैं.

पुरुषों की बात करें तो कम से कम सप्ताह में एक बार अंडे खाने वालों में सबसे आगे बौद्ध धर्म को मानने वाले पुरुष हैं (73.6फीसदी) उसके बाद मुस्लिम पुरुष (73.2 फीसदी) ईसाई धर्म को मानने वाले पुरुष (72.7 फीसदी), हिंदू धर्म को मानने वाले पुरुष (54.5 फीसदी), सिख धर्म को मानने वाले पुरुष (29.7 फीसदी) और जैन धर्म को मानने वाले 11 फीसदी पुरुष सप्ताह में कम से कम एक बार अंडे का सेवन जरूर करते हैं.
ज्यादा जानकारी के लिए कृपया ग्राफ 2A देखें!

इसी ग्राफ में मछली, चिकन व मीट एवं चिकन मीट और मछली खाने वालों के धर्म के आधार पर साप्ताहिक आंकड़े दर्शाए गए हैं.

 

  • प्रिय पाठकों अगर आप इस ग्राफ को देखना चाहते हैं तो इस ग्राफ पर भार दीजिये फिर ओपन इमेज पर क्लिक कीजिये. ग्राफ का आनंद लीजिये.

वर्ष 2015–16 की बात करें तो साप्ताहिक मांस‘आहार’ लेने वाले पुरुषों में ईसाई धर्म को मानने वाले पुरुष 75.6 फीसदी, इस्लाम को मानने वाले 73.1 फीसदी पुरुष, बौद्ध धर्म को मानने वाले 61.3 फीसदी पुरुष, 44.8 फीसदी हिंदू धर्म को मानने वाले पुरुष, 10.8 फीसदी सिख धर्म को मानने वाले पुरुष और 3.5 फीसदी जैन धर्म को मानने वाले पुरुष, सप्ताह में कम से कम एक बार मांस का सेवन जरूर करते हैं.

ज्यादा जानकारी के लिए कृपया ग्राफ 2B देखें!

 

स्त्रोत--- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 (2019-21) रिपोर्ट के लिए कृपया यहाँ क्लिक कीजिए

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 4 (2015-16) रिपोर्ट के लिए कृपया यहाँ क्लिक कीजिए

क्या जाति मांस खाने वालों की!
व्यक्ति के खान पान का चुनाव करने के पीछे जाति भी एक प्रमुख कारक है.  एनएफएचएस के दोनों सर्वे (4&5) में मांसाहारियों के जातिगत आंकड़े दिए हैं. सर्वे नंबर 5 के अनुसार महिलाओं में अंडा खाने वालों में सबसे अधिक अनुपात अनुसूचित जाति में पाया गया (48.4 फीसदी) फिर अनुसूचित जनजाति में (46.4 फीसदी), अन्य पिछड़ा वर्ग की (42.7 फीसदी) महिलाएं सप्ताह में कम से कम एक बार अंडे का सेवन जरूर करती हैं.
सप्ताह में कम से कम एक बार अंडे खाने वाले पुरुषों का आंकड़ा देखें तो सबसे अधिक अनुसूचित जाति के (60.8 फीसदी) उसके बाद अनुसूचित जनजाति (57.1 फीसदी), अन्य पिछड़ा वर्ग के पुरुष 55.6 फीसदी.
अधिक जानकारी के लिए कृपया ग्राफ 3A देखें!

वर्ष 2015–16 के दौरान सप्ताह में कम से कम एक बार अंडे खाने वाली महिलाओं में सबसे अधिक अनुपात अनुसूचित जाति (44.5 फीसदी ) फिर अनुसूचित जाति की महिलाएं (42.4 फीसदी) और अन्य पिछड़ा वर्ग की 38.3 फीसदी महिलाएं सप्ताह में कम से कम एक बार अंडे का सेवन जरूर करती थी.

अधिक जानकारी के लिए कृपया ग्राफ 3B देखें!

स्त्रोत--- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 (2019-21) रिपोर्ट के लिए कृपया यहाँ क्लिक कीजिए

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 4 (2015-16) रिपोर्ट के लिए कृपया यहाँ क्लिक कीजिए

 

मांसाहारियों का क्षेत्रवार विश्लेषण!

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के पांचवे सर्वे में भारत के सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को छः क्षेत्रों में बांटा गया है. – उत्तरी भारत, दक्षिणी भारत, पश्चिमी भारत, पूर्वी भारत और उत्तर पूर्वी भारत.
सबसे अधिक मांस‘आहार’ का सेवन दक्षिण भारत में होता है.
नीचे दिए गए चार्ट–1 को देखिए. राज्यवार आंकड़े दिए गए हैं. एनएफएचएस–5 पर आधारित. जिस राज्य से सम्बंधित आप आंकड़े देखना चाहते हैं वहां दबाइए.

 

दक्षिण भारत के बाद सप्ताह में कम से कम एक बार नॉन वेज खाने वालों में उत्तर पूर्वी भारत का नंबर आता है. फिर पूर्वी भारत, पश्चिमी भारत, मध्य भारत का नंबर आता है.
पश्चिम बंगाल, पूर्वी भारत के राज्यों में सबसे अधिक मांसाहार खाने वाला राज्य है.

वैवाहिक स्थिति और खानपान


राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े विवाह के बाद इंसान के खानपान में आए बदलाव को दर्शाते हैं. 
मिसाल के लिए, वर्ष 2019–21 में सप्ताह में कम से कम एक बार चिकन या मीट खाने वालों में सबसे अधिक अनुपात अविवाहित पुरुषों में 47.4 फीसदी, फिर विवाहित पुरुषों में 46.6 फीसदी, तलाकशुदा पुरुषों में 40.6 फीसदी, विधवा पुरुषों में 40.3 फीसदी.महिलाओं के संदर्भ में बात करें तो सबसे अधिक अनुपात तलाकशुदा महिलाओं में 40.5 फीसदी, वर्तमान में विवाहित महिलाओं में 36.7 फीसदी, विधवा महिलाओं में 36.2 फीसदी और सबसे कम अनुपात अविवाहित महिलाओं में 33.3 फीसदी.
कृपया ग्राफ नंबर 4A देखें!
 

वर्ष 2015–16 की बात करें, तो सप्ताह में कम से कम एक बार चिकन या मीट खाने वाली महिलाओं में सबसे अधिक अनुपात तलाकशुदा महिलाओं में 35.1 फीसदी फिर वर्तमान में शादीशुदा महिलाओं में 33.0 फीसदी, अविवाहित महिलाओं में 31.3 फीसदी और सबसे कम अनुपात विधवा महिलाओं में 31.2 फीसदी.

स्त्रोत--- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 (2019-21) रिपोर्ट के लिए कृपया यहाँ क्लिक कीजिए

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 4 (2015-16) रिपोर्ट के लिए कृपया यहाँ क्लिक कीजिए




सन्दर्भ-

IMAGE CREDIT- Pinterest

National Family Health Survey-5 (2019-21), India Report, released in March 2022, International Institute for Population Sciences (IIPS), Ministry of Health and Family Welfare (MoHFW), please click here to access

National Family Health Survey-4 (2015-16), India Report, released in December, 2017, International Institute for Population Sciences (IIPS), Ministry of Health and Family Welfare (MoHFW), please click here to access 

India Fact Sheet NFHS-5, IIPS, MoHFW, please click here to access

Report: The Politics of Protein: Examining claims about livestock, fish, ‘alternative proteins’ and sustainability, prepared by the International Panel of Experts on Sustainable Food Systems (IPES-Food), published in April 2022, please click here to access

Executive Summary: The Politics of Protein: Examining claims about livestock, fish, ‘alternative proteins’ and sustainability, prepared by the International Panel of Experts on Sustainable Food Systems (IPES-Food), published in April 2022, please click here to access 

Infosheet: The Politics of Protein - Fake Meat in the Spotlight, published in April 2022, please click here to access 

Food fascism violates our right to food and nutrition, state eminent citizens, Statement issued by Concerned Citizens, Doctors, Nutritionists, Parents, Advocates and Researchers dated 5th May, 2022, please click here to read

NFHS Data Shows More men Eating Non-veg Than Before, Newsclick.in, 17 May, 2022, please click here to read more


IMAGE CREDIT- Pinterest


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