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चर्चा में.... | डाक्टर साहब! यह हड़बड़ी जानलेवा है..
डाक्टर साहब! यह हड़बड़ी जानलेवा है..

डाक्टर साहब! यह हड़बड़ी जानलेवा है..

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published Published on Nov 12, 2014   modified Modified on Nov 12, 2014

एक सर्जन, एक सहयोगी डाक्टर और छह घंटे में 83 महिलाओं की नसबंदी! मतलब पौने पाँच(4.33 मि.) मिनट से भी कम समय में एक महिला की नसबंदी की गई! नतीजा , ग्यारह महिलाओं की संक्रमण से मौत!

यह मात्र डाक्टरों की लापरवाही की वजह से हुआ जैसा कि छत्तीसगढ़ की सरकार कहती है(देखें समाचार) या इस लापरवाही का रिश्ता ग्रामीण स्वास्थ्य-ढांचे में व्याप्त अभाव से है ?

 सरकारी स्वास्थ्य ढांचे से संबंधित आधिकारिक आंकड़े कहते हैं कि बिलासपुर जिले के संकरी गांव की घटना अपने को दोहराते रहने के लिए बाध्य है। मिसाल के लिए इन तथ्यों पर गौर करें।

स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट रुरल हैल्थ स्टैटिक्स इन इंडिया 2012 के अनुसार देश के 636000 गांवों में रहने वाले 70 करोड़ आबादी के लिए, कुल 1,48,366 उपकेंद्र , 24,049 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 4,833 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 74.9 प्रतिशत सर्जन, 65.1 प्रतिशत प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ,  79.6 प्रतिशत फिजिशियन तथा 79.8 प्रतिशत बाल-रोग विशेषज्ञों की कमी है। रिपोर्ट के अनुसार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डाक्टरों की संख्या जरुरत से तकरीबन 70 प्रतिशत(69.7 प्रतिशत) कम है।

गौरतलब है कि तय परिभाषा के अनुसार एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को पहाड़ी तथा जनजातीय इलाकों में 80 हजार आबादी तथा मैदानी इलाकों में 1 लाख 20 हजार आबादी की स्वास्थ्य संबंधी विशिष्ट जरुरतों को पूरा करना होता है। इस मानक के हिसाब से छत्तीसगढ़ में 194 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र होने चाहिए जो कि मौजूदा संख्या(148) से कम(46) है।

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में तो खैर रेफरल सेवा दी जाती है और बीमार की स्थिति की गंभीरता के लिहाज से उनका नंबर बाद में आता है। ग्रामीणों के लिए प्रशिक्षित डाक्टर से स्वास्थ्य-सेवा हासिल करने का शुरुआती बिन्दु प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है। रिपोर्ट के अनुसार देश के ग्रामीण इलाकों में पाँच सालों(2005-2012) के भीतर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या में महज 813 केंद्रों की बढ़ोत्तरी हुई है और इस ढांचे के भीतर भी डाक्टरों तथा अन्य चिकित्साकर्मियों की संख्या वांछित तादाद से 10.3 प्रतिशत कम है।

गौरतलब है कि एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को पहाड़ी और जनजातीय इलाके में 20 हजार तथा मैदानी इलाके में 30 हजार आबादी को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने का जिम्मा दिया गया है। लेकिन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या में कमी की वजह से बिहार में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को फिलहाल औसतन 49,423 लोगों झारखंड में 75,870 और छत्तीसगढ़ में 26,456 लोगों की स्वास्थ्य संबंधी प्राथमिक जरुरतों को पूरा करना पड़ रहा है। छतीसगढ़ में मौजूदा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या(741) वांछित संख्या(741) से कम(35) है। (अन्य राज्यों के ब्यौरे के लिए यहां क्लिक करें)

वित्तमंत्री ने अपने बजट भाषण में सार्वभौम स्वास्थ्य सेवा हासिल करने के उद्देश्य से मुफ्त दवा और मुफ्त जांच-सेवा (डायग्नोसिस सेवा) देने की बात कही थी।उन्होंने एम्स सरीखे संस्थान बनाने के लिए 500 करोड़ रुपये देने का वादा किया था। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि स्वास्थ्य-ढांचे में बुनियादी सुधार ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की दशा सुधारने की मांग करता है।(देखें नीचे ज्यां द्रेज का लेख)
इस कथा से जुड़े कुछ जरुरी तथ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रस्तुत वर्ल्ड हैल्थ स्टैटिक्स 2012 नामक दस्तावेज के अनुसार-

* भारत में तकरीबन 47% अस्पताली दाखिला कर्ज लेकर या फिर जमीन-जायदाद को बेंचकर संभव हो पाता है।
* ग्रामीण इलाके में 30% लोग रुपये-पैसे की तंगी के कारण बीमारी का उपचार नहीं करा पाते।
* बीमारी पर हुए खर्च के कारण हर साल 3 करोड़ 90 लाख भारतीय गरीबी के दुष्चक्र में फंसते हैं।

(इस पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर के लिए हम बीबीसी हिन्दी सेवा के आभारी हैं. तस्वीर निम्नलिखित लिंक से ली गई है-

http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2014/11/141110_nasbandi_vk

 


 

 



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