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चर्चा में.... | दुनिया में मलेरिया कितना बड़ा खतरा है ?
दुनिया में मलेरिया कितना बड़ा खतरा है ?

दुनिया में मलेरिया कितना बड़ा खतरा है ?

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published Published on Jan 6, 2023   modified Modified on Jan 6, 2023

सन् 1799 की बात है। चौथे आंग्ल–मैसूर युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने टीपू सुल्तान को हरा दिया। हार के बाद राजधानी श्रीरंगापट्टनम पर विलायती सेना का कब्जा हो गया, सैनिक श्रीरंगापट्टनम के किले में बस गए। लेकिन कुछ वक्त बाद वहां पर सिपाही बीमार पड़ने लगते हैं। बीमारी के डर से राजधानी को बैंगलोर ले जाया जाता है फिर भी बीमारी पीछा नहीं छोड़ती है। बीमारी का नाम रखा था मलेरिया। इस बीमारी के लिए कुनैन नाम की दवा ईजाद की गई। पर यह दवा बड़ी कड़वी थीं। सिपाही दवा नहीं पीते थे। सिपाहियों को दवा पिलाने के लिए दारू का इंतजाम किया गया जिसे इतिहास में हम जिन एंड टॉनिक नाम से जानते हैं। मलेरिया के विरुद्द, दवा-दारु के साथ शुरू की गई जंग हिंदुस्तान समेत पूरे विश्व में अब तक जारी है।

तस्वीर में -- जिन एंड टॉनिक पीते हुए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया के सिपाही.

एक अनुमान के अनुसार विश्व भर में वर्ष 2021 के दौरान लगभग 247 मिलियन, मलेरिया के मामले सामने आए हैं। जो कि वर्ष 2020 के 245 मिलियन से अधिक हैं।

अगर नजर मलेरिया के कारण होने वाली मृत्यु पर डाले तो वर्ष 2020 में 2019 की तुलना में बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2019 में 573,000 लोगों की मौतें हुई, वर्ष 2020 में मौत का आंकड़ा 57,000 बढ़कर 625,000 पर पहुंच गया। फिर 2021 में थोड़ी–सी गिरावट के साथ 619,000 लोगों की मौत मलेरिया के कारण हुई है। मामलों की लाखों में संख्या को देखते हुए और सतत विकास लक्ष्य (3.3) की प्राप्ति के लिए एक रणनीति की जरूरत थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2015 में नए सिरे से रणनीति बना दी। जो कि 2016 से लागू है।

 

खात्मे के लिए रणनीति- विश्व स्तर पर 

 

वैश्विक स्वास्थ्य सभा ने सतत विकास लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए मई 2015 में ग्लोबल टेक्निकल स्ट्रेटजी फॉर मलेरिया का अनुमोदन किया था। इस रणनीति की अवधि 15 वर्ष की है। 2015 को आधार वर्ष मानते हुए मलेरिया के मामलों और मृत्यु दर में कमी लाना है। वर्ष 2025 तक 75 फीसदी की गिरावट लाना और वर्ष 2030 तक 90 फीसदी की।

वर्ष 2020 तक 40 फीसदी की गिरावट को हासिल करना था। महामारी ने इस मकसद को हासिल करने जा रही यात्रा में रुकावट डाली। 2015 को आधार वर्ष मानते हुए 2020 तक जो लक्ष्य हासिल करने थे, वो नहीं हो पाए।

तस्वीर में- विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से तय किये गए लक्ष्य, जिन्हें वर्ष 2030 तक हासिल करना है .

 

एसडीजी के लक्ष्य अधर में

 

पिछले न्यूज अलर्ट में हमने टीबी के खिलाफ जारी जंग पर लिखा था। हमने पाया कि टीबी के खात्मे की लिए चल रही जंग बहुत धीमी है। मलेरिया के मामले में भी ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। अगर वर्ष 2030 तक पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करना है तो मलेरिया के खिलाफ जंग को तेज करना होगा। 

वर्ष 2021 के आंकड़ों को देखें तो प्रति 1000 की जनसंख्या पर मलेरिया के 59.2 मामले सामने आये। ये मामले तय लक्ष्य की तुलना में 48 फीसदी अधिक हैं। डबल्यूएचओ के अनुसार वर्ष 2021 में मलेरिया के मामलों की संख्या प्रति 1000 पर 31 होनी चाहिए थी। गौर करने वाली बात यह है कि अगर मलेरिया के खिलाफ जारी जंग इसी गति से चलती रही तो वर्ष 2030 के तय लक्ष्यों से 89 फीसदी का विचलन हो जाएगा।

 

महामारी के प्रभाव को देखें तो वर्ष 2020 में मलेरिया के नए मामलों और मृत्यु दर में उछाल आया था लेकिन वर्ष 2021 में पूर्व स्थिति को पा लिया। (देखें ग्राफ 1 और 2)

मलेरिया के नए मामले- ग्राफ– 1

गहरी नीली रेखा में मलेरिया मामलों की संख्या

डॉटेड नीली रेखा में संभावित मलेरिया के मामले

हरी रेखा रणनीति के तहत हासिल करना है। स्त्रोत– विश्व स्वास्थ्य संगठन

 

वर्ष 2015 में प्रति एक हजार की जनसंख्या पर मलेरिया के 60.1 नए मामले आ रहे थे जोकि रणनीति लागू होने के बाद घटने लगते हैं। लेकिन महामारी के समय में फिर से उछाल आ जाता है। मलेरिया के मामलों की दर प्रति एक हजार जनसँख्या पर वर्ष 2019 में 57 थीं। वर्ष 2020 में बढ़कर 59 हो गई। जोकि वर्ष 2021 में भी यथारूप रही। जितनी कमी की जानी थी और जितना अनुमानित है के बीच की खाई बढ़ रही है। इस खाई को पाटने के लिए मलेरिया उन्मूलन अभियान में तेजी लाना होगा।

 

मलेरिया मृत्यु दर- ग्राफ 2

ग्राफ 2 में मलेरिया के कारण होने वाली मृत्यु दर को दर्शाया गया है (प्रति एक हजार की जनसंख्या पर)।

दुनिया में मलेरिया के कारण हो रही मौतें कम हो रही है।वर्ष 2000 में मलेरिया के कारण 897,000 लोगों की जान गई थी। यह संख्या घटते हुए 2015 में 577,000 हुई, वर्ष 2019 में 568,000 हो जाती है। लेकिन कोविड काल में गाड़ी पटरी से उतर जाती है, 2020 में मौतें बढ़कर 625,000 हो जाती है। 2021 में थोड़ी–सी गिरकर 619,000 के आंकड़े को थामती है।

 

मलेरिया का भार अफ्रीका के कंधों पर

मलेरिया पर नजर रखने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विश्व को 6 भागों में बांटा है।

1. अफ्रीकी क्षेत्र

2. दक्षिण पूर्वी एशिया का क्षेत्र 

3. पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र (SEA)

4. पश्चिमी प्रशांत महासागरीय क्षेत्र (WPR)

5. अमेरिकी क्षेत्र (AMR)

6. यूरोपीय क्षेत्र (EUR)

अफ्रीकी क्षेत्र में वर्ष 2021 में 234 मिलियन मलेरिया के मामले सामने आए। जो कि विश्व में आए कुल मामलों का 95 फीसदी हिस्सा निर्मित करते हैं।

अफ्रीकी क्षेत्र में मलेरिया ने लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया। हालांकि, मरने वालों की संख्या में गिरावट आ रही है। वर्ष 2000 में मलेरिया ने 841,000 लोगों को मार दिया। मरने वालों का आंकड़ा घटते हुए वर्ष 2018 में 541,000 हुआ। फिर बढ़ कर वर्ष 2020 में 599,000 हुआ। 2021 में मरने वालों की संख्या में गिरावट आई, 593,000 लोग ही मरे। हालांकि, ये आंकड़ा 2018 के स्तर से अधिक है।

 

मलेरिया का सबसे अधिक आतंक विश्व के अफ्रीकी क्षेत्र में है। अगर वर्ष 2000 से 2021 तक के आंकड़ों को देखें तो 82 फीसद मामले और 95 फीसदी मौतें अफ्रीकी क्षेत्र से हुई हैं। उसके बाद दक्षिण पूर्वी एशिया का नंबर आता है।

ग्राफ-3. डब्ल्यूएचओ की ओर से चिन्हित किए गए क्षेत्रों में, क्षेत्रवार मलेरिया के मामले. 

 

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नोट- ग्राफ 3 के लिए प्रयुक्त किए गए आंकडें वर्ष 2000 से लेकर 2021 तक के समग्र हैं।

 

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भारत और मलेरिया

 

भारत, दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्र में मलेरिया का गढ़ है!

दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्र में कुल नौ देश मलेरिया के केंद्र हैं। जहां वर्ष 2021 में 5.4 मिलियन मलेरिया के मामले सामने आए थे। ये मामले विश्व के कुल मामलों में 2 प्रतिशत की हिस्सेदारी गढ़ते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि वर्ष 2021 में भारत की हिस्सेदारी इन मामलों में 79 प्रतिशत की है। 

पिछले 20 सालों में मलेरिया के मामलों में अच्छी गिरावट देखी गई है। वर्ष 2000 में 22.8 मिलियन थे। 76 प्रतिशत की गिरावट के साथ वर्ष 2021 में 5.4 मिलियन की गिरावट लाई है। 

दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्र में मामलों की दर (इंसिडेंस रेट) में 82 प्रतिशत की गिरावट हासिल की।

 

मलेरिया के कारण वर्ष 2000 में 35,000 लोगों की मौत हुई थी। 74 फीसदी की गिरावट के साथ वर्ष 2019 में मरने वालों की संख्या 9000 हो गई। यह संख्या पिछले तीन वर्षों से अपरिवर्तनशील है।

ध्यान दें! दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्र में हुई कुल मौतों में हिंदुस्तान की हिस्सेदारी 83 फीसद की है। इस आधार पर भारत में वर्ष 2021 के दौरान 7380 लोगों की जान मलेरिया के कारण चली गई। हालांकि, केंद्र सरकार के आंकड़े मरने वालों की संख्या कम बता रहे हैं।

भारत में जलवायविक दशाएं उष्ण कटिबंधीय प्रकार की हैं। भारत की इसी भौगोलिक अवस्थिति के कारण मच्छरों को पनपने का अवसर मिलता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुरूप, भारत ने भी वर्ष 2030 तक मलेरिया से निजात हासिल करने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, मलेरिया के उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय ढांचा (नेशनल फ्रेमवर्क फॉर मलेरिया एलिमिनेशन) का गठन किया गया है। यह फ्रेमवर्क 2016 से 2030 तक मलेरिया को खत्म करने के लिए रणनीति बनाता है।
स्मरणीय है कि भारत, दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्र में मलेरिया के मामलों और उससे हो रही मृत्यु में अच्छी खासी हिस्सेदारी रखता है।

वर्ष 2016 में श्रीलंका को मलेरिया मुक्त राष्ट्र होने की सनद दे दी गई है।


मलेरिया को खत्म क्यों नहीं कर पा रहे हैं?

1.कोविड महामारी ने व्यवधान पैदा किया।इस रुकावट ने 13.4 मिलियन मामलों को प्रभावित किया (वर्ष 2019 से 2021 के बीच). 2. वित्त की कमी। 3. जलवायु परिवर्तन। इसके कारण मौसमी दशों में बदलाव आता है। 4. बढ़ता हुआ अनियोजित नगरीकरण।
 

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सन्दर्भ-
World malaria report 2022. Please click here.
National-framework-for-malaria-elimination-in-India-2016–2030,Please click here.
The Imperial Cocktail, please click here.    
Integrated Health Information Platform, please click here.
Malaria cases, deaths begin stabilising after COVID disruption, please click here. 

Global Technical Strategy for Malaria 2016–2030, please click here. 


 

 

 

 

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