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चर्चा में.... | हाल-फिलहाल में जारी हुई अधिकांश रिपोर्टें बता रही हैं कि अर्थव्यवस्था का पहिया थमने वाला है!
हाल-फिलहाल में जारी हुई अधिकांश रिपोर्टें बता रही हैं कि अर्थव्यवस्था का पहिया थमने वाला है!

हाल-फिलहाल में जारी हुई अधिकांश रिपोर्टें बता रही हैं कि अर्थव्यवस्था का पहिया थमने वाला है!

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published Published on May 6, 2020   modified Modified on May 6, 2020

अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक, आधिकारिक एजेंसियों और निजी संस्थाओं द्वारा जारी की गईं अधिकांश रिपोर्टें और अध्ययन कोरोनवायरस महामारी से अर्थव्यवस्था और समाज पर पड़ने वाले प्रलयकारी प्रभावों की तरफ इशारा करते हैं. उनका अनुमान है कि दुनिया भर के विभिन्न देशों द्वारा COVID -19 (यानी सोशल डिस्टेंसिंग और क्वॉरंटीन) को कम करने के लिए लगाए गए लॉकडाउन आर्थिक क्षेत्रों से संबंधित आर्थिक विकास को प्रभावित करेंगे और अधिकांश क्षेत्रों में सप्लाई चेन को बाधित करेंगे. ये लॉकडाउन अधिकांश लोगों के लिए काफी कष्टदायक साबित होंगे.

नौकरियां कम होने पर आइएलओ (ILO) की पूर्वसूचना

आइएलओ (ILO) मॉनिटर ऑन COVID-19 एंड वर्ल्ड ऑफ वर्क के दूसरे संस्करण में पाया गया है कि भारत में 90 प्रतिशत श्रमिक अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में कार्यरत हैं. परिणामस्वरूप, COVID-19 महामारी के इस संकट के दौरान अनौपचारिक क्षेत्र के लगभग 40 करोड़ श्रमिकों पर गरीबी के घेरे में घंसने का खतरा उभर आया है. गौरतलब है कि सरकार द्वारा बिन तैयारी के लिए गए लॉकडाउन के फैसले की वजह से हमारे देश को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा जारी COVID-19 इंडेक्स में अंत में रखा गया है. लॉकडाउन मुख्यत रूप से अनौपचारिक श्रमिकों को बुरी तरह से प्रभावित करेगा, जिसकी वजह से उनमें से बहुतेरों को वापस (गंतव्य स्थानों से) ग्रामीण या पिछड़े क्षेत्रों में स्थित अपने मूल स्थानों पर वापस लौटने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. कृपया चार्ट -1 देखें.

चार्ट 1: लॉकडाउन और अन्य महामारी नियंत्रण उपायों के चक्र में फंसे अनौपचारिक श्रमिक

स्रोत: ILO मॉनिटर (दूसरा संस्करण): COVID-19 एंड वर्ल्ड ऑफ वर्क, 7 अप्रैल 2020, एक्सेस करने के लिए कृपया यहां क्लिक करें.

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आईएमएफ पूर्वानुमान

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपने वर्ड इकनॉमिक आउटलुक (अप्रैल, 2020 में जारी) में साल 2020 में भारत में (1.9 प्रतिशत) और इंडोनेशिया (0.5 प्रतिशत) सहित मामूली दरों वाली एशिया की कई अर्थव्यवस्थाओं के बारे में अनुमान लगाए हैं, हालांकि अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं की भी हालत पतली होने के अनुमान हैं (जैसे थाईलैंड, -6.7 प्रतिशत).

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आईएमएफ द्वारा जारी वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक के नवीनतम अंक के अनुसार, भारत के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद-जीडीपी (जो कि मुद्रास्फीति के खिलाफ समायोजित है) की विकास दर 2019-20 में 4.2 प्रतिशत से घटकर 2020-21 में 1.9 प्रतिशत रहने की उम्मीद है, और 2021-22 में फिर से बढ़कर 7.4 प्रतिशत हो सकती है. कृपया तालिका -1 देखें.

गौरतलब है कि आईएमएफ के वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक में दिए गए डेटा कैलेंडर वर्षों को संदर्भित करता है, सिवाय कुछ देशों के मामले में जो वित्तीय वर्ष का उपयोग करते हैं. भारत के मामले में, नेशनल अकाउंट्स और सरकारी वित्त आंकड़ों की रिपोर्टिंग अवधि अप्रैल-मार्च है.

आईएमएफ के वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक के आर्थिक सलाहकार और अनुसंधान निदेशक गीता गोपीनाथ ने अन्य बातों के अलावा, यह भी उल्लेख किया है कि "क्वॉरंटीन, लॉकडाउन, और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे सभी उपाय संक्रमण को धीमा करने के लिए महत्वपूर्ण हैं, जिससे स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को इसके बढ़ते प्रकोप पर लगाम लगाने के लिए समय मिलता है और साथ ही शोधकर्ताओं द्वारा थेरेपी और एक वैक्सीन विकसित करने की कोशिशों के लिए समय की पूर्ति होती है." उन्होंने यह भी कहा है कि "स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में पर्याप्त क्षमता और संसाधन सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य देखभाल खर्च में वृद्धि करना आवश्यक है."

आईएमएफ की रिपोर्ट के अनुसार, "व्यापक स्तर पर राजकोषीय प्रोत्साहन गिरावट को कम कर सकता है, और कुल मांग को बढ़ा सकता है, जोकि एक और भी बड़ी गिरावट को रोक सकता है. कोरोना के अधिक प्रभावी होने के बाद जब एक बार प्रकोप फीका पड़ता है और लोग स्वतंत्र रूप से घूम-फिर पाते हैं. केंद्रीय बैंकों के अन्य उपायों में, प्रणालीगत तनाव को कम करने के लिए मोनिटरी स्टिमुलस और लिक्वीडिटी सुविधाएं भी अर्थव्यवस्था को वर्तमान संकट से निपटने में मदद कर सकती हैं."

आधिकारिक वृद्धि का अनुमान

जैसा कि आईएमएफ की 4.2 प्रतिशत वास्तविक जीडीपी वृद्धि (तालिका -1 देखें) की भविष्यवाणी के विपरीत, MoSPI के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) (COVID-19 संकट से पहले जारी) ने 2019-20 में भारत की वास्तविक जी.डी.पी. की वृद्धि 5.0 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था (जो दूसरा अग्रिम अनुमान है).

आईएमएफ द्वारा अनुमानित वास्तविक जीडीपी (परामर्श तालिका -1) में 1.9 प्रतिशत वृद्धि के विपरित, आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20, जो महामारी / लॉकडाउन से पहले जारी किया गया था, ने वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान 6.0-6.5 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि (वास्तविक जीडीपी विकास दर) रहने की उम्मीद जताई थी.

6 मार्च से 19 मार्च, 2020 के दौरान व्यावसायिक पूर्वानुमानकर्ताओं (एसपीएफ) के सर्वेक्षण(जिसमें पच्चीस पैनेलिस्टों ने भाग लिया) के आधार पर, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भविष्यवाणी की है कि साल 2019-20 में वास्तविक जीडीपी 5.0 प्रतिशत बढ़ने की संभावना है और 2020-21 में 5.5 प्रतिशत तक बढ़ने की उम्मीद है. इसके विपरीत, आरबीआई ने जनवरी 2020 में व्यावसायिक पूर्वानुमानों का सर्वेक्षण करने के बाद (जिसमें चालीस पैनेलिस्टों ने भाग लिया) 2019-20 में वास्तविक जीडीपी के 5.0 प्रतिशत और 2020-21 में 5.9 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान लगाया था.

यह भी गौरतलब है कि 2019-20 में संभावित 4.5-4.9 प्रतिशत वास्तविक जीडीपी विकास दर से संबंधित औसत संभावना 0.57 है और संभावित 5.0-5.4 प्रतिशत विकास दर की औसत संभावना 0.32 (63 वें दौर के अनुसार) है. इसी तरह, 2020-21 में संभावित 5.0-5.4 प्रतिशत वास्तविक जीडीपी विकास दर से संबंधित औसत संभावना 0.34 है और संभावित 5.5-5.9 प्रतिशत की विकास दर की औसत संभावना 0.27 है.

2019-20 में 'कृषि और संबद्ध गतिविधियों' से संबंधित वास्तविक ग्रोस वेल्यू एडेड (GVA) में वृद्धि के लिए औसत पूर्वानुमान (63 वें दौर के सर्वेक्षण के आधार पर) 3.6 प्रतिशत (62 वें दौर में अनुमानित वृद्धि की तुलना में उच्चतर +0.8 प्रतिशत अंक) है, जोकि 2020-21 में 3.0 प्रतिशत तक कम होने की उम्मीद है (पिछले दौर की भविष्यवाणी की तुलना में -0.2 प्रतिशत अंक कम).

स्रोत: भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी मैक्रोइकॉनॉमिक इंडिकेटर्स पर प्रोफेशनल फोरकास्टर्स का सर्वेक्षण -3 अप्रैल, 2020 को जारी 63 वें दौर के परिणाम, देखने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें .

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2019-20 में 'उद्योग' से संबंधित रियल ग्रोस वेल्यू एडेड (जीवीए) में वृद्धि के लिए औसत पूर्वानुमान (63 वें दौर के सर्वेक्षण के आधार पर) 1.5 प्रतिशत (पिछले दौर में अनुमानित वृद्धि की तुलना में -0.5 प्रतिशत अंक नीचे) है, जो 2020-21 में 2.9 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है (हालांकि 62 वें दौर के पूर्वानुमान की तुलना में -1.1 प्रतिशत अंक कम).

2019-20 में 'सेवाओं' से संबंधित रियल ग्रोस वेल्यू एडेड (GVA) में वृद्धि के लिए औसत पूर्वानुमान (63 वें दौर के सर्वेक्षण पर आधारित) 6.5 प्रतिशत (62 वें दौर में अनुमानित वृद्धि की तुलना में -0.3 प्रतिशत अंक नीचे) है, जो 2020-21 में मामूली वृद्धि के साथ 6.8 प्रतिशत होने की संभावना है (हालांकि पिछले दौर के पूर्वानुमान की तुलना में -0.4 प्रतिशत अंक कम).

63 वें दौर के दौरान व्यावसायिक पूर्वानुमानकर्ताओं के सर्वेक्षण के आधार पर विकास की भविष्यवाणियां आईएमएफ की तुलना में संभवतः अलग चित्र दर्शाती हैं, क्योंकि देश भर में लॉकडाउन से कम से कम एक सप्ताह पहले आरबीआई के 25 पैनलिस्टों ने सर्वेक्षण किया गया था. (अर्थात 25 मार्च, 2020).

गौरतलब है कि RBI के 'सर्वे ऑफ प्रोफेशनल फोरकास्ट ऑन मैक्रोइकोनॉमिक इंडिकेटर्स- 63 वें और 62 वें राउंड के नतीजे' में प्रस्तुत किए गए परिणाम प्रतिवादी पूर्वानुमानकर्ताओं के विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं और किसी भी तरह से केंद्रीय बैंक के विचारों या पूर्वानुमानों को नहीं दर्शाते हैं.

अप्रैल 2020 की अपनी मोनिटरी पॉलिसी रिपोर्ट में, आरबीआई ने कहा है कि "कुल मिलाकर, कृषि और संबिंधित गतिविधियों के निरंतर लचीलेपन के अलावा, अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों पर महामारी, इसकी तीव्रता, प्रसार और अवधि के आधार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. "

एसबीआई द्वारा लगाए गए अनुमान

16 अप्रैल, 2020 को जारी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की इकोरैप रिपोर्ट कहती है कि 3 मई, 2020 तक लॉकडाउन के और विस्तार के कारण (20 अप्रैल, 2020 से कुछ छूट के साथ), वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए वास्तविक जीडीपी विकास दर लगभग 1.1 प्रतिशत होने की संभावना है (जो कि आईएमएफ की 1.9 प्रतिशत अनुमानित विकास दर से कम है). 2020-21 में नाममात्र जीडीपी की वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत के रूप में ली गई है और अनुमानित जीडीपी डिफ्लेटर 3.1 प्रतिशत है. एसबीआई की रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि 2019-20 में वास्तविक जीडीपी विकास दर 5.0 प्रतिशत के बजाय 4.1 प्रतिशत होगी (जो कि आईएमएफ की 4.2 प्रतिशत अनुमानित विकास दर वास्तविक जीडीपी के करीब है).

पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे की रिपोर्ट 2017-18 के आधार पर, एसबीआई की इकोरैप रिपोर्ट में पाया गया है कि स्व-पोषित, नियमित और अनियमित श्रमिकों के रूप में 37.3 करोड़ कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनमें स्व-पोषित कर्मचारियों की हिस्सेदारी 52.1 प्रतिशत है, जबकि अनियमित श्रमिक 25.0 प्रतिशत हैं और बाकी नियमित वेतन कमाने वाले लोगों के रूप में कार्यरत हैं. एसबीआई अनुसंधान टीम द्वारा यह अनुमान लगाया गया है कि लॉकडाउन के कारण इन 37.3 करोड़ श्रमिकों की प्रति दिन आय की हानि लगभग 10,151 करोड़ रुपये है, जोकि 40 दिनों की लॉकडाउन अवधि (30 दिनों की लॉकडाउन अवधि के लिए 3.05 लाख करोड़ रुपये) के लिए 4.06 लाख करोड़ रुपये के नुकसान के रूप में उभरती है. इस प्रकार, एसबीआई रिपोर्ट की सिफारिश है कि लॉकडाउन की वजह से हुए नुकसान की भरपाई के लिए किसी भी वित्तीय पैकेज को कम से कम इस 4.06 लाख करोड़ रुपये की देकर नुकसान की भरपाई करने की कोशिश करनी चाहिए.

यह गौरतलब है कि कई सामाजिक नागरिक समूहों और संबंधित नागरिकों ने (केंद्र और राज्य सरकारों से) गरीब, जरूरतमंद और समाज के कमजोर वर्गों के लिए एक समय आपातकालीन नकद राहत उपाय के रूप में 3.75 लाख करोड़ रुपये की मांग की थी.

केपीएमजी और मैकिन्से एंड कंपनी द्वारा पूर्वानुमान

केपीएमजी द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था पर COVID-19 के संभावित प्रभाव के बारे में रिपोर्ट (अप्रैल 2020 में जारी) में चर्चा की गई है कि आर्थिक विकास 3 अलग-अलग परिदृश्यों के तहत कैसे भिन्न होगा. यदि अप्रैल से मध्य मई तक भारत सहित दुनिया भर में त्वरित वापसी होती है, यानी सब ठीक हो जाता है तो अर्थव्यवस्था 2020-21 में 5.3-5.7 प्रतिशत बढ़ सकती है.

अगर भारत COVID-19 ट्रांसमिशन को नियंत्रित करने में सक्षम होने के बावजूद वैश्विक मंदी का शिकार होता है, तो देश 4.0-4.5 प्रतिशत की सीमा में विकास दर प्राप्त कर सकता है.

यदि देश के भीतर COVID-19 संक्रमण और अधिक फैलता है और वैश्विक मंदी के बीच लॉकडाउन का विस्तार होता है, तो भारत को 2020-21 में 3 प्रतिशत से नीचे आर्थिक वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है.

इसी तरह, मैकिन्से एंड कंपनी (अप्रैल 2020 में प्रकाशित) के लिए रजत गुप्ता और अनु मडगावकर द्वारा लिखे गए एक लेख ने तीन अलग-अलग आर्थिक परिदृश्यों के तहत 2020-21 के लिए जीडीपी अनुमान प्रदान किए हैं. परिदृश्य 1 में, वित्त वर्ष 2020-21 में अर्थव्यवस्था के 1.0-2.0 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है. इस परिदृश्य में, यह माना गया है कि 15 अप्रैल, 2020 के बाद COVID-19 लॉकडाउन में ढील दी जाएगी और उसके बाद माल और व्यक्तियों की आवाजाही के लिए उपयुक्त प्रोटोकॉल लगाए जाएंगे. यह भी मान लिया गया है कि वित्तीय और मोनिटरी राहत पैकेज के रूप में परिवारों, निगमों और बैंकिंग प्रणाली (उन्हें बचाने और पुनर्जीवित करने के लिए) को वित्तीय सहायता दी जाएगी, जोकि जीडीपी के 3 प्रतिशत के बराबर है.

परिदृश्य 2 में, अर्थव्यवस्था 2020-21 के दौरान -2.0 से –3.0 प्रतिशत तक सीमित रहेगी. इस परिदृश्य में, यह माना गया है कि COVID-19 लॉकडाउन मई 2020 के मध्य तक जारी रहेगा, इसके बाद आपूर्ति श्रृंखलाओं का बहुत धीरे-धीरे फिर से शुरू होना और 3-4 महीनों में खपत और उत्पादन का सामान्यीकरण होगा. इस परिदृश्य के तहत आर्थिक स्थिरता का मुकाबला करने और घरों, कंपनियों, और उधारदाताओं को स्थिर और संरक्षित करने के लिए, देश को सकल घरेलू उत्पाद का 5 प्रतिशत आवंटित करने की आवश्यकता होगी.

परिदृश्य 3 में, अर्थव्यवस्था 2020-21 के दौरान -8.0 से -10.0 प्रतिशत तक सिकुड़ जाएगी. तीसरे परिदृश्य में, यह माना गया है कि "वायरस वर्ष के बाकी समय में कुछ बार अपना प्रकोप दोबारा दिखाएगा, जिसके लिए लंबे समय के लिए लॉकडाउन की आवश्यकता होगी, जिससे काम फिर से शुरू करने के लिए प्रवासियों के बीच अधिक अनिच्छा पैदा होगी, और वसूली की बहुत धीमी गति सुनिश्चित होगी." इस परिदृश्य में सीमित रिवर्स माइग्रेशन के कारण श्रम की कमी होगी. स्थिरीकरण और राहत पैकेज की आवश्यकता परिदृश्य 2 की तुलना में बहुत व्यापक होगी.

 

 

References

World Economic Outlook, April 2020: Chapter-1, International Monetary Fund, please click here to access 

ILO Monitor 2nd edition: COVID-19 and the world of work, Updated estimates and analysis, International Labour Organization, 7 April, 2020, please click here to access

Coronavirus Government Response Tracker, Blavatnik School of Government, University of Oxford, please click here to access

Press Note on Second Advance Estimates of National Income 2019-20 and Quarterly Estimate of Gross Domestic Product for the Third Quarter (Q3) of 2019-20, released on 28th February, 2020, please click here to access

Economic Survey 2019-20, Volume-2, Ministry of Finance, please click here to access

Survey of Professional Forecasters on Macroeconomic Indicators–Results of the 63rd Round, released on 3rd April, 2020, Reserve Bank of India, please click here to access 

Survey of Professional Forecasters on Macroeconomic Indicators–Results of the 62nd Round, released on 6th February, 2020, Reserve Bank of India, please click here to access 

Monetary Policy Report - April 2020, Reserve Bank of India, please click here to access 

State Bank of India Ecowrap, Issue No. 03, FY21, released on 16th April, 2020, please click here to access

Potential impact of COVID-19 on the Indian economy by KPMG, April 2020, please click here to access 

Getting ahead of coronavirus: Saving lives and livelihoods in India -Rajat Gupta and Anu Madgavkar, McKinsey & Company, April 2020, please click here to access

FM’s announcement of Rs 1.7 lakh crore in the wake of COVID-19, is less than half of the Rs. 3.75 lakh crores required to fulfill the minimal “emergency measures”, convey concerned citizens & grassroots activists, Press releases by NREGA Sangharsh Morcha dated 26th March, 2020, please click here to access

Annual Report on Periodic Labour Force Survey (July 2017 - June 2018), National Statistical Office, released in May 2019, please click here to access


Image Courtesy: Inclusive Media for Change/ Shambhu Ghatak



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