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चर्चा में.... | WPI और CPI सहित महँगाई से जुड़े तमाम पहलुओं के बारे में जानिए विस्तार से
WPI और CPI सहित महँगाई से जुड़े तमाम पहलुओं के बारे में जानिए विस्तार से

WPI और CPI सहित महँगाई से जुड़े तमाम पहलुओं के बारे में जानिए विस्तार से

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published Published on Jun 22, 2023   modified Modified on Jun 22, 2023

संबंधित प्राधिकरण जब भी महँगाई से जुड़े आँकड़े जारी करता है, समाचार माध्यमों की सुर्खियाँ इन्हीं आँकड़ों से लद जाती है। हाल ही में आर्थिक सलाहकार के ऑफिस ने थोक मूल्य सूचकांक के आँकड़े जारी किए थे; जिसमें मई (2023) महीने में महँगाई को नकारात्मक दर से बढ़ते हुए दर्शाया है। ये नकारात्मक (माइनस) आँकड़ों में महँगाई किस तरह से आती है? महँगाई का आकलन कैसे किया जाता है? महँगाई की जरूरत क्या है? महँगाई से जुड़े तमाम सवालों का जवाब आज के लेख में।

महँगाई क्या है?

कुछ चुनिंदा वस्तुओं के मूल्यों में आई बढ़ोतरी को मुद्रास्फीति (इनफ्लेशन) या महँगाई कहते हैं। महँगाई की गणना करने के लिए 'मूल्य सूचकांकों' का इस्तेमाल किया जाता है। 

मूल्य सूचकांक क्या है?

ज़रूरी वस्तुओं व सेवाओं की कीमतों में आ रहे बदलाव को समझने के लिए सूचकांकों का इस्तेमाल किया जाता है। अब आप पूछेंगे कि ये मूल्य सूचकांक काम कैसे करते हैं ? तो मूल्य सूचकांक बनाने के लिए मोटे तौर पर दो स्तरों को पार करना होता है।

पहला, एक आधार वर्ष तय किया जाता है। और सूचकांक में शामिल हरेक वस्तु व सेवा की कीमत को ‘आधार मूल्य’ (Base Price) में बदला जाता है।

दूसरे स्तर में, किसी खास वर्ष के लिए ‘मूल्य सूचकांक’ (प्राइस इंडेक्स) तैयार किया जाता है। मूल्य सूचकांक बनाने के लिए सूचकांक में शामिल हरेक वस्तु/सेवा की उक्त वर्ष में जो कीमत (चालू कीमत) होती है उसमें आधार कीमत का भाग देकर 100 से गुणा कर दिया जाता है। अब जिस मान (वैल्यू) की प्राप्ति हुई है वो उक्त वस्तु/सेवा की इंडेक्स वैल्यू (सूचकांक मूल्यों) है। सभी के सूचक मूल्यों को एक खास सूत्र का प्रयोग करते हुए समग्र रूप से जोड़ा दिया जाता है। 

इन सूचकांक मूल्यों में आए बदलाव के आधार पर ही महँगाई की प्रतिशत दरें तय की जाती है। उदाहरण के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं- महँगाई दरों में आए परिवर्तन को जानने के लिए दो पैमाने लिए जाते हैं–पहला, पिछले महीने को आधार बनाकर तुलना करना। दूसरा, पिछले वर्ष के उसी महीने को आधार बनाकर तुलना करना।

वर्ष 2022 के मई महीने में थोक मूल्य सूचकांक का समग्र इंडेक्स वैल्यू 154.0 था। हाल ही में जारी किए गए WPI में इंडेक्स वैल्यू घटकर 149.6 पहुंच गया।

अगर इस बदलाव को प्रतिशत में देखें तो (–)3.48% का आंकड़ा आता है। अतः मई 2023 में महंगाई की दर (–)3.48% रही। नीचे दी गई टेबल (1&2) को संदर्भ के तौर पर देखें।

चित्र में- मई 2022 में सूचकांक मूल्य.

चित्र में- मई 2023 में सूचकांक मूल्य.

वहीं पिछले महीने को आधार मानने पर महंगाई की दर (–)0.86% निकल कर आती है। 

 

मुद्रास्फीति का पता लगाने के लिए कई मूल्य सूचकांकों का इस्तेमाल किया जाता है; जैसे– उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई), थोक मूल्य सूचकांक (होलसेल प्राइस इंडेक्स), उत्पादक मूल्य सूचकांक (प्रोड्यूसर प्राइस इंडेक्स) आदि।

आइए अब जानते है मूल्य सूचकांकों के बारे में- 

थोक मूल्य सूचकांक

थोक स्तर पर कीमतों में हो रहे उतार–चढ़ाव को समझने के लिए इस सूचकांक का प्रयोग किया जाता है। यह सूचकांक आर्थिक सलाहकार कार्यालय, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा प्रतिमाह जारी किया जाता है। इसका आधार वर्ष 2011–12 है जिसे 2017 में अपनाया गया था। इसमें कुल 697 वस्तुओं को शामिल किया गया है।

नीचे दिए गए ग्राफ में, मई 2022 से मई 2023 तक के महँगाई के आँकड़ों को दर्शाया है। अब सवाल यह उठता है कि क्या वाकई महंगाई में कमी आ रही है? इसका जवाब बेस इफेक्ट वाले पैराग्राफ में।

 

 

गौरतलब है कि थोक स्तर पर आए बदलावों का असर खुदरा स्तर पर देखने को मिलता है हालाँकि, ये कोई बाध्यता नहीं है कई बार थोक स्तर के रुझान खुदरा स्तर पर परिलक्षित नहीं भी होते हैं।

 

खुदरा स्तर पर आ रहे उतार-चढाव को जानने के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का इस्तेमाल किया जाता है।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई)

चयनित वस्तुओं और सेवाओं के खुदरा मूल्यों में आए बदलाव को दर्ज करता है। चार तरह के सीपीआई इंडेक्स जारी किए जाते हैं—

1. औद्योगिक श्रमिकों के लिए सीपीआई

2. कृषि मजदूरों के लिए सीपीआई

3. ग्रामीण मजदूरों के लिए सीपीआई

4. समग्र भारत के लिए सीपीआई

 

पहले तीन सूचकांकों को श्रम और रोजगार मंत्रालय के श्रम ब्यूरो द्वारा जारी किए जाते हैं जबकि समग्र भारत के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अधीन आने वाले राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के द्वारा तैयार किया जाता है। गौरतलब है कि समग्र भारत के लिए बनाए गए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में तीन तरह के आँकड़ों का समावेशन किया जाता है– शहरी, ग्रामीण और संयुक्त रूप से।

सीपीआई के लिए वर्ष 2012 को आधार वर्ष के रूप में चयनित किया है।

WPI की तरह ही CPI में भी 'प्वाइंट टू प्वाइंट' विधि का इस्तेमाल किया जाता है; जिसमें महंगाई की गणना करने के लिए पिछले वर्ष के उसी महीने (जिस माह की महंगाई ज्ञात करनी है) से तुलना की जाती है।

मई 2023 के लिए जारी किए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का विश्लेषण–

सूचकांक के अनुसार— ग्रामीण, शहरी और संयुक्त सूचकांकों में महँगाई कम हुई है। अप्रैल 2023 में ग्रामीण, शहरी और संयुक्त हेतु महँगाई दर क्रमशः 4.68%, 4.85%, 4.70% थी जो कि कम हो कर क्रमशः 4.17%, 4.27% और 4.25 प्रतिशत हो जाती है।

कृपया नीचे दी गई टेबल को संदर्भ के रूप में देखें—

गौरतलब है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ राज्य विशेष के महंगाई पर आंकड़े जारी किए जाते हैं ताकि राज्यों में महँगाई का अंदाजा लगाया जा सके।

 

आँकड़ों की चकाचौंध

लेख के इस हिस्से में हम दो मुद्दों को स्पष्ट करेंगे। पहला, बेस इफेक्ट (आधार प्रभाव) क्या होता है? दूसरा, समग्र रूप से सूचकांक में महँगाई घटते हुए दिखती है पर कई वस्तुओं की कीमतें आसमान को छू रही होती है।

क्या होता है बेस इफेक्ट

कई बार महँगाई की दर बहुत ऊंची या बहुत कम दिखाई देती है जबकि वस्तुस्थिति अलग होती है; अर्थशास्त्रीय भाषा में इसे बेस इफेक्ट की संज्ञा दी जाती है। आइए, आसान भाषा में समझते हैं। (ध्यान दें महँगाई की गणना कैसे की जाती है इसका जिक्र हमने लेख के शुरुआत में किया था।)

मान लीजिए कि वर्ष 2021 के मई महीने में सेब का भाव 100 रुपए किलो था। वर्ष 2022 के मई महीने में बढ़कर 200 रुपए किलो हो जाता है। अतः वर्ष 2022 के मई में सेब के मामले में 100% की महँगाई दर देखी गई। वहीं वर्ष 2023 के मई महीने में एक किलो सेब की कीमत 180 रुपए हो जाती है; तब कहा जाएगा की महँगाई दर घटकर –10% हो गई है जबकि वर्ष 2021 के मई महीने की तुलना में अभी भी प्रति किलो 80 रुपए ज्यादा है। इसी दशा को बेस इफेक्ट कहा जाता है।

ऊपर आपने WPI के आँकड़ों को देखा, जहाँ महँगाई में निरंतर गिरावट आ रही है जिसके पीछे का एक कारण बेस इफेक्ट है।

आपने देखा होगा कि कई बार महँगाई की दरों में गिरावट आती है; मीडिया उस पर खबरें छापता है, सत्ता पक्ष वाहवाही लूटता है। लेकिन यह गिरावट समग्र होती है। सूचकांक को निकालने के लिए प्रयोग की गई टोकरी में कई वस्तुओं और सेवाओं को शामिल किया जाता है। उनमें से कुछेक वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ रही होती है पर समग्र रूप से सूचकांक में महँगाई की दर में गिरावट आ रही होती है।

मिसाल के तौर पर पिछले दो सीपीआई सूचकांकों को देखें।

अप्रैल 2023 की तुलना में मई 2023 में महँगाई दर में गिरावट आती है।

लेकिन, कई वस्तुओं जैसे दूध और उत्पाद, दाल और उत्पाद की महँगाई दर अप्रैल 2023 की तुलना में मई 2023 में बढ़ जाती है। नीचे दी गई सारणी को देखें।

पिछले वर्ष हमने एक विस्तृत लेख लिखा था उसे आप पढ़ सकते हैं।

WPI और CPI में से बेहतर कौनसा है?

WPI की तुलना में CPI को बेहतर माना जाता है क्योंकि— WPI को थोक स्तर की कीमतों को आधार बनाकर तैयार किया जाता है जबकि सीपीआई को खुदरा उपभोक्ता के स्तर की कीमतों का प्रयोग कर तैयार किया जाता है। यानी उपभोक्ताओं पर महँगाई के असर को समझने में सहायक। इसीलिए आरबीआई भी इन्फ्लेशन टार्गेटिंग के लिए सीपीआई का इस्तेमाल करता है।

WPI में सेवा क्षेत्र को शामिल नहीं किया जाता है जबकि सीपीआई सेवा क्षेत्र को शामिल करता है। गौरतलब है कि सेवा क्षेत्र का आम इंसान के जीवन में महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप रहता है।

सन्दर्भ--

WPI manual released by Office of the Economic Adviser, please click here.
Office of the Economic Adviser, WPI Press Release Archive, please click here.
Ministry of Statistics and Program Implementation please click here.
ExplainSpeaking: Is inflation-targeting the right policy mandate for India? by Indian Express.
WPI eases to 29-month low of 1.34% in March on favourable base effect by indian express.
CPI, May & June 2023 released by MoSPI.
WPI, May & June 2023 released by Office of the Economic Adviser.
Labour Bureau Under the Ministry of Labour and Employment, Government of India, please click here. 
News alert by IM4Change.org titled "मीडिया की सुर्ख़ियों से गायब है अनाजों में बढ़ती 'महंगाई दर' की बात!" please click here & here. 

 

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