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चर्चा में.... | क्यों ठीक नहीं है 'फेक न्यूज' शब्द का प्रयोग- पढ़िए, युरोपीय कमीशन की इस रिपोर्ट में..
क्यों ठीक नहीं है 'फेक न्यूज' शब्द का प्रयोग- पढ़िए, युरोपीय कमीशन की इस रिपोर्ट में..

क्यों ठीक नहीं है 'फेक न्यूज' शब्द का प्रयोग- पढ़िए, युरोपीय कमीशन की इस रिपोर्ट में..

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published Published on Mar 13, 2018   modified Modified on Mar 13, 2018
फेक न्यूज क्या है, क्या आपने कभी इसकी परिभाषा करने के बारे में सोचा है ? किसी जवाब तक पहुंचने से पहले नीचे दर्ज दो घटनाओं पर गौर कीजिए!
 
नोटबंदी के वक्त एक वीडियो वायरल हुआ कि सरकार ने जो नये नोट जारी किए हैं उनमें जीपीएस-ट्रैकिंग माइक्रोचिप्स लगे है. क्या उस वीडियो को फेक न्यूज का उदाहरण माना जाये, जैसा कि उस वक्त एक खबर में करार दिया गया ?

नये नोट में माइक्रो चिप्स लगे होने की खबर के कुछ महीनों बाद सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर एक वीडियो और वायरल हुआ. वीडियो में दावा था कि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युएल मैक्रों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पैर छुए. क्या इस वीडियो को फेक न्यूज का उदाहरण माना जा सकता है ?

ऊपर के उदाहरणों पर कोई कोई राय बनाने से पहले युरोपीयन कमीशन(ईयू) की एक नई रिपोर्ट के निष्कर्षों पर गौर कीजिए:

 

युरोपीय यूनियन में शामिल देशों के व्यापक हित में नीति और कानून बनाने वाली इस स्वायत्त संस्था की रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘फेक न्यूज जैसा शब्द अपर्याप्त ही नहीं बल्कि कई मायनों में भ्रामक भी है और ठीक इसी कारण रिपोर्ट में फेक न्यूज जैसे शब्द के प्रयोग से बचने की सलाह दी गई है.

 

विशेषज्ञों की उच्च स्तरीय समिति की इस रिपोर्ट में फेक न्यूज शब्द को ‘भ्रामक' बताने के पीछे कारण देते हुए कहा गया है कि इस शब्द का कुछ राजनेताओं और उनके समर्थकों ने अपने हित में इस्तेमाल करना शुरु कर दिया है. ऐसे राजनेता और उनके समर्थकों किसी समाचार से असहमत होने पर उसे खारिज करने के लिए फेक न्यूज शब्द का प्रयोग करते हैं और ऐसे में फेक न्यूज शब्द ताकतवर लोगों के हाथ में सूचना के प्रसार में बाधा पहुंचाने तथा स्वतंत्र न्यूज मीडिया की आवाज दबाने का एक औजार बन गया है.

 

‘ए मल्टी डायमेंशनल एप्रोच टू डिसइन्फॉरमेशन' शीर्षक इस रिपोर्ट के मुताबिक समाचारों को तोड़-मरोड़ कर पेश किए जाने की परिघटना हाल के दिनों में बहुत जटिल हो गई हैं और फेक न्यूज शब्द इस जटिलता को ठीक-ठीक दर्ज ना कर पाने की वजह से अपर्याप्त है. अपर्याप्त इसलिए कि बहुधा खबरों के सारे तथ्य पूरी तरह झूठे नहीं होते लेकिन उन तथ्यों के साथ कुछ और गैर-जरुरी सूचनाएं निहित स्वार्थों से मिला दी जाती हैं.

 

रिपोर्ट के मुताबिक ध्यान यह भी रखा जाना चाहिए कि फेक न्यूज का संबंध सिर्फ झूठी सूचनाएं गढ़ने भर से नहीं बल्कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर किए जाने वाले बरताव यानि उसके प्रचार-प्रसार के लिए की जाने वाली कोशिशों से भी है. किसी झूठी सूचना को पोस्ट करना, ट्वीट करना, रीट्वीट करना और उस पर टिप्पणी करना भी फेक न्यूज के दायरे में शामिल है.

 

रिपोर्ट में शोध-अध्ययनों के हवाले से ध्यान दिलाया गया है कि नागरिक फेक न्यूज को पक्षपात भरे सियासी बहस-मुबाहिसे तथा अधकचरी पत्रकारिता का पर्याय समझते हैं जबकि फेक न्यूज का संबंध नुकसान पहुंचाने के इरादे से गढ़ी और फैलायी गई गलत सूचना से है और इसकी साफ-साफ परिभाषा की जा सकती है.

 

गलत सूचना(डिस्इनफार्मेशन) की परिभाषा करते हुए रिपोर्ट में इसके अंतर्गत वैसी हर सूचना को शामिल माना गया है जो झूठी(फाल्स), असंगत(इनएकुरेट) या भ्रामक(मिसलीडिंग) हो और जिसे सार्वजनिक रुप से हानि पहुंचाने अथवा लाभ कमाने के जाहिर मंशा से रचा गया, पेश किया गया तथा बढ़ावा दिया गया हो.

 

रिपोर्ट के मुताबिक मानहानि, नफरत फैलाने और हिंसा के लिए उकसावा देने के इरादे से गढ़े और फैलायी गई अवैध तथा झूठी सूचनाएं फेक न्यूज के दायरे में नहीं आतीं और ऐसी सूचनाएं नियामक संस्थाओं के नियमन का विषय हैं जबकि व्यंग्य, आलोचनात्मक प्रहसन तथा ऐसे अन्य तथ्यों पर किसी किस्म की पाबंदी नहीं लगनी चाहिए.

 

रिपोर्ट में झूठी खबरों के प्रचार-प्रसार को रोकने के लिए कई उपाय सुझाये गये हैं जिसमें ऑन लाइन न्यूज के प्रसार से संबंधित व्यवस्था में पारदर्शिता कायम करना, मीडिया लिटरेसी को बढ़ावा देना और नागरिकों और पत्रकारों के लिए झूठी और असंगत सूचनाओं से निपटने के तरकीब(टूल्स) तैयार करना प्रमुख हैं.

 

रिपोर्ट के सुझाव भारत में ऑनलाइन मीडिया के नियमन की नीतियों को बनाने के लिहाज से प्रासंगिक साबित हो सकते हैं. भारत में फिलहाल ऑनलाइन यूजर्स के डिजिटल बरताव को लेकर शिकायतें आम हैं. यूट्यूब ने बीते साल दिसंबर महीने में अपने ब्लॉग में इस चलन का संज्ञान लेते हुए कहा कि यूट्यूब के खुलेपन का बेजा इस्तेमाल हो रहा है, इस प्लेटफार्म पर गुमराह करने और नुकसान पहुंचाने के इरादे से सूचनाएं अपलोड की जा रही और फैलायी जा रही हैं.

 
गौरतलब है कि भारत में डेटा प्लान के सस्ते होने के साथ सोशल मीडिया के मंचों पर ऑनलाइन यूजर्स की संख्या बढ़ी है. एक समाचार के मुताबिक बीते दो सालों में यूट्यूब ने भारत में 70 लाख यूजर्स जोड़े हैं. साल 2017 के अंत तक भारत में यूट्यूब के 17 करोड़ 20 लाख एक्टिव यूजर्स हो चुके थे.
 
 
(पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर साभार इंडिया टुडे के इस रिपोर्ट से- Top 10 fake news that we (almost) believed in 2016 

 



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