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चर्चा में.... | आरटीआई कार्यकर्ता निखिल डे और साथी कोर्ट में दोषी करार, अरुणा राय ने कहा फैसला निराशाजनक
आरटीआई कार्यकर्ता निखिल डे और साथी कोर्ट में दोषी करार, अरुणा राय ने कहा फैसला निराशाजनक

आरटीआई कार्यकर्ता निखिल डे और साथी कोर्ट में दोषी करार, अरुणा राय ने कहा फैसला निराशाजनक

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published Published on Jun 14, 2017   modified Modified on Jun 14, 2017

सूचना के अधिकार कानून के प्रसिद्ध कार्यकर्ता और समाजसेवी निखिल डे और उनके चार अन्य साथियों को किशनगढ़(अजमेर, राजस्थान) की एक अदालत ने दोषी ठहराते हुए चार माह के जेल की सजा सुनायी है.

 

16 मई 1998 के इस मामले में अदालत का फैसला 19 साल बाद 13 जून 2017 को आया है. मामला बिना मंजूरी रिहायशी परिसर में आने और हाथापाई करने से संबंधित है.

 

अदालत ने फैसले के तत्काल अमल को रोकते हुए निखिल डे तथा उनके साथियों आगे की अदालत में अपील करने की इजाजत दी है.

 

अदालत के फैसले को निराशाजनक बताते हुए मजदूर किसान शक्ति संगठन(एमकेएसएस) की ओर से प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने एक बयान जारी किया है. पढ़िए इन्क्लूसिव मीडिया पर एमकेएसएस की चिट्ठी का हिन्दी रुपांतरण-

 

"मजदूर किसान शक्ति संगठन बहुत निराश और सदमे में है कि किशनगढ़, अजमेर की मुसिफ मैजिस्ट्रेट की अदालत ने हमारे वरिष्ठ सहयोगी निखिल डे, नौरती, रामकरण, बाबूलाल तथा छोटू लाल मक्कर को रिहायशी परिसर में बगैर इजाजत आ धमकने तथा हाथापाई करने के एक मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 323 तथा 451 के तहत दोषी करार दिया है. 6 मई 1998 के दिन हुई घटना पर अदालत का फैसला 13 जून 2017 को आया है."

 

"अदालत का फैसला स्थानीय हरमारा पंचायत के सरपंच से संबंधित मामले में आया है. सूचना के अधिकार से जुड़े कार्यकर्ताओं ने स्थानीय सरपंच से हरमारा पंचायत के विकास कार्यों में हो रहे भ्रष्टाचार को लेकर बड़ी तादाद में आई भ्रष्टाचार की शिकायतों के बारे में जानकारी मांगी थी. भ्रष्टाचार की ये शिकायतें सरपंच प्यारेलाल के खिलाफ थीं जो गांव में शराब का ठेकेदार है. शिकायतें शौचालय निर्माण, इंदिरा आवास योजना तथा मजदूरी के भुगतान को लेकर थीं जिनमें लाभार्थियों को राशि का भुगतान नहीं किया गया था."

 

"इस मामले से एक बार फिर यह उजागर हुआ है कि सूचना के अधिकार के कार्यकर्ता जब ताकत के गढों-मठों को चुनौती देते हैं तो कैसे उनपर लगातार हमले होते हैं और सबक सिखाने की कोशिश की जाती है. 6 मई 1998 के दिन कार्यकर्ता हरमारा के सरपंच से जानकारी मांगने गये. उनके साथ बीडीओ की लिखी एक चिट्ठी भी थी. सरपंच का कार्यालय चूंकि काम के घंटों के दौरान भी बंद रहता है इसलिए कार्यकर्ता बीडीओ की चिट्ठी देने के लिए उसके आवास पर पहुंचे. इसके बाद सरपंच अपने घर से निकला और उसने कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट की."

 

"अपने साथ हुई मारपीट के बावजूद मजदूर किसान शक्ति संगठन(एमकेएसएस) के कार्यकर्ताओं ने प्रथन सूचना रिपोर्ट(एफआईआर) नहीं लिखाने का फैसला किया. सोच ये रही कि सूचना का अधिकार कानून के लिए पुलिसिया मामले को आधार ना बनाया जाय बल्कि सरपंच से संवाद कायम करते हुए पंचायती राज अधिनियम के विधान के अनुकूल चला जाय. बहरहाल, उसी दिन एमकेएसएस की ओर से अरुणा राय ने कलेक्टर को घटना की जानकारी देते हुए चिट्ठी लिखी और कलक्टर से यह सुनिश्चित करने को कहा कि सरपंच मांगी जा रही जानकारी देने के लिए तैयार हो जाय."  

 

"8 मई के रोज सरपंच ने एक एफआईआर लिखवायी कि मुझपर कार्यकर्ताओं ने हमला किया है. सरपंच की गालियों और हिंसा से दुखी होकर 8 मई के ही दिन नौरती ने भी एससी/एसटी प्रिवेन्शन ऑफ एट्रोसिटीज एक्ट के तहत उसके खिलाफ एक मामला दर्ज करवाया. सरपंच द्वारा दर्ज करवाया मामला 30 जून 1998 को बंद हो गया और अगले कुछ सालों तक इस मामले में कुछ नहीं हुआ. 5 जुलाई 2001 को एक बार फिर से इसी मामले को जिन्दा किया गया. इसके बाद से मामला आगे चलता रहा और सरपंच ने मामले में लगातार झूठे गवाह पेश किए. 6 मई 1998 के दिन जब कार्यकर्ताओं ने सरपंच से जानकारी मांगी थी तब घटना के समय कार्यकर्ताओं और सरपंच तथा उसके परिवारजन के अतिरिक्त और कोई नहीं था. सरपंच के भाई ओमप्रकाश द्वारा लिखवायी रिपोर्ट में कहा गया है कि वह भी वहां मौजूद नहीं था."

 

"आज, एफआईआर दर्ज होने के 19 साल बाद एक भ्रष्ट और ताकतवर सरपंच द्वारा दायर एक झूठे मामले में निखिल, नौरती, रामकरण, बाबूलाल तथा छोटूलाल को दोषी ठहराया गया है जबकि ये लोग कानून के दायरे में रहते हुए गरीबों के अधिकार की लड़ाई लड़ रहे थे और सरपंच ने अपने प्रभाव तथा ताकत का गलत इस्तेमाल करते हुए सूचना मांगे जाने पर इन लोगों के साथ खुद ही मारपीट की थी. इस मामले में पूरी प्रक्रिया तकरीबन दो दशक तक जारी रही और तब जाकर फैसला आया है जो कि भ्रष्टाचार से लड़ने की नागरिकों की कोशिशों और नागरिक अधिकारों के लिए उठ खड़े होने के प्रयासों पर एक बड़े आघात की तरह है. यह सीधे-सीधे इंसाफ से इनकार का मामला है. हम इस फैसले से बहुत निराश हैं."

 

"अदालत ने अपने निर्णय के तत्काल अमल पर रोक लगा दी है क्योंकि किशनगढ़ के एडीजे की अदालत में चार कार्यकर्ताओं ने एक अपील दायर की है. मजदूर किसान शक्ति संगठन मामले की पूरी सच्चाई को सबके सामने लाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखेगा, देश में पारदर्शिता और जवाबदेही का वातावरण बनाने के आंदोलन की राह पर हमलोग निहित स्वार्थों को यह मौका नहीं देंगे कि वे पारदर्शिता और गरीबों के हक की मांग उठाने वाले लोगों की आवाज का गला घोंटे."

 

-- अरुणा रॉय और एमकेएसएस 



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