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चर्चा में..... | शहरों के बढ़ने से सामाजिक तनाव की आशंका- यूएन रिपोर्ट

शहरों के बढ़ने से सामाजिक तनाव की आशंका- यूएन रिपोर्ट

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published Published on Nov 4, 2009   modified Modified on Nov 4, 2009

शहरी आबादी के तेज विस्तार से दुनिया के कई बड़े शहरों में सामाजिक तनाव की स्थितियां पैदा हो रही हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा जारी मानव बसाहट से संबंधित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अनियोजित मानव बस्तियों (यानी झुग्गी-झोपड़ी)  के अस्त-व्यस्त हालात शहरों में व्यापक स्तर पर हिंसा और अराजकता की स्थिति को जन्म दे सकते हैं। प्लानिंग सस्टेनेबल सिटीज-ग्लोबल रिपोर्ट ऑन ह्यूमन सेटेलमेंट-2009 नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि रोजाना विश्व भर के शहरों में 2 लाख की तादाद में नए लोग बसने के लिए दाखिल होते हैं और ऐसे में झुग्गी-झोपड़ियों की बढ़ती तादाद को नियंत्रित करना आवश्यक हो गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार झुग्गी-बस्तियों की बढ़वार की समस्य़ा सबसे ज्यादा एशिया में है और विश्व के कुछ सर्वाधिक अनियोजित शहर भारत में हैं।

 संयुक्त राष्ट्रसंघ की उपरोक्त रिपोर्ट में एशियाई क्षेत्र में अनियोजित बसाहट से संबंधिक तीन रुझानों की पहचान की गई है और उन्हें आने वाले वक्त के लिहाज से चिन्ताजनक माना गया है। रिपोर्ट के अनुसार झुग्गी-बस्तियों की आबादी में उम्रदराज लोगों की तादाद बढ़ रही है। दूसरे, मध्यवर्ग की बढ़ती तादाद के समानान्तर आर्थिक और सामाजिक रुप से वंचित लोगों का जमावड़ा झुग्गी-बस्तियों में बड़ी तादाद में हो रहा है। तीसरी चिन्ताजनक बात यह है कि दुनिया के कई बड़े शहरों की झुग्गी-बस्तियों में रोजमर्रा के उपभोग का तौर-तरीका तेजी से बदल रहा है। ऐसे शहरों में शंघाई,शांतोऊ, नई दिल्ली, मुंबई, जकार्ता, बैंकाक और सिओल का नाम लिया जा सकता है।

रिपोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-

दुनिया में शहरी आबादी की तादाद 3 अरब 30 करोड़ है और इसका 52 फीसदी हिस्सा ऐसे शहरों  में रहता है जहां आबादी-धारण की क्षमता  5 लाख से भी कम है।महानगरों का विस्तार पुराने कस्बों को उदरस्थ करने की कीमत पर हो रहा है और अर्धशहरी क्षेत्र तेजी से बन रहे हैं।
शहरों में आकर बसने वाली आबादी के बढ़वार की रफ्तार इचनी तेज है कि सैंटियागों(चिले) के आकार का एक शहर हर महीने तैयार हो रहा है

 विकासशील मुल्कों में शहरों में आकर बसने वाली ज्यादातर नई आबादी अर्ध-शहरी इलाकों में आबाद हो रही है और असंगठित क्षेत्र के कामों में आजीविका तलाश रही है। इन इलाकों में बाढ़, भूस्खलन, आंधी-तूफान और अन्य प्राकृतिक आपदाओं से नुकसान ज्यादा होता है।
 
विकसित देशों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाला पलायन शहरीकरण को विस्तार दे रहा है और विशिष्ट धार्मिक या नस्ली पहचान के लोग शहर के किसी एक हिस्से में आकर बस रहे हैं। इससे विकसित देशों के शहरों में सामाजिक तनाव बढ़ने की आशंका है।
 

उपसहारीय अफ्रीका देशों में शहरी आबादी का ६२ फीसदी हिस्सा झुग्गी-बस्तियों में रहता है और इन देशों में असंगठित क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में लगे श्रम में ६० फीसदी हिस्सा शहरी नौकरियों का है।

 · शहरीकरण के विस्तार का एक बड़ा कारण आबादी के स्थान-परिवर्तन की गति का बढ़ना है। एक सदी पहले विश्व की आबादी का महज पांच फीसदी हिस्सा शहरों में रहता था जबकि साल २००८ में शहरों में रहने वाली तादाद कुल आबादी का ५० फीसदी हो गई है। यह अभूतपूर्व घटना है।रिपोर्ट के अनुसार २०५० तक यह तादाद ७० फीसदी तक पहुंच सकती है और इस विस्तार का ज्यादातर विकासशील मुल्कों में घटित होगा।

 ·  विकसित देशों में शहरी आबादी की तादाद ५० फीसदी का आंकड़ा आज से लगभग ५० साल पहले ही पार कर चुकी थी। विकासशील देश इस आंकड़े तक साल २०१९ में पहुंच जायेंगे।      

· एशिया में ३ अरब ७० करोड़ की तादाद में आबादी रहती है और यह तादाद विश्व की कुल आबादी का ६० फीसदी से अधिक है। एशिया में सहरी आबादी की तादाद साल १९५० में २३ करोड़ ७० लाख(१७ फीसदी) थी जो साल २००७ में बढ़कर १ अरब ६५ करोड़(४१ फीसदी) तक पहुंच चुकी है।


 

(कृपया इस विषय पर विस्तार के लिए निम्नलिखित लिंकस् खोलें)

http://www.unhabitat.org/documents/GRHS09/PR1.pdf

http://www.unhabitat.org/documents/GRHS09/PR2.pdf

http://www.unhabitat.org/documents/GRHS09/PR3.pdf

http://www.unhabitat.org/documents/GRHS09/FS1.pdf

http://www.unhabitat.org/documents/GRHS09/FS4.pdf

http://www.unhabitat.org/downloads/docs/GRHS_2009Brief.pdf

http://www.unhabitat.org/content.asp?cid=7263&catid=7&
amp;typeid=46&subMenuId=0

 

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