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चर्चा में..... | वाई एस आर- एक नाम गरीबों के दर्दमंद का

वाई एस आर- एक नाम गरीबों के दर्दमंद का

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published Published on Sep 3, 2009   modified Modified on Sep 3, 2009

 

कोई कहता था वाई एस राजशेखर रेड्डी तो कोई सिर्फ वाई एस आर । मेडिकल की पढ़ाई फिर प्रैक्टिस और उसके बाद राजनीति में उतरे आंध्रप्रदेस के मु्ख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी का आकस्मिक और दुखद निधन अधिकारों के दायरे को बढ़ाकर भारत का विकास करने वाली सोच पर एक आघात की तरह है। राजशेखर रेड्डी ने नरेगा और वृद्धावस्था पेंशन जैसे सैकड़ों ग्रामीण विकास योजनाओं को लागू करने में अग्रणी भूमिका निभायी। याद रहे, ये योजनाओं गरीबों पर मेहरबानी करके नहीं चलायी गईं बल्कि इनके भीतर से ग्रामीण अधिकारिता की भाषा गूंज रही थी।

अधिकारिता पर अधारित विकास के मामले में राजशेखर रेड्डी की सक्रियता की बानगी देखिए। आंध्रप्रदेश के सबसे गरीब और पिछड़े इलाकों में शुमार किए जाने वाले जिले अनंतपुर में सबसे पहले नरेगा को बतौर आजमाइश के चलाया गया। अनंतपुर के बाद इसे साल २००५ में २०० जिलों में लागू किया गया और बाद में नरेगा का दायरा बढ़कर देशव्यापी हुआ। गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को दो रुपये प्रति किलो चावल मुहैया कराने का चुनाव जिताऊ फार्मूला अपने राज्य में राजशेखर रेड्डी ने ईजाद किया। बाद में यह फार्मूला में कांग्रेस के मेनिफेस्टो में शामिल हुआ और फिर भोजन के अधिकार बिल के रुप में कानून बनाने की बात चल रही है तो एक माडल के रुप में स्वीकार किया जा रहा है। राजशेखर रेड्डी ने गरीब परिवारों के लिए आरोग्यम् नाम से स्वास्थ्य कल्याण की योजना चलायी और इसमें स्वीकार किया गया कि गरीब व्यक्ति अपनी पसंद के अस्पताल में इलाज करवाना चाहे तो सरकार का दायित्व बनता है कि वह इसकी सुविधा प्रदान करे।
 
ग्रामीण जनता के कल्याण की योजनाओं पर जोरलदेकर ही राजशेखर रेड्डी ने अपने प्रौद्योगिकी पसंद कद्दावर राजनीतिक विरोधी चंद्रबाबू नायडू को आंध्रप्रदेश की राजनीति में मात दी। हालांकि तमिलनाडु, केरल और करनाटक की अपेक्षा आंध्रप्रेदश मानव विकास के पैमाने पर कदरन पीछे है फिर भी हाल के दिनों की इसकी प्रगति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता ।

राजशेखर रेड्डी इस बात के हामी थे कि गरीबी उन्मूलन का कारगर तरीका है गरीबों के हाथो में सीधे-सीधे पैसा पहुंचाना। नागरिक संगठनों और ग्रामीण विकास के मामलों के विशेषज्ञों के एक तबके को यह बात पसंद आई तो एक तबके को यह प्रस्ताव नागवार गुजरा। बहरहाल इस प्रस्ताव को नापसंद करने वाले भी राजशेखर रेड्डी को एक ऐसे राजनेता के रुप में जरुर याद करेंगे जिसने पूरे जोश के साथ जनसुनवाई (सोशल ऑडिट) के काम को अमली जामा पहनाया। वाई एस आर ने दरअसल अपने मुखर विरोधी नागिरक संगठनों के हाथ में यह अधिकार थमाया कि वे उनकी सरकार के कामकाज की जमीनी स्तर पर परीक्षा करें। जनसुनवाई की प्रक्रिया  कुछ ऐसे चल निकली कि उससे सरकार द्वारा कराये जा रहे काम में जनता की भागीदारी भी सुनिश्चित हुई और साथ ही लोगों का सरकारी कामकाज पर नजर रख पाना और उसे जवाबदेह बना पाना भी संभव हुआ। वाईएसआर जानते थे कि जनसुनवाई का काम सर्वतोभावेन सफल नहीं है लेकिन उनके भीतर इतना धीरज था कि वे इसे परिवर्तन के औजार के रुप में काम करते हुए पूर्णता की ओर अग्रसर देख सकें ।

आंध्रप्रदेश के २००० ग्राम पंचायतों में जनसुनवाई को अंजाम दिया गया है। खास रुप से तैयार की गई टोलियों ने नरेगा के अन्तर्गत कुल ५०० करोड़ से ज्यादा मूल्य के कामों की जांच-पड़ताल की है। वाई एस आर की ही पहलकदमी पर सूचना के अधिकार को नरेगा के क्रियान्वयन के साथ जोड़ा जा सका। आंध्रप्रदेश सरकार ने राजशेखर रेड्डी के नेतृत्व में ५००० लोगों का एक प्रशिक्षित जत्था जनसुनवाई के लिए तैयार किया।

(जनता तक विकास कार्यों को पहुंचाने के लिए राजशेखर रेड्डी ने जुझारु प्रयास किए। इसकी विस्तृत झलक आपको निम्नलिखित लिंकस् में मिलेगी)



http://www.righttofoodindia.org/data/aakella-kidambi2007so
cial-audits-in-ap-evolution.pdf
. ssdfrdfhgmjkiojubfrr

http://www.levy.org/pubs/EFFE/Transparency_and_accountabil
ity_in_employment_programme_Final_version.pdf

http://www.microfinancefocus.com/news/2009/09/03/ys-rajase
khara-reddy-a-friend-and-pioneer-of-rural-people/comment-p
age-1/

 

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