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चर्चा में.... | दिल्ली की बेमौसम धुंध और पंजाब के हार्वेस्टर

दिल्ली की बेमौसम धुंध और पंजाब के हार्वेस्टर

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published Published on Nov 10, 2012   modified Modified on Nov 10, 2012

नवम्बर महीने की शुरुआत से दिल्ली और उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से को धुएं और कुहासे के मेल से बने धुंधलके की एक मोटी परत ने घेर रखा है और इस बात पर तीखी बहसें हो रही हैं कि दिल्ली में वायु-प्रदूषण का स्तर किन कारणों से बढ़ रहा है। साल 2012 के जनवरी महीने में भारतीय सांख्यिकी संस्थान की ऋद्धिमा गुप्ता की रिपोर्ट आई और इस रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की राजधानी दिल्ली की हवा पर पड़ोसी पंजाब राज्य में अपनाए जाने वाले फसल कटाई के तौर-तरीकों का असर हो सकता है।

इससे से बुरी खबर यह है कि फसल की कटाई के इन तौर-तरीकों को आगे बढ़ते ही जाना है क्योंकि हरियाणा, पश्चिमी यूपी, राजस्थान और मध्यप्रदेश के किसान अधिकाधिक संख्या में पुरानी चलन के औजारों और हाथ के इस्तेमाल की जगह भारी हार्वेस्टर मशीन का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसलिए, धुएं और कुहासे के मेल से बने धुंधलके की कुछ और पट्टी  और इसके साथ जुड़ी पर्यावरणीय क्षति ना सिर्फ दिल्ली में बल्कि भोपाल, लखनऊ, आगरा, चंडीगढ़ और जयपुर सहित उत्तरी भारत के कुछ और महत्वपूर्ण शहरों में नजर आने वाली है। उल्लेखनीय है कि पंजाब में फसलों की छाड़न को जलाना कानून प्रतिबंधित है।

ऋद्धिमा गुप्ता लिखित कॉजेज ऑव इमीशन फ्रॉम एग्रीकल्चर रेजीड्यू बर्निंग इन नार्थ-वेस्ट इंडिया: इवैल्यूशन ऑव अ टेक्नॉलॉजी पॉलिसी रेस्पांस( देखें नीचे दी गई लिंक में पूरी रिपोर्ट) नामक रिपोर्ट का तर्क है कि दोआब के इलाके में धान और गेहूं की कटाई के समय फसलों की छाड़न को जलाने के चलन से कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डायऑक्साइड और कार्बन डायऑक्साइड सरीखी जहरीली गैसों का भारी मात्रा में उत्सर्जन होता है। इस प्रक्रिया में कार्बन-कण सहित अन्य जीवांश भी निकलते हैं। पूर्ववर्ती अध्ययनों के इस्तेमाल के आधार पर गुप्ता ने रिपोर्ट में ध्यान दिलाया है कि धान और गेहूं की खेती में फसल-कटाई के समय पुआल आदि छाड़न जलाने का चलन हाल का है और इसे यूपी, पंजाब, हरियाणा, बिहार, मध्यप्रदेश तथा हिमाचल प्रदेश में अपनाया जा रहा है।

गुप्ता ने पंजाब के किसानों के बीच किए गए अपने एक सर्वेक्षण में पाया कि बासमती सरीखी धान की उच्चकोटि की प्रजाति की जगह जब धान की अन्य मोटहन प्रजातियां उपजायी जाती हैं तो हार्वेस्टर के इस्तेमाल की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। उन्होंने अपने सर्वेक्षण में पाया कि जिन खेतों में धान की मोटहन प्रजातियां उपजायी गईं, उनमें किसानों ने हार्वेस्टर का औसतन 63 फीसदी ज्यादा इस्तेमाल किया। भारी हार्वेस्टर के इस्तेमाल से फसल की छाड़न(पुआल और डंठल) बिखर जाती है और इस तरह उन्हें खेतों में जलाना अपरिहार्य हो जाता है। अध्ययन के अनुसार जहां किसानों ने धान की फसल की कटाई हाथ से की वहां फसल की छाड़न का एक प्रतिशत खेतों में जलाया गया जबकि भारी हार्वेस्टर से कटाई होने की सूरत में धान की फसल की छाड़न का 90 फीसदी हिस्सा खेतों में जलाया गया।

संभावित पर्यावरणीय नुकसान के बावजूद किसान अगर भारी हार्वेस्टर का इस्तेमाल कर रहे हैं तो इसका कारण इस्तेमाल में दिखने वाला आर्थिक फायदा है : लुधियाना में किसानों ने इस तकनीक के इस्तेमाल से प्रति हैक्टेयर 112 डॉलर यानी लगभग 6000 रुपये की लागत बचायी।इसी तरह, भारी हार्वेस्टर के इस्तेमाल से अमृतसर और संगरुर में किसानों ने क्रमश 56 डॉलर(3000 रुपये लगभग) और 102 डॉलर (5500 रुपये लगभग) की लागत बचायी।

फसल की छाड़न के जलाने से हवा पर होने वाले इस असर को कम करने के क्या तरीके हो सकते हैं?  पंजाब में हैप्पी सीडर का इस्तेमाल करने वाले किसानों के बीच एक अन्य सर्वेक्षण करने के बाद गुप्ता ने पाया कि हैप्पी सीडर से बीज की बुआई  अलग तरीके से होती है। हैप्पी सीडर नाम की मशीन के सहारे धान की डंठल के मिट्टी में बने रहते गेहूं के बीजों को बोना संभव है। नतीजतन धान के पुआल को खेत में जलाना जरुरी नहीं रहता, साथ ही इससे मिट्टी में जीवांश बढ़ाने में मदद मिलती है( कृपया विशेष जानकारी के लिए नीचे दी गई लिंक देखें) पंजाब में हैप्पी सीडर मशीन के इस्तेमाल के लिए किसानों को सब्सिडी दी जा रही है।

भारी हार्वेस्टर और हैप्पी सीडर के बीच तुलना करने से पता चलता है कि हैप्पी सीडर का इस्तेमाल करने से खेतों को बिजाई के लिए तैयार करने की लागत में इजाफा नहीं होता लेकिन इस लागत में कोई खास कमी भी नहीं आती, इसलिए किसान भारी हार्वेस्टर की जगह हैप्पी सीडर का इस्तेमाल करने को खास उत्सुक नहीं हैं।गुप्ता का कहना है कि किसानों को इस बात से आगाह करना होगा कि हैप्पी सीडर के इस्तेमाल से समय आने पर उन्हें अच्छी बचत होगी क्योंकि धान की फसल की कटनी के तुरंत बाद इस मशीन को उपयोग में लाया जा सकता है। इसके सहारे किसान धान के कटे डंठलों के हरा रहते गेहूं के बुआई कर सकते हैं। ऐसे में धान के डंठलों को जलाना जरुरी नहीं रह जाएगा।

अध्ययन का निष्कर्ष है कि मवेशियों के चारे या अन्य रुप में धान के फसल की छाड़न का उपयोग बहुत सीमित है, यही खेतों में इसे जलाने की मुख्य वजह है। मवेशियों के चारे या अन्य रुप में इसके उपयोग का सीमित होना है। चूंकि धान के डंठलों के खेतों में रहते गेहूं के बीजों को बोने की तकनीक उपलब्ध नहीं थी इसलिए किसान छाड़न के रुप में बचे डंठलों को जला देते थे। हैप्पी सीडर तकनीक के कारण अब डंठलों के रहते गहूं के बीजों को बोना संभव है और इसमें समय की भी बचत है।

(कृपया इस कथा के विस्तार के लिए देखें नीचे दी गई लिंक)

Causes of Emissions from Agricultural Residue Burning in North-West India: Evaluation of a Technology Policy Response by Ridhima Gupta, (ISI Delhi), Working Paper, No 66–12, January 2012, South Asian Network for Development and Environmental Economics (SANDEE),

http://www.sandeeonline.org/uploads/documents/publication/
962_PUB_Working_Paper_66_Ridhima_Gupta.pdf

Smog persists, Delhi, Punjab, Haryana officials to meet tomorrow -Ashish Mukherjee, NDTV, 9 November, 2012,

 http://www.im4change.org/rural-news-update/smog-persists-d
elhi-punjab-haryana-officials-to-meet-tomorrow-ashish-mukh
erjee-18028.html

Smog warning: Worst is yet to come, The Indian Express, 8 November, 2012, http://www.im4change.org/rural-news-update/smog-warning-wo
rst-is-yet-to-come-18021.html

Every breath you take, The Hindustan Times, 8 November, 2012, http://www.im4change.org/rural-news-update/every-breath-yo
u-take-18020.html

Delhi says we are clean, smog due to neighbours, The Indian Express, 8 November, 2012, http://www.im4change.org/rural-news-update/delhi-says-we-a
re-clean-smog-due-to-neighbours-18012.html

Delhi's smog failure, The Business Standard, 8 November, 2012, http://www.im4change.org/rural-news-update/delhi039s-smog-
failure-18010.html

Pollution makes Delhi smog worse every year: CSE -Darpan Singh, The Hindustan Times, 8 November, 2012, http://www.im4change.org/rural-news-update/pollution-makes
-delhi-smog-worse-every-year-cse-darpan-singh-18005.html

Delhi smog lifts partially-Vivek Chattopadhyay, Down to Earth, 6 November, 2012, http://www.im4change.org/rural-news-update/delhi-smog-lift
s-partially-vivek-chattopadhyay-17997.html

A Delhi particular, The Economist, 6 November, 2012, http://www.im4change.org/rural-news-update/a-delhi-particu
lar-17994.html

Delhi smog worrying, we'll take up matter: Chief Justice of India-Ashish Mukherjee, NDTV, 6 November, 2012, http://www.im4change.org/rural-news-update/delhi-smog-worr
ying-we039ll-take-up-matter-chief-justice-of-india-ashish-
mukherjee-17976.html

Smog screen in Delhi thickens, to stay -Neha Lalchandani, The Economic Times, 5 November, 2012, http://www.im4change.org/rural-news-update/smog-screen-in-
delhi-thickens-to-stay-neha-lalchandani-17961.html

 

 

 



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