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चर्चा में.... | पोषक अनाजों की खेती:- वर्तमान और भविष्य
पोषक अनाजों की खेती:- वर्तमान और भविष्य

पोषक अनाजों की खेती:- वर्तमान और भविष्य

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published Published on Mar 7, 2023   modified Modified on Mar 14, 2023

पोषक अनाजों की अहमियत को समझते हुए भारत सरकार ने खाद्य और कृषि संगठन के सामने एक प्रस्ताव रखा था। नतीजन पूरी दुनिया, वर्ष 2023 को, अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के रूप में मना रही है।भारत,दुनिया में पोषक अनाजों का सबसे बड़ा उत्पादनकर्ता है। साल 2020 में विश्व के कुल उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी करीब 41 फीसदी के आस–पास थी। पढ़िए इस लेख में पोषक अनाजों पर विस्तार से;

प्राचीन काल में कई सभ्यताएं बनी और विलुप्त हो गई। लेकिन, एक सभ्यता बनने के बाद कभी खत्म नहीं हुई, जिसे हम सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से जानते हैं। अतीत के उन ठियों से पोषक अनाजोंके साक्ष्य मिले थे। करीब 5,000 साल पहले।

मोटे अनाज/पोषक अनाज/श्री अन्न से क्या तात्पर्य है?


पोषक अनाजों में, भतेरे किस्म के छोटे–छोटे बीजों को शामिल किया जाता है। जिनकी बुवाई अन्न की प्राप्ति के लिए की जाती है। ये बोवाई शीतोष्ण कटिबंध, उपोष्ण कटिबंध और उष्ण कटिबंध के शुष्क इलाकों में की जाती है।

भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने पोषक अनाजों की कुल 10 किस्मों का उल्लेख किया है। मुख्य पोषक अनाज- ज्वार (Sorghum), बाजार (Pearl Millet) और रागी (Finger Millet)। छोटे मिलेट्स में ककुम (Foxtail Millet), कोडों, संवा (Barnyard Millet), कुटकी (Little Millet) और चीना (Proso Millet) आते हैं। वहीं सूडो मिलेटस की श्रेणी राजगीरा व कुट्टू आते हैं।

तस्वीर–1

भारत में सबसे अधिक पैदावार बाजरे की होती है, दूसरा नम्बर ज्वार का आता है। बाजरे व ज्वार की खेती रबी व खरीफ दोनों ऋतुओं में की जाती है। बाजरे की सबसे अधिक पैदावार राजस्थान राज्य से होती है। उसके बाद क्रमशः उत्तर प्रदेश, हरियाणा, और गुजरात का नंबर आता है। पिछले पांच सालों का विवरण देखने के लिए यहां क्लिक कीजिए।   

पोषक अनाजों की 70 फीसदी पैदावार छः राज्यों से होती है– राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश।

                                                               
तस्वीर–2: पांच प्रमुख राज्य.

वर्ष 2021–22 के चौथे अग्रिम अनुमान के अनुसार – ज्वार का सबसे अधिक रकबा महाराष्ट्र राज्य में (16.69 लाख हेक्टेयर), सबसे अधिक पैदावार महाराष्ट्र राज्य में (17.47 लाख टन) और सबसे अधिक उपज आंध्र प्रदेश राज्य से (3166 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) हुई है। बाजरे का सबसे अधिक रकबा राजस्थान राज्य में (37.36 लाख हेक्टेयर), सबसे अधिक पैदावार राजस्थान राज्य में (37.51 लाख टन) और सबसे अधिक उपज तमिलनाडु राज्य से (2616 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) हुई है।

रागी का सबसे अधिक रकबा कर्नाटक राज्य में (8.49 लाख हेक्टेयर), सबसे अधिक पैदावार कर्नाटक राज्य में (11.33 लाख टन) और सबसे अधिक उपज तमिलनाडु राज्य से (2972 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) हुई है।

 

सिमटता दायरा

1970 के दशक से पहले, आम भारतीयों की थाली में पोषक अनाजों से बने व्यंजनों का दबदबा रहता था। लेकिन, हरित क्रांति की घटना ने थाली का रंग बदल दिया। धीरे–धीरे पोषक अनाजों की पैदावार और रकबे में गिरावट आने लगती है। ये गिरावट केवल आंकड़ों से पैदा नहीं हुई थी। इस गिरावट को मजबूत किया था समाज के द्वारा तय की गई पसंद–नापसंद ने। गेहूँ और चावल अमीरी के पर्यायवाची बन जाते हैं और "मोटा अनाज" गरीबी का प्रतीक। उदाहरण के लिए वर्ष 2021–22 के आंकड़ों को देखते हैं, चावल की पैदावार 130.29 मिलियन टन व गेहूँ की पैदावार 106.84 मिलियन हुई थी। वहीं पोषक अनाजों के मामले में इसी एग्रीकल्चर ईयर में पैदावार– बाजरे की पैदावार 9.62 मिलियन टन, ज्वार की 4.23 मिलियन टन, रागी की 1.7 मिलियन टन और अन्य मोटे अनाजों की पैदावार 0.37 मिलियन टन की हुई थी।

नीचे दिए गए चार्ट को देखिए! सन् 1950 से लेकर अब तक के आंकड़ों को निरूपित किया है।  

मोटे अनाजों का रकबा निरंतर सिमट रहा है, उत्पादन भी निरंतर गिर रहा है। लेकिन, उपज (यील्ड) वाली रेखा उफान मार रही है। ये खेती–बाड़ी करने वालों के लिए शुभ संकेत है।

 

Source- Ministry of Agriculture & Farmers Welfare

एमएसपी काफी नहीं

पैदावार और रकबे में आ रही कमी को पाटने के लिए एमएसपी बढ़ाने की मांग की जाती है। क्या केवल एमएसपी पर टकटकी लगाकर बैठने से सब मंगल हो जाएगा? पिछले 5–6 वर्षों से केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी कर रही है। लेकिन, उसका कोई खास असर पैदावार पर नहीं दिख रहा है। नीचे दिए गए चार्ट–2 व 3 को देखिए!

 

चार्ट-2, पोषक अनाजों और चावल-गेहूं के लिए जारी की गई एमएसपी.

चार्ट 2 में एमएसपी की बढ़ोतरी को दर्शाया गया है। रागी के लिए जारी की गई एमएसपी में भारी बढ़ोतरी देखी जा सकती है। इसमें तीन पोषक अनाजों के साथ–साथ चावल व गेहूं के लिए जारी की गई एमएसपी का भी तुलनात्मक अध्ययन किया है। वहीं चार्ट 3 में पोषक अनाजों के रकबे व पैदावार को दर्शाया गया है।

एमएसपी जरूरी है। लेकिन, एमएसपी से सब संभव नहीं है। ऐसे कई पहलू हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

1- खाने की थाली और पोषक अनाज

एक सर्वेक्षण में पाया कि पोषक अनाजों का सेवन धीरे–धीरे कम हुआ है। सन् 1962 में प्रति व्यक्ति उपभोग 32.9 किलोग्राम था जो कि घटकर वर्ष 2010 में 4.2 किलोग्राम हो जाता है। गिरावट के कारणों की पड़ताल करने पर ज्ञात हुआ कि a.पोषक अनाजों की आपूर्ति पक्ष का कमजोर होना। b.पोषक अनाजों की पोषकता के बारे में जानकारी का अभाव। c. हरित क्रांति के कारण चावल और गेहूं की बंपर पैदावार, जिससे बाजार पर इन दो खाद्यान्नों का कब्जा हो गया। d. बढ़ते शहरीकरण जैसे कई कारक जिम्मेदार थे।

2. पोषक अनाजों की पैदावार भारत में सबसे अधिक होती है। पर निर्यात करने वाले देशों की फेहरिस्त में भारत का स्थान कौनसा है? उत्तर मिलेगा पांचवां। यानी अंतर्राष्ट्रीय बाजार का भरपूर लाभ नहीं लिया गया।

3. पोषक अनाजों की खेती सीमित राज्यों में होती है। इनमें भी विविधता धारण की हुई है। कई जगह फसलों के अनुकूल जलवायविक दशाएं होने के बावजूद वाणिज्यिक फसलों की बुवाई की जा रही है। नीचे दी गई टेबल को देखिए! इस टेबल में प्रमुख पोषक अनाजों के उत्पादक राज्यों का ब्यौरा है। कुछ राज्यों के रकबे में बढ़ोतरी हो रही है, तो वहीं कुछ राज्यों में उपज वाला आंकड़ा उछाल भर रहा है।

 

Source- Please click here, here, here,here,here,here&here

तेलंगाना राज्य में रकबा घटा है पर उपज में अच्छी–खासी बढ़ोतरी हुई है। पश्चिमी बंगाल राज्य में बंपर पैदावार हुई है क्योंकि रकबे में भी बढ़ोतरी हुई है। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार और गुजरात में रकबा घटा रहा है। बिहार में पैदावार भी घट रही है।

4. एमएसपी के तहत किया जा रहा भंडारण भी सीमित है। कुछ राज्यों में भंडारण की सुविधा अच्छी है तो वहीं कुछ राज्यों में किसान एमएसपी से ही अनजान हैं। 

 

पोषक अनाजों की ज़रूरत क्या है?

पोषक अनाजों को समाज में मोटे अनाजों की संज्ञा दी जाती थी/है। पोषक अनाजों के प्रति ये मोटी मानसिकता अज्ञानतावश पैदा हुई थी क्योंकि पोषक अनाजों में पोषकता प्रचुर मात्रा में रहती है।

पोषक तत्त्व और मिलेट्स

Source- Ministry of Agriculture and Farmers Welfare

पोषक अनाज, आयरन, फाइबर ,कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटैशियम, जिंक,जैसे प्रमुख तत्त्वों का स्त्रोत होते हैं। इन पोषक अनाजों में कार्बोहाइड्रेट की प्रचुरता रहती है, प्रोटीन भी ठीक–ठाक मात्रा में मिल जाता है। मिलेट्स में ग्लूटिन की मात्रा ना के बराबर होती है।

100 ग्राम बाजरे का सेवन पर क्या मिलता है? 361 किलो कैलोरी ऊर्जा, 11.6 ग्राम प्रोटीन, 65.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 1.2 ग्राम क्रूड फाइबर, 42 mg कैल्शियम और 8.0 mg आयरन की प्राप्ति होती है।

ऐसे ही 100 ग्राम ज्वार का उपभोग करने से क्या मिलता है? 349 किलो कैलोरी ऊर्जा, 10.4 ग्राम प्रोटीन, 72.6 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 1.2 ग्राम क्रूड फाइबर, 42 mg कैल्शियम और 8.0 mg आयरन की प्राप्ति होती है।

वहीं 100 ग्राम रागी को खाने से 328 किलो कैलोरी ऊर्जा, 7.3 ग्राम प्रोटीन, 72 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 2.6 ग्राम क्रूड फाइबर, 344 mg कैल्शियम और 8.9 mg आयरन की प्राप्ति होती है।

स्मॉल मिलेट्स खाने से शरीर को मिलने वाले पोषक तत्वों की जानकारी के लिए कृपया यहां क्लिक कीजिए।

 

कुपोषण पर प्रहार

आजादी को हासिल किए 75 वर्ष पूरे हो गए हैं। लेकिन, कुपोषण के खिलाफ जारी जंग अभी मुक़म्मल स्तर तक नहीं पहुंच पाई है। यूएन की रिपोर्ट का माने तो भारत के 224.3 मिलियन लोग कुपोषण से ग्रसित हैं। दुनिया में कुपोषित लोगों का सबसे अधिक जमावड़ा हिंदुस्तान में है। इसी रिपोर्ट में मोटापे से ग्रस्त लोगों की संख्या में हुई बढ़ोतरी को भी दर्शाया है।

नवीनतम वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत का स्थान 107 वां है, कुल 121 देशों में से। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण–5 की माने तो 5 वर्ष से कम आयु के 67 फीसद बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं। एनएफएचएस–4 में ये आंकड़ा 58.6 प्रतिशत था।

एनएफएचएस–5 के अनुसार 15 से 49 आयु वर्ग की 57 फीसद महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं।

इंटरनेशनल चिल्ड्रंस इमरजेंसी फंड की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत की 80 फीसदी किशोर आबादी ‘हिडेन हंगर’ से ग्रस्त है।

आपको याद होगा, विश्व के तमाम देशों की तरह भारत भी वर्ष 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करना चाहता है। जिसमें लक्ष्य नंबर 2 भुखमरी को खत्म करने की चाहत रखता है।

इन सबका समाधान पोषक अनाजों में है। पोषण अनाजों के सेवन से पोषण संबंधी कई समस्याएं दूर हो जाएंगी। ज़रुरत है समाज में जागरूकता लाने की, मोटे अनाजों से पोषक अनाजों तक की यात्रा की।

 

 

पीडीएस सिस्टम और पोषक अनाज

भारतीय नागरिकों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पीडीएस की शुरुआत की गई थी। इस योजना से लाखों लोगों का पेट भरा। लेकिन, अर्थशास्त्री जीन द्रेज का कहना है कि पीडीएस में गेहूं और चावल केंद्रित नीतियों ने खराब पोषण संबंधी समस्याओं को बढ़ा दिया। भूख की समस्या तो कम हुई पर कुपोषण की नहीं।आज पीडीएस के तहत करीब 80 करोड़ लोगों को राशन मिलता है।

इस आबादी तक पोषक अनाज पहुंचा कर कुपोषण को कम किया जा सकता है। कई राज्यों ने इस मामले में पहल की है।कर्नाटक राज्य में गेहूं और चावल के साथ ज्वार और रागी का विकल्प दिया जाता है।राजस्थान में बाजरे का विकल्प भी रहता है। तेलंगाना के आईसीडीएस में पोषक अनाजों से बने आहारों का वितरण किया जाता है।

ये विकल्प मौजूद होने के बावजूद लोग गेहूं–चावल की खरीददारी को प्राथमिकता दे रहे हैं। कारण है अज्ञानता से बनी मानसिकता। ज़रुरत है सरकार लाभार्थियों के व्यवहार में बदलाव लाए।

 

मिलेट्स की खेती

बाजरे की फसल, सांकेतिक तस्वीर

जैसे बहती नदी की धारा मोड़ी नहीं जा सकती वैसे ही प्रकृति के खिलाफ खेती–किसानी नहीं की जा सकती है। लेकिन, पिछले काफी समय से हिंदुस्तान में हरित क्रांति ने अलग तरह की कृषि को बढ़ावा दिया है। जिसके कारण प्रकृति ने नकारात्मक परिणामों को दिखाना शुरू कर दिया है। 

हरित क्रांति के क्षेत्रों में भूमिगत जल का स्तर गिरता जा रहा है। क्योंकि वहां चावल की खेती की जाती है। जबकि पंजाब की जलवायु चावल की खेती के लिए अनुकूल नहीं है। एक एकड़ में खेती करने के लिए, चावल की खेती के लिए 1200–1500 मिलीलीटर पानी की जरूरत रहती है और पोषक अनाजों के लिए 600–800 मिलीलीटर की।

पोषक अनाजों की खेती में कीटनाशकों–उर्वरकों का इस्तेमाल न के बराबर होता है, इससे किसानों की लागत में कमी आएगी। चावल–गेहूं की खेती में अधिक रसायनों का प्रयोग किया जाता है जिसके कारण इंसान और मृदा दोनों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है।

कृषि मंत्रालय के अनुसार भारत में औसत खेत का आकार 1.08 हेक्टेयर है। और हिंदुस्तान के आधे किसान छोटे किसानों के श्रेणी में आते हैं। 85 फीसदी किसानों के पास 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है। चावल जैसी अन्य फसलों की खेती में अधिक लागत लगती है। ऐसे में किसान पर बोझ बढ़ता जाता है। पोषक अनाजों की खेती इसका बेहतर विकल्प हो सकता है। जरूरत है समाज में जागरूकता लाने की। किसानों को पोषक अनाजों की खेती के लिए प्रोत्साहित करने की।

मौजूदा समय में पोषक अनाज नेपथ्य में बैठे हैं। सरकार और समाज के इंतजार में। भविष्य, वर्तमान में लिए गए निर्णयों से तय होगा। केंद्र सरकार ने 2023 के लिए कई कार्यक्रम तय किए हैं।

 

 

 

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सन्दर्भ- 
The millet mission By Sumeda for The Hindu please click here.
Punjab can sow seeds of a millet revolution By Devinder Sharma ,please click here.
Millets in PDS a game changer for combating malnutrition, climate change by Abhijit Mohanty and Bindu Mohanty for Down to eath,please click here.
why 2023 is the year of millets by Charukes for bbc ,please click here.
,please click here.
Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority (APEDA) ,please click here.
Department of Agriculture & Farmers Welfare ,please click here.
 Directorate of Economics and Statistics, Department of Agriculture, Cooperation and Farmers Welfare, Ministry of Agriculture and Farmers Welfare. please click here.
Millets - The Nutri-cereals by FSSAI ,please click here.
Nutri-Cereals for a Healthy Economy by Benjamin Thomas Ipe and K J S Satyasai for Rural Pulse ,please click here.
Assessing Millets and Sorghum Consumption Behavior in Urban India: A Large-Scale Survey,please click here.
International Year of Millets : 2023 Ministry of Agriculture & Farmers Welfare Government of India ,please click here.

 

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