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चर्चा में.... | लैंगिक भेदभाव से मर जाती हैं सालाना सवा दो लाख से ज्यादा बेटियां- नई रिपोर्ट
लैंगिक भेदभाव से मर जाती हैं सालाना सवा दो लाख से ज्यादा बेटियां- नई रिपोर्ट

लैंगिक भेदभाव से मर जाती हैं सालाना सवा दो लाख से ज्यादा बेटियां- नई रिपोर्ट

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published Published on May 27, 2018   modified Modified on Jun 20, 2018

बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ के नारे वाले भारत में अनुमान लगाइए कि सिर्फ लैंगिक भेदभाव के कारण सालाना कितनी बच्चियों की जान जाती है ? सिर्फ लड़की होने के कारण जिनसे बड़े चुप्पे ढंग से जिंदगी छीन ली जाती है उनकी तादाद हजार-दस हजार तक सीमित नहीं बल्कि ये आंकड़ा आगे बढ़कर लाखों तक पहुंचता है.

प्रतिष्ठित जर्नल लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक भारत में हर साल लैंगिक भेदभाव के कारण पांच साल तक की उम्र की कुल 239000 बच्चियों की जान जाती है. दूसरे शब्दों में, सवा अरब आबादी वाले भारत में एक दशक में ¼ करोड़ महिलाएं लैंगिक भेदभाव के कारण अपनी उम्र के छठे साल में प्रवेश से पहले काल-कवलित हो जाती हैं. और, ध्यान रहे कि इस तादाद में वे बच्चियां शामिल नहीं जिन्हें पैदा होने से पहले गर्भ में ही मार दिया जाता है.

लैंसेट पत्रिका में प्रकाशित यह अध्ययन देश के ज्यादातर(640) जिलों से संबंधित है और इसमें जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए 2000-2005 के बीच की अवधि में पांच साल या इससे कम उम्र की बच्चियों की मृत्यु के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है.

अध्ययन के मुताबिक अगर लैंगिक भेदभाव के तथ्य को ध्यान में रखें तो भारत में साल 2000-2005 के बीच पांच साल तक उम्र की बच्चियों की मृत्यु-दर (U5MR) प्रति 1000 जीवित प्रसव पर 18.5 अंक अधिक रही रही. सालाना आधार पर यह दर 239000 बच्चियों की मौत का इशारा करती है. रिपोर्ट में बच्चियों की इस मृत्यु-दर की तुलना उन देशों के आंकड़ों से की गई है जहां लैंगिक भेदभाव बहुत जाहिर नहीं हैं और इस तुलना के आधार पर कहा गया है कि भारत के 90 फीसद जिलों में पांच साल या इससे कम उम्र की बच्चियों की मृत्यु दर तुलनात्मक रुप से बहुत ज्यादा है.

रिपोर्ट में बच्चियों की मृत्यु-दर के ज्यादा होने के सिलसिले में चार राज्यों उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और बिहार को विशेष रुप से चिह्नित किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पांच साल तक उम्र की जितनी बच्चियां सालाना लैंगिक भेदभाव के कारण काल-कवलित होती हैं उसका दो तिहाई हिस्सा सिर्फ इन चार राज्यों तक सीमित है.

शोध-अध्ययन का निष्कर्ष है कि इन चार राज्यों में पांच साल तक उम्र की बच्चियों की मृत्यु-दर राष्ट्रीय औसत से बहुत ज्यादा है. उत्तर प्रदेश में पांच साल तक बच्चियों की मृत्यु-दर 30.5, बिहार में 28.5, राजस्थान में 25.4 तथा मध्यप्रदेश में 22.1 अंक ज्यादा है. रिपोर्ट के अनुसार पश्चिमी राजस्थान तथा उत्तरी बिहार के कुछ इलाकों में लैंगिक भेदभाव के कारण पांच साल तक उम्र की बच्चियों की मृत्यु-दर 30-50 प्रतिशत के बीच है.  

पुत्र-संतान की चाह के कारण कन्या भ्रूण-हत्या को भारत में महिलाओं की मृत्यु-दर के ज्यादा होने के पीछे एक कारण गिनाया जाता है लेकिन लैंसेट पत्रिका में छपे अध्ययन के मुताबिक भारत में जन्म के पहले ही नहीं बल्कि जन्म के बाद भी बच्चियों के साथ भेदभाव जारी रहता है और यह भेदभाव उनकी मौत का कारण बनता है.

रिपोर्ट की सह-लेखिका नंदिता सैकिया के मुताबिक मृत्यु-दर के आंकड़ों में क्षेत्रीय स्तर पर बहुत ज्यादा अन्तर से स्पष्ट होता है कि लैंगिक भेदभाव को कम करने के लिए अगर खाद्य तथा स्वास्थ्य-सेवा के क्षेत्र में होने वाले आबंटन में किसी किस्म की तब्दीली की जाती है तो इसमें प्राथमिकता बिहार तथा यूपी जैसे राज्यों को दी जानी चाहिए जहां गरीबी और कम सामाजिक विकास की स्थितियों के साथ-साथ पितृसत्ता की जड़ें ज्यादा मजबूत हैं और बच्चियों पर निवेश तुलनात्मक रुप से कम हो रहा है.

 

 

इस कथा के विस्तार के लिए देखें निम्मलिखित लिंक-

 

 

India Fact Sheet(नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के तथ्य)

http://www.im4change.org/siteadmin/addnewarticalshindi.php

 

Excess under-5 female mortality across India: a spatial analysis using 2011 census data

https://www.thelancet.com/journals/langlo/article/PIIS2214
-109X(18)30184-0/fulltext

 

 Every day 290 children in India are victims of crime

http://www.dailymail.co.uk/indiahome/indianews/article-507
8869/Every-day-290-children-India-victims-crime.html

 

 Kidnap and child rape top crime graph against children in India

http://indianexpress.com/article/india/kidnap-and-child-ra
pe-top-crime-graph-against-children-in-india-5101957/

 

CRY Media release: Crime against Children 2016 

https://www.cry.org/wp-content/uploads/2018/01/CRY-Media-r
elease-Crime-against-Children-2017.pdf


 



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