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चर्चा में..... | वन और पर्यावरण मंत्रालय की नई रिपोर्ट में नया क्या है..

वन और पर्यावरण मंत्रालय की नई रिपोर्ट में नया क्या है..

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published Published on Sep 9, 2009   modified Modified on Sep 9, 2009


ग्रीन हाऊस गैंसों के उत्सर्जन  के सवाल पर कोपेनहेग्न में इस साल के दिसंबर में सम्मेलन होने जा रहा है और इससे ठीक पहले अपने देश में पर्यावरण की दशा को बताने वाली दो रिपोर्टें जारी हुई हैं। ११ अगस्त २००९ के दिन वन और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने नेशनल स्टेट ऑव द एन्वायर्नमेंट रिपोर्ट जारी की जबकि दूसरी वर्ल्ड इकॉनॉमिक एंड सोशल सर्वे रिपोर्ट है जिसे सेंटर फॉर साईंस एंड एन्वायर्नमेंट की निदेशक सुनीता नारायण ने जारी किया। इसमें कोई शक नहीं कि रिपोर्ट नई है मगर कायदे से पढ़ने पर पता चलता है कि पुरानी कहानी को नये कलेवर में दोहरा दिया गया है।     
पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट को मंत्रालय के लिए डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स ने तैयार किया है।रिपोर्ट में जल, जमीन, हवा और जैवविविधता की दशा का जायजा लिया गया है और पर्यावरण के बदलाव, खाद्य, जल और उर्जा सुरक्षा और शहरीकरण के रुझानों पर भी नजर रखी गई है।इस रिपोर्ट की पहलकदमी दसवीं पंचवर्षीय योजना में हुई थी और तब योजना में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ इस रिपोर्ट को तैयार करने की बात कही गई थी।
रिपोर्ट पर गहरी नजर रखने वाले अध्येताओं का कहना है कि इस रिपोर्ट में बताये गए कुछ रुझान बड़े भ्रामक हैं, मिसाल के लिए भूजल के दोहन के संदर्भ में बताये गए रुझान। नदियां अत्यधिक दोहन के कारण सूख रही हैं लेकिन रिपोर्ट में इसका जिक्र तक नहीं आया है। यही नहीं, खुद के एकत्र किए हुए नवीनतम आंकड़ों के इस्तेमाल की जगह इस रिपोर्ट में आंकड़ों के नाम पर भरपूर सहायक सामग्री ली गई है। विश्वबैंक और वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है।खोजने पर रिपोर्ट में यह भी दिख जाएगा कि पानी की जरुरत और वर्षाजल से संबंधित रुझानों को बताने मे परस्पर विरोधाभासी आंकड़ों का इस्तमाल किया गया है और विश्लेषण भी कच्चा है।अध्यायों की एक खास योजना अपना लेने के कारण भी विश्लेषण कमजोर हुआ है। रिपोर्ट में बार बार १९८७ की जलनीति का जिक्र आया है जबकि २००२ की नई जलनीति का जिक्र आने से रह गया है।
 वर्ल्ड इकॉनॉमिक एंड सोशल सर्वे रिपोर्ट में नए मार्शल प्लान की बात उठाते हुए सालाना ५०० अरब डॉलर यानी वैश्विक उत्पाद का एक प्रतिशत हिस्सा विकासशील देशों के हिस्से में देने की बात कही गई है ताकि ये देश ग्लोबल वार्मिंग में अपनी हिस्सेदारी कम करते हुए विकास की राह पर चलने में सक्षम हो सकें। रिपोर्ट में बाजारोन्मुख समाधान प्रस्तुत करते हुए कार्बन मार्केट के विकास की बात कही गई है लेकिन जो समाधान रिपोर्ट विकसित मुल्कों के लिए जायज समझती है वही समाधान उसे विकासशील मुल्कों के लिए माफिक नहीं लगता। रिपोर्ट के हिसाब से विकसित मुल्क तो कार्बन उत्सर्जन के लिए कुछ रकम चुकाकर अपनी जवाबदेही से मुक्त हो सकते हैं मगर विकासशील मुल्कों की सरकारों को चाहिए कि नीतिगत हस्तक्षेप के द्वारा कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दशा में काम करें। 
कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए रिपोर्ट में कई चरणों की व्यवस्था बनाने की बात कही गई है। इनमें प्रमुख हैं-वैश्विक स्तर पर अप्रदूषणकारी उर्जा उत्पादन के लिए एक कोष की स्थापना, नवीकृत किए जा सकने वाले उर्जास्रोतों के लिए कराधान आधारित वैश्विक कोष और पर्यावरण परिवर्तन से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी आधारित वैश्विक ऊपाय।रिपोर्ट का तर्क है कि विकसित और विकासशील मुल्कों के लिए बाजार की जरुरते अलग अलग हैं। विकसित देशों में उर्जा-उत्पादन का बुनियादी ढांचा और सेवाएं पर्याप्त या फिर अत्यधिक मात्रा में हैं जबकि विकासशील मुल्कों में स्थिति इसके उलट है। वैश्विक स्तर पर देखें तो लगभग २ अरब लोग अभाव के कारण बिजली का इस्तेमाल नहीं कर पाते और इतने लोगों को बिजली मुहैया कराने के लिए अगले २० सालों तक सालाना २५ अरब डॉलर चाहिए। ये रिपोर्ट ठीक ऐसे वक्त में आयी है जब भारत सहित अन्य विकासशील देशों पर समय बद्ध कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए वैश्विक दबाव बढ़ रहा है चाहे इससे आर्थिक विकास में बाधा ही क्यों ना पड़ती हो। .  
नीचे ऊपरोक्त दोनों रिपोर्ट से जुड़ी कुछ लिंकस् दी जा रही है। इनमें कुछ बहसतलब बातें कही गई हैं।
,
http://www.pib.nic.in/release/release.asp?relid=51738

http://hindi.indiawaterportal.org/sites/hindi.indiawaterpo
rtal.org/files/StateofEnvironmentReport2009.pdf

http://www.indiatogether.org/2009/aug/env-stateenv.htm

http://www.un.org/esa/policy/wess/wess2009files/wess09/wes
s09pressreleases/pr_en.pdf

http://www.un.org/News/briefings/docs/2009/090901_DESA.doc.htm

http://www.unmultimedia.org/tv/unifeed/d/13434.html

http://www.indiaenvironmentportal.org.in/content/world-eco
nomic-and-social-survey-2009-promoting-development-saving-
planet

 

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