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चर्चा में.... | भारी अनियमितता का शिकार है मिड डे मील स्कीम-- सीएजी
भारी अनियमितता का शिकार है मिड डे मील स्कीम-- सीएजी

भारी अनियमितता का शिकार है मिड डे मील स्कीम-- सीएजी

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published Published on Jan 3, 2016   modified Modified on Jan 3, 2016
क्या स्कूलों में बच्चों का नामांकन बढ़ाने का मिड डे मील स्कीम का जादू कमजोर पड़ रहा है ?
 
 
सीएजी की एक नई रिपोर्ट से इसी आशंका की पुष्टी होती है. रिपोर्ट के अनुसार मिड डे मील योजना वाले सरकारी स्कूलों में जहां छात्रों का नामांकन घट रहा है वहीं प्राइवेट स्कूलों में बच्चों का दाखिला बढ़ा है.(सीएजी की रिपोर्ट के लिए देखें नीचे दी गई लिंक)
 
 
27 राज्य और 7 संघशासित प्रदेशों में मिड डे मील योजना के परफार्मेंस ऑडिट के आधार पर सीएजी ने अपनी नई रिपोर्ट में कहा है कि मध्याह्न भोजन योजना वाले सरकारी स्कूलों में चार साल(2009-10 से 2013-14) में नामांकन में 6 प्रतिशत की कमी आई है जबकि इसी अवधि में प्राइवेट स्कूलों में छात्रों का नामांकन 38 प्रतिशत बढ़ा है.
 
 
रिपोर्ट के अनुसार 2009-10 में सरकारी स्कूलों में 14.69 करोड़ बच्चे नामांकित थे. यह संख्या चार साल बाद 2013-14 में घटकर 13.87 करोड़ हो गई जबकि इसी अवधि में प्राइवेट स्कूलों में नामांकन की तादाद 4.02 करोड़ से बढ़कर 5.53 करोड़ तक जा पहुंची.
 
 
मध्याह्न भोजन योजना वाले स्कूलों में नामांकन में सबसे ज्यादा कमी सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, लक्षद्वीप तथा पुद्दुचेरी में आयी है.
 
 
गौरतलब है कि मध्याह्न भोजन योजना का एक उद्देश्य स्कूलों में गरीब बच्चों के नामांकन को बढ़ावा देना है लेकिन सीएजी ने अपने ऑडिट में पाया कि असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश तथा उत्तराखंड सहित कई राज्यों में वंचित तबके और गरीब परिवार के बच्चों की पहचान के लिए ना तो कोई कसौटी तय है ना ही सर्वेक्षण हुआ है.
 
 
रिपोर्ट के अनुसार कुछ राज्यों में स्कूलों में जितने बच्चों का नामांकन है उनमें से कम से कम 40 प्रतिशत बच्चों को मध्याह्न भोजन की सुविधा नहीं मिलती. मिसाल के लिए झारखंड के स्कूलों में मध्याह्न भोजन से वंचित बच्चों की संख्या 54 प्रतिशत है तो यूपी में ऐसे बच्चों की तादाद 55 प्रतिशत.
 
 
चंढ़ीगढ़ के सरकारी स्कूलों में 47 प्रतिशत और दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 61 प्रतिशत बच्चे मध्याह्न भोजन योजना के दायरे से बाहर हैं.
 
 
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में ध्यान दिलाया है कि मिड डे मील योजना में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके आधार पर बच्चे इस योजना को हासिल करने के लिए अपनी रजामंदी या नामंजूरी जता सकें.
 
 
स्कूलों में बच्चों की हाजिरी नियमित ना होने तथा परोसे जाने वाले भोजन के पसंद ना आने के अतिरिक्त मध्याह्न भोजन योजना के दायरे में नामांकित बच्चों की तादाद कम होने की वजह बताते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूलों में खाद्यान्न की आपूर्ति बाधित होते रहती है और योजना के लिए नियत समय पर स्कूलों को धन हासिल नहीं हो पाता.
 
 
रिपोर्ट के कुछ अन्य प्रमुख तथ्य—
 
---- असम, बिहार, मेघालय, झारखंड, तथा पुद्दुचेरी में जांच के क्रम में सीएजी ने पाया कि स्कूलों में परोसे जाने वाले भोजन की गुणवत्ता को जांचने के लिए इन राज्यों में कोई तंत्र विकसित नहीं हुआ है.
 
 
---- सीएजी द्वारा निरीक्षित अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक, ओड़ीशा, आंध्रप्रदेश, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और दिल्ली के ज्यादातर स्कूलों में खाद्यान्न तथा भोजन की गुणवत्ता की जांच के लिए प्रावधानित परीक्षण नहीं किए गए थे.
 
 
---- सीएडी की रिपोर्ट के अनुसार जांच के दौरान पाया गया कि ज्यादातर स्कूलों में किचन शेड, बर्तन, पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं का एक ना एक रुप में अभाव है. बहुधा ऐसे उदाहरण देखने को मिले जहां भोजन खुले और गंदगी भरे परिवेश में पकाया जा रहा था.
 
 
---- रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान, ओड़ीशा, मध्यप्रदेश, बिहार, अरुणाचल प्रदेश, आंध्रप्रदेश, उत्तराखंड, नगालैंड, अंडमान निकोबार, लक्षद्वीप तथा पुद्दुचेरी में मिड डे मील के खाद्यान्न के अतिरिक्त भंडार(बफर स्टॉक) को रखने की कोई व्यवस्था नहीं हो पायी थी.
 
 
---- सीएजी ने अपनी 2007-08 की रिपोर्ट में मिड डे मील से संबंधित कई विसंगतियों मसलन खाद्यान्न की चोरबाजारी, वित्तीय अनियमितता, परोसे जाने वाले भोजन की गुणवत्ता में कमी, पर्याप्त निगरानी का अभाव की तरफ ध्यान दिलाया था. सीएजी की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार मिड डे मील की ये विसंगतियां कमोबेश मौजूद हैं.
 
 
------ मिड डे मील के मूल्यांकन और निगरानी के लिए निर्धारित राशि का उपयोग पर्याप्त मात्रा में नहीं हो सकता है. जिला, तालुका और प्रखंड स्तर पर स्कूलों में अधिकारियों द्वारा मिड डे मील के निरीक्षण में कमी है..
 
 
----- बच्चों के नामांकन और मिड डे मील के दायरे में शामिल बच्चों से संबंधित राज्यों के आंकड़े तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आंकड़े में मेल नहीं है. यह बात विशेष रुप से आंध्रप्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, ओड़ीशा, राजस्थान, त्रिपुरा, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश तथा पश्चिम बंगाल के संदर्भ में लागू होती है.
 
 
----- सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार मिड डे मील के दायरे में शामिल बच्चों की संख्या को संस्थागत तौर पर बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है, खाद्यान्न की चोरबाजारी होती है, परिवहन से संबंधित खर्चे को बढ़ाकर बताया जाता है, खाद्यान्न की ज्यादा कीमत हासिल करने के लिए आंकड़ों में हेरफेर की जाती है और उपयोग से संबंधित प्रमाणपत्र में गड़बड़ी की जाती है. ये बाते बहुत व्यापक पैमाने पर हो रही हैं.
 
 
--- सीएजी की रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि भोजन पकाने के खर्च को बढ़ती हुई महंगाई के अनुसार अद्यतन नहीं किया गया है. बढ़ी हुई महंगाई के अनुसार भोजन पकाने के खर्च को अद्यतन करने से ही निर्धारित मात्रा और ऊर्जा का पोषक भोजन छात्रों को दिया जा सकता है. आंध्रप्रदेश, असम, पंजाब तथा यूपी जैसे राज्य एलपीजी सब्सिडी के रुप में दिए गए फंड का उपयोग करने में असफल रहे.
 
इस कथा के विस्तार के लिए देखें निम्नलिखित लिंक--
 

Report no.-36 of 2015-Union Government (Civil) - Report of the Comptroller and Auditor General of India on Performance Audit of Mid Day Meal Scheme 

Please click link 1 to access 

Please click link 2 to access 

Policy guide for Centrally Sponsored Schemes, PRS Legislative Research, please click here to access 

States have failed to tap full potential of school midday meal scheme and maximize welfare -Pyaralal Raghavan, The Times of India, 20 December, 2015, please click here to access 

CAG Finds Mid-day Meal Scheme Stats Cooked Up, The New Indian Express, 19 December, 2015, please click here to access 

 
Exaggeration of figures in Mid Day Meal scheme: CAG, The Economic Times/PTI, 18 December, 2015, please click here to access  


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