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चर्चा में.... | पढ़िए, पंजाब और हरियाणा में कितनी जलती है पिराली, क्या हैप्पी सीडर है इसका समाधान ?
पढ़िए, पंजाब और हरियाणा में कितनी जलती है पिराली, क्या हैप्पी सीडर है इसका समाधान ?

पढ़िए, पंजाब और हरियाणा में कितनी जलती है पिराली, क्या हैप्पी सीडर है इसका समाधान ?

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published Published on Nov 15, 2017   modified Modified on Nov 15, 2017
हरियाणा और पंजाब में कितने हैप्पी सीडर हैं ? धूल और धुएं से भरे घने कोहरे में लिपटी दिल्ली को गैसचैंबर करार दिए जाने के बीच कृषि मंत्रालय द्वारा जारी एक हिदायत के मद्देनजर यह सवाल पूछा जा सकता है. हैप्पी सी़डर को पिराली की जलाने की समस्या की जादुई समाधान भी बताया जा रहा है.
 

 

बीते 10 नवंबर को जारी कृषि मंत्रालय की हिदायत में हैप्पी सीडर का जिक्र आया है. कृषि मंत्रालय ने पश्चिमी यूपी और राजस्थान के साथ-साथ पंजाब और हरियाणा की सरकारों को कहा है कि पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण की एक वजह चूंकि पिराली जलाना भी है सो राज्य सरकारों को चाहिए कि वे इसके हानिकारक नुकसान के बारे में किसानों को आगाह करें.

 


किसानों को आगाह करने के लिए मंत्रालय ने जो उपाय सुझाये हैं उनमें एक है हैप्पी सीडर जिसके सहारे किसान धनकटनी के बाद खेतों में छूट गये धान के लंबे डंठल को बगैर जलाये गेहूं को बुवाई कर सकते हैं. मंत्रालय के मुताबिक इन राज्य सरकारों को चाहिए कि वे गांव के स्तर पर मौजूद मशीनरी बैंक या किराये पर कृषि-उपकरण देने वाले केंद्रों के सहारे किसानों को हैप्पी सीडर के उपयोग के फायदों के बारे में बतायें.

 

 


हैप्पी सीडर का बरताव पंजाब और हरियाणा में कुछ सालों से जारी है लेकिन पिछले साल के आंकड़ों संकेत करते हैं कि पिराली जलाने की समस्या के वैज्ञानिक समाधान के रुप में पेश किए जा रहे कृषि उपकरण हैप्पी सीडर का उपयोग किसानों में लोकप्रिय नहीं हो पाया है.

 

 


एक समाचार के मुताबिक पिछले साल हरियाणा में तकरीबन इसी समय(अक्तूबर 2016) कृषि विभाग के पास कुल 28 हैप्पी सीडर मशीन थी जबकि 65 हैप्पी सीडर मशीनें सरकार ने किसानों को अनुदान पर मुहैया करायी थीं. इसी तरह पिछले साल मार्च महीने में पंजाब में हैप्पी सीडर की कुल तादाद 700 थी और अकेले संगरुर जिले में 261 हैप्पी सीडर इस्तेमाल में थे.

 

 


गैरतलब है कि पिछले साल हरियाणा की सरकार ने हैप्पी सीडर पर 50 हजार रुपये और पंजाब की सरकार ने 48 हजार रुपये की सब्सिडी देने की घोषणा की थी. सब्सिडी की घोषणा के बावजूद हैप्पी सीडर के लोकप्रिय ना हो पाने की एक बड़ी वजह है इसकी ऊंची कीमत है. एक हैप्पी सीडर की कीमत 1.15 लाख से 1.30 लाख बतायी जाती है.

 

 


गौरतलब है कि इस छोटी सी मशीन के जरिए धान की पिराली लगे खेतों में गेहूं की बुआई की जा सकती है और इस कारण खेतों में पिराली जलाने की जरुरत नहीं रह जाती. साथ ही मिट्टी हैप्पी सीडर के इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरा-शक्ति और नमी पर भी सकारात्मक असर पड़ता है.

 

 


शोध-अध्ययनों के मुताबिक पिराली जलाने से खेतों की उर्वरा शक्ति को नुकसान पहुंचता है. कुछ अध्ययनों में कहा गया है कि धान की पिराली जलाने से पंजाब में सालाना 3. मिलियन टन आर्गेनिक कार्बन, 5900 टन नाइट्रोजन, 20 हजार टन फॉस्फोरस और 34 हजार टन पोटेशियम की हानि होती है.

 

 


नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के एक आकलन के मुताबिक देश में सालाना 500 मिलियन टन पिराली पैदा होती है. सालाना सबसे ज्यादा पिराली(60 मिलियन टन) उत्तरप्रदेश में पैदा होती है. पंजाब में एक साल में 51 मिलियन टन पिराली की पैदावार होती है जबकि महाराष्ट्र में 46 मिलियन टन.

 

 


पिराली की पैदावार के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार धान और गेहूं की फसलें हैं. दलहन, तेलहन और गन्ने की फसल को छोड़ दें तो अनाज वाली फसलों(जैसे गेहूं, धान, मकई, ज्वार-बाजरा आदि) के उत्पादन से खेतों में सालाना 352 मिलियन टन पिराली पैदा होती है और इसमें धान तथा गेहूं की पिराली का योगदान लगभग दो तिहाई( धान 34 प्रतिशत तथा गेहूं 22 प्रतिशत) है.

 

 

पिराली की पैदावार का जो हिस्सा उपयोग(जैसे पशुचारा, जलावन, झोपड़ी बनाने के लिए इस्तेमाल) में नहीं आता उसे किसान खेतों में जला देते हैं. मंत्रालय के दस्तावेज के मुताबिक भारत में सालाना 84-141 मिलियन टन पिराली उपयोग नहीं हो पाती. उपयोग ना हो पायी इस पिराली में धान, गेहूं, ज्वार-बाजरा और मकई जैसी फसलों की पिराली का हिस्सा 58 प्रतिशत होता है. अगर किसी साल उपयोग में ना आ सकी पिराली की मात्रा 82 मिलियन टन है तो मंत्रालय के आकलन के मुताबिक इसमें 44 मिलियन टन पिराली धान की होगी और 24.5 मिलियन टन पिराली गेहूं की.

 

पंजाब, हरियाणा और पश्चिम यूपी के कुछ हिस्सों में मुख्य रुप से धान और गेहूं की पिराली खेतों में जलायी जाती है जबकि महाराष्ट्र में कपास की. रेशा प्रदान करने वाली फसलों की उपयोग में ना आ सकी 33 मिलिटन टन पिराली सालाना खेतों में छूट जाती है और किसान इसे जला देना ठीक समझते हैं. रेशे देने वाली फसलों में सबसे ज्यादा(80 प्रतिशत) योगदान कपास की फसल की पराली का है.

 

पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर साभार फर्स्टपोस्ट हिन्दी http://hindi.firstpost.com/politics/delhi-smog-pollution-ngt-odd-even-from-kejariwal-government-is-just-a-gimmick-to-show-concern-on-pollution-am-66292.html 



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