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चर्चा में..... | ग्लोबल वार्मिंग की एक रिपोर्ट पर विचारों का महाभारत

ग्लोबल वार्मिंग की एक रिपोर्ट पर विचारों का महाभारत

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published Published on Nov 25, 2009   modified Modified on Nov 25, 2009

यूएनएफपीए की एक रिपोर्ट द स्टेट ऑव वर्ल्ड पॉपुलेशन 2009 के जारी होने के साथ ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे पर विचारों की टकराहट अपने चरम पर जा पहुंची है(रिपोर्ट की लिंक नीचे दी गई है)


केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इस रिपोर्ट को नई दिल्ली में जारी किया। वे इस बात से सहमत दिखे कि जलवायु परिवर्तन का बोझ महिलाओं पर पुरूषों की तुलना में कहीं ज्यादा पड़ेगा लेकिन उन्होंने ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन को आबादी की बढ़ोतरी से कारण रुप में जोड़कर देखने वाले विचार पर सवाल उठाये।मंत्री ने इस बात को भी खारिज किया कि ब्लैक कार्बन ग्रीन हाऊस गैसों से कहीं ज्यादा खतरनाक है।

केंद्रीय मंत्री का तर्क था कि ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में हुई बढ़वार का रिश्ता जीवनशैली और सुखोपभोग के तौर-तरीकों से है।इसी तर्क की बिनाह पर उनका कहना था कि चीनी या अमेरिका जीवनशैली की जगह सबको गांधीवादी मूल्यों से प्ररित  जीवनशैली अपनानी चाहिए।मंत्री ने यह भी कहा कि दिसंबर महीने में कोपेनहेगन में होने जा रहे सम्मेलन में भारत ग्रीन हाऊस गैसों के उतसर्जन को घटाने की किसी बाध्यकारी शर्त पर हामी नहीं भरेगा।

इस साल की यूएनएफपीए रिपोर्ट की मूल विषयवस्तु महिलाओं और जलवायु परिवर्तन के इर्द-गिर्द रखी गई थी।इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीब देशों में पर जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार पड़ेगी।रिपोर्ट के अनुसार विश्व में डेढ़ अरब लोग 1 डॉलर से कम की रोजाना की आमदनी पर गुजारा करने के लिए बाध्य हैं और इसमें अधिकतर तादाद महिलाओं की है।रिपोर्ट में शोध-अध्ययनों का हवाला देते हुए कहा गया है कि महिलाएं बड़ी तादाद में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा से वंचित हैं इसलिए प्राकृतिक आपदा की सूरत में उनके मरने की आशंका पुरूषों से कहीं ज्यादा है।

रिपोर्ट का आकलन है कि अधिकांश गरीबों की ज्यादातर गरीबों की जीविका किसी ना किसी तरह खेती के आसरे है और खेती पर जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक दुष्प्रभाव पड़ेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा और सेहत जैसे मदों पर निवेश करने से महलाओं का सशक्तीकरण होता है।इससे आर्थिक विकास को गति मिलती है और गरीबी घटती है। घटी हुई गरीबी का जलवायु पर सकारात्मक असर होता है। मिसाल के लिए,महिला अगर पढ़ी लिखी हो तो उसका परिवार छोटा और सेहतमंद होता है और छोटे परिवार से ग्रीन हाऊस गैसों के उतसर्जन को कम करने में मदद मिलती है।
आगे पढ़ें-
http://www.unfpa.org/swp/2009/en/pdf/EN_SOWP09.pdf

http://unfpa.org/public/media_resources/swp09

http://www.youtube.com/watch?v=7W3PC1Pei6M

http://www.hindu.com/2009/11/20/stories/2009112059871200.htm  

http://news.bbc.co.uk/2/hi/americas/8365808.stm  

http://www.economist.com/opinion/displayStory.cfm?story_id
=14915144&source=hptextfeature
  

 

 

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