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चर्चा में.... | शहरी भारत में बढ़ रही है निशक्तजन की तादाद
शहरी भारत में बढ़ रही है निशक्तजन की तादाद

शहरी भारत में बढ़ रही है निशक्तजन की तादाद

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published Published on Dec 30, 2013   modified Modified on Dec 30, 2013
कागज पर परिभाषा बदल दो, सच्चाई बदल जायेगी ! गरीबों की संख्या कम बताने के लिए के लिए योजना आयोग इस साल कुछ ऐसा ही करतब दिखायाथा!निशक्तजन(Disabled) की परिभाषा बदलकर सच्चाई बदलने का कुछ ऐसा ही करतब 2011 की जनगणना में भी दिखाया गया है।

निशक्तजनों की संख्या के बारे में 2011 की जनगणना के नये आंकड़े हाल ही में जारी किए गए हैं और इन आंकड़ों के मुताबिक निशक्तजनों की कुल संख्या(2.68 करोड़) का 69.5 फीसदी हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है। साल 2001 की जनगणना के आंकड़ों में कहा गया था कि देश के कुल निशक्तजनों की 75 फीसदी तादाद ग्रामीण इलाके में रहती है।

नये आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में निशक्तजनों की संख्या साल दस सालों में  13.7 फीसदी बढ़ी है(2001 के 1.64 करोड़ जबकि 2011 में 1.86 करोड़) लेकिन शहरी क्षेत्र में निशक्तजनों की संख्या में 48.2 फीसदी का इजाफा(साल 2001 में 0.55 करोड़ लेकिन साल 2011 में 0.82 करोड़) हुआ है। ( निशक्तजनों के बारे में नवीनतम आंकड़ों के लिए देखें नीचे दी गई लिंक)

ऊपर के आंकड़ों से जाहिर है कि शहरी क्षेत्र में निशक्तजनों की संख्या में बढ़वार प्रतिशत पैमाने पर ग्रामीण इलाकों में हुई बढ़वार से ज्यादा है। इस बढ़वार की व्याख्या कैसे हो ? एक संभव उपाय है, दोनों साल (2001 और 2011) की जनगणनाओं में व्यवहृत विभिन्न प्रकार की निशक्तताओं की परिभाषा पर गौर करना। मिसाल के लिए, जिन व्यक्ति एक आँख से दृष्टिहीन हैं उन्हें साल 2001 की जनगणना में निशक्तजन की कोटि में रखा गया था लेकिन साल 2011 की जनगणना में इन्हें निशक्तजन की श्रेणी में नहीं रखा गया।

साल 2011 में जनगणना करने वालों को निर्देश था कि दृष्टिबाधा(धुंधलापन इत्यादि) के आकलन के लिए वे एक साधारण सी जांच-परीक्षा करें लेकिन साल 2001 में ऐसा कोई निर्देश नहीं था। सिर्फ दृष्टिहीनता के मामले में ही नहीं बल्कि बहरापन, गूंगापन तथा पंगुपन के मामले में भी 2011 की जनगणना में परिभाषा में बदलाव किया गया है। कुछ नयी श्रेणियां जैसे मानसिक बीमारी(mental illness) या मानसिक निशक्ततता(mental retardation) को शामिल किया गया है जबकि साल 2001 में इसे मानसिक निशक्तता(mental disability) की श्रेणी में रखा गया था। एक नई श्रेणी बहु-विकलांगता(multiple disability) नाम से शामिल की गई है।

इस कथा से जुड़े कुछ अन्य तथ्य-

साल 2001 की जनगणना में पाँच प्रकार की निशक्तता से संबंधित सूचनाएं एकत्र की गई थीं जबकि साल 2011 में आठ प्रकार की निशक्तता से संबंधित सूचनाएं एकत्र की गईं।

दावा किया गया है कि 2011 की जनगणना में पर्सन्स विद् डिसेबिलिटी एक्ट 1995 तथा द नेशनल ट्रस्ट एक्ट 1999 में सूचिबद्ध समस्त प्रकार की निशक्ततताओं को दर्ज किया गया है लेकिन निशक्तजनों के अधिकार के पक्षधर समूहों का कहना है कि निशक्ततता के बारे में एक व्यापक अधिनियम बनाया जाना चाहिए जिसमें निशक्तता से संबद्ध मेंटल हैल्थ एक्ट 1987, रिहैबिलिटेशन काऊंसिल ऑव इंडिया एक्ट 1992, पर्सन्स विद् डिसेबिलिटी(इक्वल ऑपर्च्युनिटी, प्रोटेक्शन ऑव राइटस् एंड फुल पार्टिसिपेशन) एक्ट 1995 तथा नेशनल ट्रस्ट एक्ट 1999 को एक साथ समेटा गया हो, साथ ही इस विषयक परिभाषाओं को विस्तृत किया जाये।

जनगणना के नये आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2001 में निशक्तजनों की तदाद देश की कुल आबादी में 2.13 फीसदी थी जो साल 2011 में बढ़कर 2.21 फीसदी हो गई।

निशक्ततता के प्रकारों के हिसाब से देश में निशक्तजनों की आबादी का वर्गीकरण इस प्रकार है-: दृष्टि निशक्त (18.8 प्रतिशत); श्रवण निशक्त (18.9 प्रतिशत); वाचन निशक्त (7.5 प्रतिशत); चालन निशक्त (20.3 प्रतिशत); मानसिक निशक्त (5.6 प्रतिशत); मानसिक बीमारी (2.7 प्रतिशत); अन्य (18.4 प्रतिशत); तथा बहुमुखी निशक्तता (7.9 प्रतिशत)

निशक्तजन के अधिकारों के लिए संघर्षरत समूहों का कहना है कि चालन निशक्ततता के शिकार लोगों की संख्या ज्यादा होने की  मुख्य वजह सड़क और कारखानों में होने वाली दुर्घटना है।

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक निशक्तजनों में महिलाओं की संख्या 44.1 फीसदी है। साल 2001 से 2011 के बीच महिला निशक्तजनों की संख्या में 27.1 फीसदी की वृद्धि हुई है जबकि पुरुष निशक्तजनों की संख्या में 18.9 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है।

साल 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजाति में निचले आयु-वर्ग में 40-49 साल तक के समूह में निशक्तता का प्रतिशत अन्य समूहों की तुलना में उल्लेखनीय रुप से कम है लेकिन 60 साल से ऊपर के आयुवर्ग में अनुसूचित जनजाति के बीच निशक्तजनों की संख्या अन्य समूहों की तुलना में ज्यादा है।
 
कथा विस्तार के लिए जरुरी लिंक-

References:

Presentation: Census of India 2011 Data on Disability (Please click here to get the document)

Census of India 2011 Data on Disability (please click here to get the data in excel file)

Census of India 2011 Data on Disability Scheduled Castes (please click here to get the data in excel file)

Census of India 2011 Data on Disability Scheduled Tribes (please click here to get the data in excel file)

Census of India 2001 Data on Disability (please click here to get the data in excel file)

PRS Legislative Research, Draft Rights of Persons with Disabilities Bill, 2012 (please click here)

Rural disabled undercounted in 2011 Census? -Rema Nagarajan, The Times of India, 28 December, 2013, http://www.im4change.org/latest-news-updates/rural-disable
d-undercounted-in-2011-census-rema-nagarajan-23779.html

Disabled population up by 22.4% in 2001-11-B Sivakumar, The Times of India, 29 December, 2013, http://timesofindia.indiatimes.com/india/Disabled-populati
on-up-by-22-4-in-2001-11/articleshow/28072371.cms

Rights groups seek passing of disability Bill in Parliament, The Indian Express, 28 December, 2013, http://www.im4change.org/latest-news-updates/rights-groups
-seek-passing-of-disability-bill-in-parliament-23776.htm
l

Disability rights groups want introduction of Bill by February, The Hindu Business Line, 27 December, 2013, http://www.thehindubusinessline.com/economy/disability-rig
hts-groups-want-introduction-of-bill-by-february/article
55 08834.ece

Disabled people clear UPSC, but wait for service allocation -Rema Nagarajan, The Times of India, 2 December, 2013
http://www.im4change.org/latest-news-updates/disabled-peop
le-clear-upsc-but-wait-for-service-allocation-rema-nagar
aj an-23510.html

Union budgets since 2008 show India spends 0.0009% of its GDP on disability -Moushumi Das Gupta, The Hindustan Times, 19 October, 2013, http://www.im4change.org/latest-news-updates/union-budgets
-since-2008-show-india-spends-0-0009-of-its-gdp-on-disab
il ity-moushumi-das-gupta-23066.html

'India records 5.2 million medical injuries a year' -Kounteya Sinha, The Times of India, 21 September, 2013, http://www.im4change.org/latest-news-updates/039india-reco
rds-5-2-million-medical-injuries-a-year039-kounteya-sinh
a- 22717.html

इस पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर साभार- http://www.unescap.org/sdd/library/themes/images_230/disability_230.jpg से हासिल की गई है।


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