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चर्चा में..... | भीलवाड़ा सोशल ऑडिट के सबक

भीलवाड़ा सोशल ऑडिट के सबक

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published Published on Oct 14, 2009   modified Modified on Oct 14, 2009

३८१ ग्राम पंचायत,  लगभग १६०० गांव और  डेढ लाख से भी अधिक ग्रामीणों से रूबरू होते हुए भीलवाड़ा जिले में १ अक्तूबर से प्रारंभ हुआ सामाजिक-अंकेक्षण अभियान गुजरे १२ अक्तूबर को सामाप्त हुआ तो नरेगा और सूचना के अधिकार से जुड़ी कई सच्चाइयों से पर्दा उठा। सामाजिक अंकेक्षण के लिए कुल १३५ टोलियां निकली थीं और हर टोली में थे १५-१५ प्रशिक्षित सदस्य। ३८१ ग्राम पंचायतों की पदयात्रा के बाद इन टोलियों को नरेगा के काम में कहीं मस्टर रोल खाली मिले तो कहीं कागजों पर ही सारा काम निबटाया जाता नजर आया। आईएमफॉरचेंज की मीडिया टोली भी भीलवाड़ा जिले में आयोजित सामाजिक अंकेक्षण की पदयात्रा में शामिल थी और इस टोली ने हाथ कंगन को आरसी क्या की तर्ज पर अपने पाठकों के लिए गंवई जिन्दगी और सरकारी योजनाओं के आपसी समीकरणों के इर्द-गिर्द कुछ सत्यकथाएं जुटायी हैं। नीचे ऐसी ही सत्यकथाओं की एक माला पेश की जा रही है।
कठपुतली सरपंच और १०० खाली मस्टररोल
      सामाजिक अंकेक्षण के लिए भीलवाड़ा के करजालिया गांव में गये दल ने ग्रामसभा की तो पाया कि करजालिया पंचायत के सरपंच गंगाराम भील का सरपंच बनने के कुछ माह बाद ही लोगों से बरताव बदल गया।  उन्होंने पंचायत में आना तथा लोगों से बातचीत करना ही छोड  दिया।  गांव के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार ने सरपंच को कठपुतली बनाकर ग्राम पंचायत को अपने तरीके से चलाना प्रारम्भ कर दिया। जब सामाजिक अंकेक्षण दल ग्राम पंचायत में पहुंचा तो वहां कार्यों की जिम्मेदारी लेने के लिए कोई तैयार नहीं था।ग्राम रोजगार सहायक ने अपने पास किसी भी प्रकार की जानकारी होने से इनकार कर दिया। बड़ी मशक्कत के बाद अंकेक्षण पर गए दल ने सरपंच को भील जाति के परिवारों की एक झोपड़ी में ढूंढ। अंकेक्षण-दल जब सरपंच के पास पहुंचा तो उसने हाथ जोड लिए और पगड़ी दल के सदस्यों के पांवों में रख दी, कुछ भी बोल नहीं पाया।
      दूसरी और करजालिया की ग्रामीण महिलाओं ने गत ५ सप्ताह के नरेगा कार्यों  के भुगतान बकाया होने की शिकायत की। महिलाओं ने यह भी बताया कि फिलहाल जान-बूझकर काम नहीं दिया जा रहा है। गांववालों की शिकायत थी कि पंचायत पर नरेगा के अन्तर्गत कार्य आवेदन के लिए जरुरी फार्म-६ की रसीद उपलब्ध नहीं है। जांच में सामने आया कि आवेदन की रसीदें मजदूरों को देने के बजाय पंचायत भवन पर फैंक दी जाती है। ऐसी ३०० रसीदें एक थैली में छत पर पाई गई।साथ ही पंचायत में काम बंद होने के बावजूद १०० बिल्कुल खाली मस्टररोल भी सामाजिक अंकेक्षण दल को मिले हैं। इसकी जानकारी जिला नियंत्रण कक्ष को दी गई है।
सरपंच पुत्र ही निकला फर्म का मालिक
      आसीन्द ब्लॉक की परा ग्राम पंचायत में गये सामाजिक अंकेक्षण दल ने जब सामग्री सप्लाई के बिल खंगाले तो पाया कि देवनारायण कृषि फार्म तथा श्री देवनारायण कृषि फार्म-परा नामक दो फर्मों ने ग्राम पंचायत को २३ लाख ९८ हजार ९०६ रुपये का सामान सप्लाई किया है। बिल में बजरी, पत्थर, गिट्‌टी, सीमेन्ट तथा ग्रेवल आदि सामग्री का आना दिखाया गया था लेकिन जब सामाजिक अंकेक्षण दल ने फर्म का ठिकाना खोजा तो वह कहीं नहीं मिला।  देवनारायण कृषि फार्म के बिल पर अंकित मोबाईल नम्बर ९६६०७३५२८४ पर सम्पर्क किया गया तो फर्म का मालिक परा के सरपंच का पुत्र जगदीश चन्द्र निकला। माँ के सरपंच रहते बेटे के फर्म ने लाखों रुपये का सामान सप्लाई कर दिया है। इसे कहते है ''जब माँ भई सरपंच तो फिर डर काहे का?''
फोन ही रिचार्ज कर दिया
आसीन्द की परा पंचायत में विशेष सामाजिक अंकेक्षण के लिए पहुंचे दल को प्रलोभन देने का एक नायाब तरीका वहां की सरपंच के पुत्र ने खोज निकाला।  उसने सामाजिक अंकेक्षण दल के टीम लीडर लालसिंह का मोबाईल नम्बर पता करके उसमें २२५ रु. का रिचार्ज करवा दिया और फिर फोन करके बताया कि मैंने आपका फोन रिचार्ज करवा दिया है। रिश्वत देने के इस नये नुस्खे से हतप्रभ दल प्रभारी ने प्रशासनिक अधिकारियों से शिकायत की तथा सरपंच-पुत्र को पैसा लौटा कर उसे फटकार लगाई। सरपंच पुत्र के माफी मांग लेने के बाद ही मामला समाप्त हो पाया।
नियमित विद्यार्थी भी बन गये मेट
      नरेगा को मटियामेट करने के गोरखधन्धे में लगे लोगों ने स्कूल और कॉलेज के नियमित विद्यार्थियों को ही मेट के रूप में मस्टररोल में इन्दराज कर रखा है। विशेष सामाजिक अंकेक्षण के लिए चयनित  बनेड़ा ब्लॉक की बरण ग्राम पंचायत में ऐसा ही नजारा सामने आया है। मस्टर रोल में १५ मार्च से ३१ मार्च तक एकलिंगपुरा निवासी प्रभुलाल गाडरी को मेट के रूप में दर्शाया है जबकि वह शिक्षा सत्र २००८-०९ का नियमित विद्यार्थी रहा है। इसी तरह शिक्षा सत्र २००८-०९ तथा ०९-१० में नियमित विद्यार्थी के रूप में अध्ययनरत रघुनाथपुरा निवासी सीताराम ओड को भी लगातार मेट के पद पर कार्यरत दिखाया गया है।
डाकपाल लौटायेगा ७ हजार रुपये
      कोटड  तहसील के रेडवास गांव में पांच मजदूरों की फर्जी हाजरी दिखाकर ७ हजार रुपये का भुगतान उठा लेना मेट और डाकपाल को महंगा पड गया है। रेडवास पहुंचे सामाजिक अंकेक्षण दल के सदस्य रतनलाल मीणा ने बताया कि रेडवास के डाकपाल लाभचंद शर्मा ने ५ मजदूरों के ७ हजार रु. फर्जी तरीके से उठा लिये।सामाजिक अंकेक्षण के लिए ग्रामसभा बैठी और मामला सामने आया तो  मेट फरार हो गया, जबकि डाकपाल ने अपनी गलती स्वीकारते हुये लिखित में ७ हजार रु. १० तारीख तक वापस जमा कराने की हामी भरी है। जिले भर में कई अन्य स्थानों से भी डाककर्मियों द्वारा नरेगा मजदूरों से दुव्यर्वहार करने, भुगतान के बदले पैसा लेने, भुगतान में जानबूझकर देरी करने, फर्जी भुगतान करने तथा पासबुक अपने ही पास रखने की शिकायतें मिली है। इस बारे में सूचना एवं रोजगार अधिकार अभियान के एक प्रतिनिधि मण्डल जिसमें निखिल डे, शंकरसिंह, भंवर मेघवंशी, नारायण सिंह और शान्तनु सिंह रॉय शामिल थे, ने मुख्य डाकघर जाकर डाक अधीक्षक के.जी. गोस्वामी से मुलाकात कर कार्रवाई का अनुरोध किया।
 

 

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