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चर्चा में.... | घटता पैसा और ठहरे ग्राम न्यायालय
घटता पैसा और ठहरे ग्राम न्यायालय

घटता पैसा और ठहरे ग्राम न्यायालय

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published Published on Mar 30, 2015   modified Modified on Mar 30, 2015
क्या केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता के अभाव में ग्राम न्यायालयों की संख्या नहीं बढ़ पा रही ? उपलब्ध सरकारी दस्तावेज के आंकड़ों से कम से कम इसी आशंका की पुष्टी होती है।

केंद्र की पिछली सरकार के विधि एवं न्याय मंत्री कपिल सिब्बल ने 18 दिसंबर 2013 को एक प्रश्न के उत्तर में लोकसभा को बताया कि ग्राम न्यायालय एक्ट के अमल में आने के चार सालों में राज्यों को इस मद में केंद्रीय सहायता के तौर पर 3425 लाख रुपये दिए गये। इस केंद्रीय सहायता राशि में सबसे ज्यादा(1819 लाख रुपये) मध्यप्रदेश को हासिल हुए और मध्यप्रदेश में नवीनतम सूचना के अनुसार सबसे ज्यादा (89) ग्राम न्यायालय काम कर रहे हैं। (मंत्री के जवाब के लिए देखें नीचे दी गई लिंक-1)

ठीक इसी तरह ग्राम न्यायालय एक्ट के अंतर्गत केद्रीय सहायता राशि पाने वाले राज्यों में राजस्थान का स्थान दूसरा है। राजस्थान को एक्ट के लागू होने के चार सालों में कुल 1146 लाख रुपये मिले हैं और ग्राम न्यायालयों की तादाद के मामले में राजस्थान देश में दूसरे नंबर पर है। वहां ग्राम न्यायालयों की कुल संख्या 45 है।

महाराष्ट्र और ओड़ीशा के उदाहरण से भी इस बात की पुष्टी होती है कि राज्यों में ग्राम न्यायालयों की स्थापना के काम को बढ़ाने में केंद्रीय वित्तीय सहायता राशि से मददगार साबित हुई है। मिसाल के लिए महाराष्ट्र को साल 2009-10 से 2013-14 के बीच ग्राम न्यायालयों की स्थापना के लिए केंद्र से 158 लाख रुपये मिले और वहां इस अवधि में 10 ग्राम-न्यायलयों की स्थापना हुई। ओड़िशा को इस अवधि में 126 लाख रुपये मिले और ओडिशा में 14 ग्राम न्यायलयों के स्थापना की अधिसूचना जारी हुई है जिसमें 8 ग्राम न्यायलय सक्रिय हैं।(ग्राम न्यायलयों के राज्यवारों आंकड़े के लिए देखें नीचे दी गई लिंक संख्या-1)

दिलचस्प है कि कर्नाटक, गोवा, पंजाब, हरिय़ाणा को ग्राम न्यायालय एक्ट के प्रावधानों के तहत 2009-10 से 2013-14 के बीच केंद्रीय सहायता राशि में से 25-25 लाख रुपये मिले हैं और इनमें से प्रत्येक राज्य में दो-दो ग्राम न्यायालयों की अधिसूचना जारी हुई है हालांकि मध्यप्रदेश और राजस्थान की तरह इन राज्यों में ये ग्राम न्यायालय अभी सक्रिय नहीं हो पाये हैं।

गौरतलब है कि ग्राम न्यायालयों की स्थापना के लिए दी जाने वाली केंद्रीय वित्तीय सहायता में 2009-10 से 2013-14 के बीच लगातार कमी आई है। 2009-10 में राज्यों को केंद्रीय वित्तीय सहायता राशि के रुप में कुल 1347 लाख रुपये मिले जबकि साल 2010-11 में यह राशि घटकर तकरीबन आधी(745 लाख रुपये) हो गई और साल 2013-14 में यह राशि घटकर तकरीबन एक चौथाई(476 लाख रुपये) रह गई।

नवीनतम सूचना के अनुसार देश के नौ राज्यों ने 2013 के दिसंबर महीने तक 172 ग्राम न्यायलयों की स्थापना की अधिसूचना जारी की थी जिसमें 152 ग्राम न्यायलय सक्रिय हो पाये थे। ग्राम न्यायालयों की स्थापना का कार्य बहुत धीमी गति से प्रगति कर रहा है। कपिल सिब्बल से एक वर्ष पूर्व यूपीए सरकार के तत्कालीन विधि एवं न्याय मंत्री सलमान खुर्शीद ने लोकसभा को सूचित किया था कि देश के छह राज्यों ने कानून लागू होने के तीन सालों के अंदर 166 ग्राम न्यायालयों की स्थापना की अधिसूचना जारी की है जिसमें 151 ग्राम न्यायालयों ने काम करना शुरु कर दिया है। इस तरह पूरे एक साल की अवधि के दौरान देश में सक्रिय ग्राम न्यायालयों की संख्या में महज एक अंक की बढोत्तरी हुई है। (सलमान खुर्शीद के बयान के लिए देखें नीचे दी गई लिंक संख्या-2)

ग्राम न्यायालय एक्ट 2008 साल 2009 के 2 अक्तूबर को प्रभावी हुआ था। एक्ट का उद्देश्य था अदालत में लंबित पड़े मुकदमों की संख्या कम करना और ग्रामीणों को पूरी किफायतशारी और तेजी के साथ इंसाफ देना। इस एक्ट की धारा 3 (1) के अनुसार ग्राम न्यायालयों की स्थापना का काम राज्यों की मंशा पर छोड़ा गया है। राज्यों के लिए विधान है कि वे ग्राम न्यायालयों की स्थापना में अपने उच्च न्यायालय का परामर्श लेंगे। कई राज्यों जैसे-जैसे उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल और राजस्थान ने ग्राम न्यायालयों की स्थापना के लिए केंद्रीय वित्तीय सहायता की मांग की है जबकि तमिलनाडु, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली जैसे राज्यों ने व्यवहारिक दिक्कतों को गिनाते हुए ग्राम न्यायालयों की स्थापना की जरुरत से इनकार किया है।( एक्ट के प्रावधानों के लिए देखें नीचे दी गई लिंक)
 
इस पोस्ट के विस्तार के लिए निम्नलिखित लिंक देखे जा सकते हैं-
 

कपिल सिब्बल के बयान के लिए http://164.100.47.132/LssNew/psearch/QResult15.aspx?qref=147521

 

सलमान खुर्शीद के बयान के लिए-

http://pib.nic.in/newsite/erelease.aspx?relid=87282

 

लंबित पड़े मुकदमों की संख्या के लिए-

http://sci.nic.in/courtnews/2013_issue_4.pdf

 

अन्य सहायक लिंक-


Gram Nyayalayas Act 2008, http://www.indiacode.nic.in/rspaging.asp?tfnm=200904

Gram nyayalayas and the hazards of informal justice-Dr Sudhir Krishnaswamy, The Sunday Guardian, http://www.sunday-guardian.com/analysis/gram-nyayalayas-an
d-the-hazards-of-informal-justice


Where are rural courts-Jitendra, Down to Earth, 30 June, 2014, http://www.im4change.org/latest-news-updates/where-are-rur
al-courts-jitendra-4673167.html


151 Gram Nyayalayas Start Functioning, Press Information Bureau/ Ministry of Law and Justice, 3 September, 2012, http://pib.nic.in/newsite/erelease.aspx?relid=87282

Serving the justice needs of the poor-NR Madhava Menon, The Hindu, 3 December, 2013, http://www.im4change.org/latest-news-updates/serving-the-j
ustice-needs-of-the-poor-nr-madhava-menon-23522.html


Judicial delay may become a thing of the past by NR Madhava Menon, The Hindu, 26 October, 2011, http://www.im4change.org/latest-news-updates/judicial-dela
y-may-become-a-thing-of-the-past-by-nr-madhava-menon-10857
.html


Government Fails to Set up Village Courts in the State -Toby Antony, The New Indian Express, 1 December, 2014
http://www.newindianexpress.com/states/kerala/2014/12/01/G
overnment-Fails-to-Set-up-Village-Courts-in-the-State/arti
cle2549204.ece




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