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चर्चा में..... | ग्राम न्यायालय- कितने दिन- कितने कोस?

ग्राम न्यायालय- कितने दिन- कितने कोस?

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published Published on Sep 30, 2009   modified Modified on Sep 30, 2009

सुप्रीम कोर्ट का हालिया बयान कहता है-देश की अदालतों में कुल ढाई करोड़ से ज्यादा मुकदमे निपटारे की बाट जोह रहे हैं। विधि मंत्रालय का सुझाव है कि देश में अदालतों की तादाद मौजूदा संख्या के पांच गुनी बढ़ायी जानी चाहिए। मगर सरकार ने ग्राम न्यायालय अधिनियम में प्रावधान किया है कि महज ५००० ग्राम न्यायालय स्थापित किए जाएंगे- यानी अदालतों की संख्या में महज ५० फीसदी का इजाफा होगा और देश के आधे से ज्यादा प्रखंडों में कोई भी ग्राम न्यायालय नहीं बन पाएगा।

विधि आयोग का सुझाव है-अदालती इंसाफ की प्रक्रिया सरल हो और भारत की विशाल ग्रामीण आबादी को छह महीने के भीतर हर हाल में उनके दरवाजे पर ही इंसाफ हासिल हो जाय। विधि आयोग के सुझावों की पुष्टि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए नये आंकड़ों से भी होती है। सुप्रीम कोर्ट के नये आंकड़े कहते हैं कि अदालती व्यवस्था के ऊंचले पादान से निचली सीढ़ी तक ना सिर्फ करोड़ों की संख्या में दीवानी और फौजदारी के मुकदमे लंबित पड़े हैं बल्कि सुनवाई की गति इतनी धीमी है कि हाईकोर्टों में कुछेक मुकदमों के निपटारे में २० से ३० साल का समय लग रहा है। इस देरी पर विधि आयोग ने भी टिप्पणी की है।हालात की भयावहता का अंदाजा नेशनल क्राइम ब्यूरो के इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि एक साल(२००४) के अंदर साढ़े सड़सठ लाख फौजदारी के मुकदमो पर सुनवाई चलती है मगर फैसले सुनाये जाते महज साढ़े नौ लाख मामलों में और इन मामलों में ३३ फीसदी ऐसे हैं जिनके निपटारे में कम से ५-१० साल का वक्त लगा है।

अदालती इंसाफ की इसी खस्ताहाली के मद्देनजर पिछले साल दिसंबर के पहले हफ्ते में दलगत प्रतिबद्धताओं से ऊपर उठकर राज्यसभा के सदस्यों ने ग्राम न्यायालय अधिनियम पर अपनी मंजूरी की मोहर लगाई। तत्कालीन विधिमंत्री हंसराज भारद्वाज ने इसे भारत की विशाल ग्रामीण जनता के हक में एक क्रांतिकारी कदम बताते हुए कहा कि गांवों में बसने वाली विशाल आबादी की पहुंच विधि व्यवस्था तक बनाने के लिए प्रखंड स्तर पर चलंत अदालतें बनायी जायेंगी और जिला अदालतों में पदास्थापित मैजिस्ट्रेट स्तर के अधिकारी बसों-जीपों से तालुकों में जाकर हाथ के हाथ दीवानी और फौजदारी मुकदमों का निपटारा कर देंगे। सरकार ने उस समय वादा किया कि प्रखंड स्तर पर चलंत अदालतों की व्यवस्था के क्रम में जो भी खर्चा आएगा उसे केंद्र सरकार वहन करेगी।
 
इसमें कोई शक नहीं कि जिला अदालतों में लंबित पड़े मुकदमों की संख्या और निचली अदालतों में लंगड़ी नौकरशाही को देखते हुए यह विधेयक सार्थक कहा जाएगा। ग्राम न्यायालय विधेयक के पारित होने के साथ प्रखंड स्तर पर अदालतों की एक और परत बिछाने की राह खुल गई है। इस विधेयक को पारित करने के पीछे मंशा यह थी कि किसी भी नागरिक को आर्थिक, सामाजिक या किसी और कारण से न्याय से वंचित ना रहना पड़े। यह उम्मीद भी जतायी गई है जिला स्तरीय अदालतों पर मुकदमों की बढ़ती संख्या का बोझ कम किया जा सकेगा और लंबित पड़े मामलों की सुनवाई में तेजी आएगी, साथ ही किसी पीड़ित को इंसाफ पाने के लिए घर से बहुत दूर बने अदालतों के अजनबी माहौल में भटकना नहीं पड़ेगा। बहरहाल विधेयक को पारित हुए तो महीनों बीत गए लेकिन इसे जमीनी स्तर पर अमली जामा पहनाने के लिए सरकार ने कोई कारगर कदम उठाया हो ऐसा नहीं लगता।
 
इस अधिनियम के मौजूदा रुप में फिलहाल कई खामियां हैं और इसे कारगर तरीके से लागू कर पाने में बाधा बन रही हैं।अधिनियम की बारीकी से अध्ययन करने वाले नागरिक समूहों ने ध्यान दिलाया है कि अधिनियम में न्यायाधिकारी को नियुक्त करने, दीवानी और फौजदारी मुकदमों के निपटारे की कानूनी प्रक्रिया और ग्राम-न्यायालयों में प्रयोग की जाने वाली भाषा या फिर निपटाये जाये वाले मुकदमों की संख्या को तय करने में व्यावहारिक पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया गया है। मिसाल के लिए न्यायाधिकारी की नियुक्ति के बारे में अधिनियम की धारा-५ में कहा गया है कि राज्य सरकार हाईकोर्ट से परामर्श करके न्यायाधिकारियों की नियुक्ति करेगी। चूंकि न्यायाधिकारी की नियुक्ति के बारे में कोई वस्तुनिष्ठ मानक तय नहीं किया गया है इसलिए नागरिक समूहों को इसमें भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद की आशंका सता रही है। दूसरे, अधिनियम में इस बात का प्रावधान है कि दीवानी और फौजदारी के मुकदमों में उसी प्रक्रिया का पालन किया जाएगा जो अदालतों में अब तक चली आ रही है। इस प्रावधान के कारण ग्रामीण जनता के लिए वकीलों के बिना मुकदमों की पैरवी कर पाना असंभव है।

ग्रामीण आबादी को होथो-हाथ इंसाफ दिलाने की मंशा भी है और ग्राम न्यायलय विधेयक के जरिए व्यवस्था भी कर दी गई है लेकिन व्यवस्था पर अमल के लिए ना कोई फुर्ती दिख रही है और ना ही ग्रामीण आबादी की जरुरतों को समझने की फुर्सत।

(इस विषय पर विस्तृत जानकारी के लिए देखें निम्नलिखित लिंक देखे जा सकते हैं)

http://lawcommissionofindia.nic.in/reports/report230.pdf

http://www.supremecourtofindia.nic.in/HCquarterly_pendency
_Dec2008.pdf

http://www.prsindia.org/docs/bills/1224668109/1224668109_T
he_Gram_Nyayalayas_Bill__2008.pdf

http://ncrb.nic.in/crime2004/cii-2004/Snapshots.pdf

 

 

 

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