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चर्चा में.... | राजस्थान-- तारीख पर तारीख लेकिन सुनवाई सिफर
राजस्थान-- तारीख पर तारीख लेकिन सुनवाई सिफर

राजस्थान-- तारीख पर तारीख लेकिन सुनवाई सिफर

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published Published on Oct 10, 2015   modified Modified on Oct 10, 2015
राजस्थान में जेल-प्रशासन एक तिहाई विचाराधीन कैदियों को सुनवाई की तारीख पर अदालत में पेश नहीं कर पाता, क्या आप सोच सकते हैं क्यों ?

विचाराधीन कैदियों को निर्धारित तारीख पर अदालत में पेश ना कर पाने की वजह है एस्कार्ट के लिए पर्याप्त संख्या में पुलिस-बल का ना होना !

मानवाधिकारों के लिए सक्रिय कॉमनवेल्थ ह्यूमनराइटस् इनिशिएटिव(सीएचआरआई) के एक हालिया अध्ययन के अनुसार बीते बीस सालों में राजस्थान के जेलों में बंदियों की संख्या में 150 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन कैदियों को अदालत तक लाने- ले जाने वाले पुलिस एस्कार्ट बल की संख्या उतनी ही है जितनी कि सन् 1970 के दशक में थी. (देखें नीचे दी गई लिंक)

कैदियों की अदालती-पेशी से संबंधित इस शोध-अध्ययन के तथ्य बताते हैं कि राजस्थान में रोजमर्रा तौर पर औसतन 1618 कैदियों को सुनवाई के लिए अदालत में पेश करने की जरुरत होती है. इतने कैदियों को अदालत में पहुंचाने के लिए जेल-प्रशासन को हासिल होते हैं मात्र 874 पुलिसकर्मी. नतीतजन अदालत में रोजमर्रा तौर पर औसतन 1083 कैदियों की ही पेशी हो पाती है और एक तिहाई से ज्यादा कैदी अगली पेशी का इतजार करते रह जाते हैं.

कानूनन चूंकि किसी विचाराधीन कैदी की दो सुनवाइयों के बीच अधिकतम 15 दिन से ज्यादा का अंतराल नहीं हो सकता सो राजस्थान के जेल- प्रशासन ने इस बाधा से बचने के लिए एक नायाब नुस्खा निकाला है. सीएचआरआई के अध्ययन के अनुसार कैदियों को अदालत तक पहुंचाने के लिए जरुरी पुलिस एस्कार्ट-बल की कमी ने "एक खतरनाक प्रवृत्ति को जन्म दिया है. कैदी की जगह उसके नाम पर जारी वारंट को अदालत में पेश कर दिया जाता है जबकि कैदी स्वयं जेल में बंद रहता है. अदालत का किरानी वारंट के ऊपर एक ठप्पा जड़ देता है जिसपर अगली पेशी की तारीख लिखी होती है और यह प्रक्रिया अनवरत चलते रहती है."

सीएचआरआई के अध्ययन के निष्कर्षों के मुताबिक जयपुर, जोधपुर, कोटा, भरतपुर, अलवर, अजमेर, बीकानेर, झालवाड़, धौलपुर और सीकर राजस्थान के वे दस शीर्ष जिले हैं जहां निर्धारित तारीख पर अदालत में बंदियों की ना-पेशी की तादाद सबसे ज्यादा है. राज्य में ना-पेशी की कुल संख्या का 75 फीसद हिस्सा इन्हीं जिलों से संबंधित है.

जोधपुर और भरतपुर केंद्रीय कारागार में ना-पेशी की तादाद तो क्रमशः 56 प्रतिशत और 51 प्रतिशत है. अलवर जिला जेल से संबधित पेशी के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि किसी कैदी की दो पेशियों के बीच पाँच महीने तक का अंतराल है.

गौरतलब है कि अटेन्डेन्स ऑफ प्रिजनर्स इन कोर्ट एक्ट तथा क्रिमिनल प्रासिज्योर कोड में कि यदि कैदी बीमार या बहुत अशक्त ना हो, उसकी पेशी से विधि-व्यवस्था के बिगड़ने या जनहित को हानि पहुंचने की आशंका ना हो, या फिर पेशी की समय के दौरान कैदी की सज़ा की अवधि पूरी ना होने वाली हो या फिर एक ही समय में उसकी मौजूदगी अलग-अलग मामलों में जरुरी ना हो तो उसे निश्चित ही अदालत में पेश(सशरीर) किया जाना चाहिए.(देखें नीचे की लिंक)

अध्ययन का एक निष्कर्ष है कि जेलों कैदियों की बढ़ती तादाद का बडी वजह विचाराधीन कैदियों को पुलिस बल की कमी के कारण निर्धारित तारीख पर अदालत में पेश नहीं कर पाना है. गौरतलब है कि देश के विभिन्न किस्म के जेलों में फिलहाल जेलों की क्षमता से ज्यादा कैदी रखे गये हैं.

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के नये आंकड़ों के मुताबिक देश में विभिन्न किस्म के कुल 1,387 जेल हैं. जेल की क्षमता के हिसाब से इन जेलों में एक समय में तकरीबन साढ़े तीन लाख(3,56,561) कैदियों को रखा जा सकता है लेकिन फिलहाल इन जेलों में सवा चार लाख कैदी बंद हैं और इनमें दो तिहाई(2,82,879) विचाराधीन कैदी हैं.(देखें नीचे की लिंक)

इस कथा के विस्तार के लिए देखें निम्नलिखित लिंक--

The Missing Guards--A Study on Rajasthan’s Court Production System

http://www.humanrightsinitiative.org/publications/prisons/
Court%20Production-Final_10-09-15_press.pdf

 

Under-trials in India : Their rights and their plight

https://vakilsearch.wordpress.com/2011/01/15/under-trials-
in-india-their-rights-and-their-plight/

 

Prison Statistics India-2014

http://ncrb.gov.in/

 

Same day bail for Salman Khan, but over 2.5 lakh undertrials languish in jails 

http://economictimes.indiatimes.com/articleshow/47197711.c
ms?utm_source=FbM&utm_medium=ETFbMain&utm_campaign=ETFbMai
n&utm_source=contentofinterest&utm_medium=text&utm_campaig
n=cppst

 

‘District courts will take 10 years to clear cases’

 

http://www.thehindu.com/data/district-courts-will-take-10-
years-to-clear-cases/article7692850.ece
 

 

(पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर साभार एऩसीआरबी) 



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