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चर्चा में.... | राजस्थान से ज्यादा सूखा असम में-- नई रिपोर्ट
राजस्थान से ज्यादा सूखा असम में-- नई रिपोर्ट

राजस्थान से ज्यादा सूखा असम में-- नई रिपोर्ट

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published Published on Dec 28, 2015   modified Modified on Dec 28, 2015

‘ एक समंदर ने हंसकर कहा हमें पानी पिला दीजिए '-यह सिर्फ कविता की पंक्ति नहीं बल्कि देश के पूर्वोत्तर के हिस्से के लिए अब एक सच्चाई है.

 

एक नये अध्ययन में सामने आया है कि भरपूर बारिश के लिए मशहूर पूर्वोत्तर में शुष्क और अर्द्ध-शुष्क करार दिए गए पश्चिमी भारत की तुलना में सूखा पड़ने की आशंका दोगुना ज्यादा है.(देखें लिंक)

 

अध्ययन के अनुसार साल 2000 से 2014 के बीच 15 सालों की अवधि में पश्चिमी भारत में सूखे की संभाव्यता 27 प्रतिशत रही जबकि पूर्वोत्तर भारत में में 54 प्रतिशत.

 

गौरतलब है कि पूर्वोत्तर और पश्चिमी भारत में होने वाली बारिश से संबंधित पहले के शोध-अध्ययनों में कहा गया है कि राजस्थान और गुजरात जैसे पश्चिमी भारत के राज्यों को 2-3 सालों के बीच एक दफे सूखे का सामना करना पड़ता है जबकि असम और मेघालय जैसे पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में औसतन 15 सालों में एक बार सूखे के हालत बनते हैं.

 

लेकिन पूर्वोत्तर भारत और पश्चिमी भारत में आये सूखे के तुलनात्मक अध्ययन पर केंद्रित अनप्रिसिडेंटेड ड्राऊट इन नार्थ-ईस्ट इंडिया शीर्षक नये शोध-अध्ययन के तथ्य इस समझ के विपरीत संकेत करते हैं.

 

पूर्व-समीक्षित प्रतिष्ठित साइंस जर्नल करेंट साइंस के नवीनतम अंक में प्रकाशित इस नये शोध अध्ययन में कहा गया है कि अब पूर्वोत्तर भारत में 1980 और 1990 के दशक की तुलना में कम बारिश हो रही है.

 

अध्ययन के लेखक बिकास रंजन परीदा और बंकिमचंद्र ऑयनम हैं. पत्रिका विज्ञान के क्षेत्र में मौलिक शोध की शीर्ष संस्था इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज के साथ मिलकर प्रकाशित होती है जिसकी स्थापना नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक सी वी रमण ने की थी.

 

अध्ययन के तथ्य बताते हैं कि पश्चिमी भारत और पूर्वोत्तर भारत में अलनिनो प्रभाव के कारण पैदा होने वाले सूखे की संभाव्यता 40-50 प्रतिशत रही. इससे जाहिर होता है कि सूखे के ज्यादातर मामले दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के दौरान होने वाली बारिश की मात्रा में आयी कमी से जुड़े हैं.

 

शोध-अध्ययन में कहा गया है कि गुजरात के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से तथा सौराष्ट्र-कच्छ क्षेत्र में बीते 18 सालों(1997-2014) में सूखे की संभाव्यता 28 प्रतिशत रही लेकिन इसमें 40 प्रतिशत मामले अलनिनो प्रभाव की देन हैं.

 

बहरहाल, इसी अवधि(1997-2014) में असम और मेघालय कुल 8 सालों में सूखे की चपेट में आये. इन दोनों राज्यों में सूखे की संभाव्यता 44 प्रतिशत की रही और इस सूखे का कारण जलवायु-चक्र में होने वाला परिवर्तन रहा जबकि साल 2002, 2006 तथा 2009 में इलाके में सूखा अलनिनो प्रभाव के कारण पड़ा.

 

जर्नल करेंट साइंस के शोध अध्ययन में ध्यान दिलाया गया है कि पूर्वोत्तर के सभी सात राज्य 2009 में सूखे की चपेट में आये. असम में 2009-2011 के बीच तीन सालों में 10-14 जिले लगातार सूखे की मार से प्रभावित हुए. इससे पता चलता है कि हाल के दशक में इलाके में सूखे की बारंबरता बढ़ी है.

 

अध्ययन का निष्कर्ष है कि हाल के दशक(2000-2014) में पूर्वोत्तर के राज्यों में कहीं ज्यादा तेजी से सूखा पड़ा है जो कि वैश्विक जलवायु-परिवर्तन के असर की देन है.

 

इस कथा के विस्तार के लिए देखें निम्नलिखित लिंक--

Unprecedented drought in North East India compared to Western India —Bikash Ranjan Parida and Bakimchandra Oinam, Current Science, Vol. 109, No. 11, 10 December 2015, please click here to access



Study rings drought alarm for Northeast, The Telegraph, 13 December, 2015, please click here to access


2015 is likely to be a drought year, please click here to access


Drought crisis worsens: nine states declared hit -Archana Shukla, MoneyControl.com, 3 December, 2015, please click here to access


Nearly half of India’s districts drought-hit as crisis accelerates -Samar Halarnkar, Hindustan Times, 3 December, 2015, please click here to access 

 

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