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चर्चा में..... | नागरिक संगठनों का नक्सलविरोधी ऑपरेशन पर सवालिया निशान

नागरिक संगठनों का नक्सलविरोधी ऑपरेशन पर सवालिया निशान

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published Published on Nov 4, 2009   modified Modified on Nov 4, 2009

नागिरक-संगठनों के एक जांच-दल का कहना है कि छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद से लड़ाई के नाम पर बड़े पैमाने पर निर्दोषों की हत्या, यातना और पुलिसिया बर्बरता को अंजाम दिया जा रहा है। जांच-दल का आरोप है कि जिन इलाकों में सुरक्षा बलों ने सशस्त्र माओवादी लड़ाकों के खिलाफ ऑपरेशन ग्रीनहंट चला रखा है वहां पत्रकारों को सुरक्षा की दुहाई देकर जाने से रोका जा रहा है।

सात नागरिक संगठनों के एक साझा जांच-दल की १५ सदस्यीय टोली ने गुजरे १० अक्तूबर से १२ अक्तूबर के बीच छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा इलाके का दौरा किया। जांच-दल के गठन में जिन नागरिक संगठनों के सदस्य शामिल थे उनके नाम हैं- पीपल्स यूनियन ऑव सिविल लिबर्टी. छत्तीसगढ़, पीपल्स यूनियन ऑव डेमोक्रेटिक राईट (दिल्ली), वनवासी चेतना आश्रम (दंतेवाड़ा), ह्यूमन राईटस् लॉ नेटवर्क (छत्तीसगढ़), एक्शन एड(ओड़ीसा), मन्ना अधिकार (मल्कानगिरी) और जिला आधिवासी एकता संघ ( मल्कानगिरी)
 
इन संगठनों का आरोप है कि पुलिसिया बर्बरता की खबरें स्थानीय मीडिया में नहीं आ रही हैं और सुरक्षाबलों द्वारा चलाये जा रहे अभियान के इलाके से किसी भी तरह की सूचना बाहरी दुनिया तक नहीं पहुंच पाये है इसके पुख्ता इंचजाम किए गए हैं। दंतेवाड़ा गये जांच दल के अनुसार गुजरे १७ सितंबर को गच्चानपल्ली में ७ ग्रामीण की हत्या हुई और १ अक्तूबर के मुठभेड़ में गोंपद के १० ग्रामीण मार दिए गए। जांच-दल की रिपोर्ट में महिलाओं और बच्चों समेत कई नागरिकों को यातना देने, जबरन गिरफ्तार करने, लूटमार मचाने और अगलगी की घटना को अंजाम देने तथा बलात् घर से बेघर करने के ब्यौरे दर्ज किए गए हैं।
 
जांच दल की रिपोर्ट में कुछ असहज करने वाले प्रासंगिक सवाल उठाये गए हैं, मसलन- अगर मारे गये व्यक्ति सचमुच नक्सलवादी थे तो पुलिस ने उनकी लाश को गांव में ही क्यों छोड़ दिया?  जो व्यक्ति मुठभेड़ में घायल हुए अगर वे नक्सलवादी थे तो उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया?

जांच-रिपोर्ट में मांग की गई है कि निष्पक्ष जांच करवाकर दंतेवाड़ा इलाके में हुई हत्याओं की जिम्मेदारी तय की जाय। रिपोर्ट में कहा गया है कि पीडित जनता का त्वरित पुनर्वास होना चाहिए साथ ही सुरक्षाबलों की बर्बरता को जाहिए करने वाला ऐसा कार्रवाई अभियान तुरंत रोका जाना चाहिए।( नई दिल्ली में जारी प्रेसनोट की मूल प्रति हमारे वेबसाईट के अंग्रेजी संस्करण में मौजूद है)

कई नागरिक संगठनों ने कहा है कि नक्सल-प्रभावित इलाकों में सरकार ने खनन-कार्य और धातुकर्म-उद्योग को बढ़ावा देने के लिए इनसे जुड़ी कंपनियों के साथ व्यापार के करार किए हैं और सरकार को चाहिए कि वह इस मुद्दे पर अपना पक्ष स्पष्ट करे। नागिरक संगठनों का कहना है कंपनियों के करार से संबद्ध इलाकों को खाली करवाने के लिए फिलहाल नये सिरे से नक्सलवाद विरोधी कार्रवाई चलायी जा रही है। ( देखें नीचे दी गई लिंक में अरूंधती राय का साक्षात्कार)

इस संदर्भ में जगदलपुर से जारी किया गया प्रेसनोट भी उल्लेखनीय है। इस प्रेसनोट में बताया गया है कि लोहांडीगुड़ा प्रखंड में टाटा इस्पात की एक परियोजना प्रस्तावित है और इस परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों के आकलन के लिए जो जनसुनवाई आयोजित की गई उसमें नियमों की धज्जियां किस तरह उडाई गईं। टाटा इस्पात की इस परियोजना में ११ गांवों की कुल ५००० एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जाना है, साथ ही परियोजना में स्थानीय नदियों से भारी मात्रा में पानी का इस्तेमाल किया जाएगा। (देखें एक समाचार रिपोर्ट की नीचे दी गई लिंक)

http://ibnlive.in.com/news/indian-democracy-in-a-state-of-
emergency/103928-3.html
 

http://newswing.com/?p=3659


 

 

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