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चर्चा में.... | खुले में शौच: तादाद में चालीस करोड़ की कमी लेकिन पड़ोसियों से पीछे
खुले में शौच: तादाद में चालीस करोड़ की कमी लेकिन पड़ोसियों से पीछे

खुले में शौच: तादाद में चालीस करोड़ की कमी लेकिन पड़ोसियों से पीछे

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published Published on Jul 17, 2015   modified Modified on Jul 17, 2015
बीते पच्चीस सालों में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या कम करने की रफ्तार के लिहाज से भारत पड़ोसी नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान से पीछे है.

यूनिसेफ और डब्ल्यूएचओ की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1990 से 2015 के बीच खुले में शौच करने वालों की संख्या में 31 फीसदी की कमी हुई है जबकि पड़ोसी नेपाल में (56 प्रतिशत), पाकिस्तान(36 प्रतिशत), बांग्लादेश(33 प्रतिशत) में यह रफ्तार कहीं ज्यादा तेज रही है.(देखें नीचे दी गई लिंक)

बहरहाल पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या में हुई कमी की रफ्तार की तुलना में भारत की गति बहुत अच्छी कही जायेगी. 

प्रोग्रेस ऑन सैनिटेशन एंड ड्रिंकिंग वाटर: 2015 अपडेट एंड एमडीजी असेसमेंट शीर्षक इस रिपोर्ट के अनुसार पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में खुले में शौच करने वाले लोगों की तादाद बीते पच्चीस सालों में 21 प्रतिशत घटी है जबकि भारत में खुले में शौच करनेवाले लोगों की संख्या में 31 प्रतिशत की कमी आई है.

गौरतलब है कि पूरी दुनिया में फिलहाल खुले में शौच करने को मजबूर लोगों की संख्या लगभग एक अरब(946 मिलियन) है और इस संख्या का दो तिहाई हिस्सा सिर्फ दक्षिण एशिया में मौजूद है. रिपोर्ट के अनुसार साल 1990 में दक्षिण एशियाई क्षेत्र में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या 771 मिलियन थी जो 2015 में घटकर 610 मिलियन रह गई है. 

अकेले भारत में इसी अवधि में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या में तकरीबन 40 करोड़(394 मिलियन) की कमी आई है. याद रहे कि 2011 की जनगणना में भारत में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या कुल आबादी का 49.8 प्रतिशत बतायी गई थी और स्वच्छ भारत मिशन के बेसलाइन सर्वे-2012 में शौचालय विहीन परिवारों की संख्या 61.2 प्रतिशत बतायी गई थी.

बिना शौचालय की सुविधा वाले सर्वाधिक परिवारों(88.5 प्रतिशत) वाला राज्य ओड़िशा है जबकि केरल में ऐसे परिवारों की तादाद सबसे कम (5.3 फीसद) है

स्वच्छ भारत मिशन के बेसलाइन सर्वे के तथ्य यह भी बताते हैं कि साल 2012 में शौचालयविहीन निजी स्कूलों की संख्या18,792 थी, जबकि पानी की सुविधा विहीन शौचालय वाले निजी स्कूलों की संख्या इस सर्वे में 10,784 बतायी गई थी.

बहरहाल खुले में शौच करने वालों की संख्या में आई तेज कमी के बावजूद साफ-सफाई के मामले में गरीब और अमीर आबादी के बीच असमानता बनी हुई है. रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इलाके के धनी और गरीब तबके बीच स्वच्छ पेयजल की पहुंच का अन्तर कहीं कम है जबकि शहरी इलाके में इन तबकों के बीच साफ-सफाई की सुविधा तक पहुंच का अन्तर तुलनात्मक रुप से ज्यादा है.

ग्रामीण इलाके में साफ-सफाई की बेहतर सुविधा इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या साल 1990 में 6 प्रतिशत थी जो साल 2015 में बढ़कर 28 प्रतिशत हो गई है.लेकिन इसी अवधि में देश के शहरी इलाकों में साफ-सफाई की बेहतर सुविधाओं का इस्तेमाल करने वाले लोगों की तादाद 49 प्रतिशत से बढ़कर 63 प्रतिशत हो गई. गौरतलब है कि साफ-सफाई की बेहतर सुविधाओं का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या राष्ट्रीय स्तर पर 17 प्रतिशत से बढ़कर पच्चीस सालों में 40 प्रतिशत तक पहुंची है.
 
 
इस कथा के विस्तार के लिए देखें निम्नलिखित लिंक:

Progress on Sanitation and Drinking Water: 2015 Update and MDG Assessment, UNICEF and WHO (please click here to access)  

Please click here to reach the website

Swacch Bharat Mission (Gramin) Baseline Survey-2012, please click here to access

Odisha, Bihar among states with worst household toilet coverage -Vishnu Varma, The Indian Express, 24 June, 2015 

Toilets in schools: Month to go for Red Fort address, private sector misses target PM set -P Vaidyanathan Iyer, The Indian Express, 5 July, 2015  

No water, walls in govt-built toilets, MP tribals use them as stores -M Poornima, Hindustan Times, 7 May, 2015  

Financing Swachh Bharat -Nitya Jacob, The Hindu Business Line, 10 April, 2015  

India Matters: Demanding Toilets All India -Sutapa Deb, NDTV, 20 February, 2015  

Swachh Bharat Abhiyan: Prospects and Challenges -Kanika Kaul, Employment News, 8 November, 2014

http://www.im4change.org/news-alerts/inequality-in-access-to-sanitation-continues-4676619.html
 

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