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चर्चा में..... | सेज बनाम बनाम विस्थापन- तमिलनाडु में जन-सुनवाई

सेज बनाम बनाम विस्थापन- तमिलनाडु में जन-सुनवाई

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published Published on Oct 7, 2009   modified Modified on Oct 7, 2009

तमिलनाडु में १३९ सेज यानी विशेष आर्थिक क्षेत्र अपनी मंजूरी के विभिन्न चरणों में हैं और तमिलनाडु के कई संगठन इन विशेष आर्थिक क्षेत्रों की जरुरत और प्रभावकारिता की जांच के लिए एक जनसुनवाई का आयोजन कर रहे हैं।। जनसुनवाई २४ अक्तूबर से २६ अक्तूबर तक जाने माने अर्थशास्त्रियों, सामाजविज्ञानियों, पत्रकारों और नौकरशाहों की मौजूदगी में होगी। जन-सुनवाई में भागीदारी के लिए नागरिक संगठनों ने मीडियाकर्मियों को सहर्ष आमंत्रित किया है।

जन-सुनवाई का आयोजन मूवमेंट अगेंस्ट सेज इन तमिलनाडु नामक साझा मंच कर रहा है। इस मंच के साथ कई संगठन जुड़े हुए हैं। इन संगठनों के नाम हमारे अंग्रेजी संस्करण में पढ़े जा सकते हैं। उम्मीद की जाती है कि जन-सुनवाई में सेज से जुड़े कई महत्वपूर्ण मुद्दे मसलन- भू-अधिग्रहण, विस्थापन, भ्रष्टाचार, पर्यावरण का अपक्षय, मुआवजा, रोजगार का सृजन, जीविका का खात्मा और श्रम-अधिकार आदि विचार विमर्श के लिए उठाए जायेंगे।

जनसुनवाई के आयोजकों द्वारा जारी अपील की एक संक्षिप्त बानगी नीचे दी जा रही है। अविकल अपील को हमारी अंग्रेजी संस्करण में देखा जा सकता है।( यह सूचना एक्टिवजम न्यूज नेटवर्क के हवाले से हासिल हुई है).

दोस्तो और साथियो
२४ अक्तूबर से २६ अक्तूबर तक तमिलनाडु में सेज से संबंधित जनसुनवाई में आपको आमंत्रित करते हुए हमें खुशी हो रही है।

जैसा कि आप सबको विदित है, सरकार बड़े आक्रामक अंदाज में औद्योगीकरण की राह पड़ चल पड़ी है और तमिलनाडु में १३९ विशेष आर्थिक क्षेत्र यानी सेज(स्पेशल इकॉनॉमिक जोन) अपनी मंजूरी के विभिन्न चरणों में हैं। तमिलनाडु के औद्योगिक निगम सिपकोट और टिडको उद्योगों और सेज के लिए बड़ी तेजी से जमीनों का अधिग्रहण कर रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक इन निगमों ने अबतक २५ हजार हेक्टेयर जमीन अपने कब्जे में ले लिया है और सैकड़ों हेक्टेयर जमीन पर इनकी नजर जमी हुई है।

सेज से संबंधित जन सुनवाई का काम कई राज्यों में हुआ है। जनसुनवाई में विख्यात अर्थशास्त्रियों, समाजविज्ञानियों, पत्रकारों और नौकरशाहों की मौजूदगी में विस्थापन से लेकर श्रम-अधिकार और बलात भू-अधिग्रहण के मसले पर विचार किया गया है। तमिलनाडु में सेज से संबंधित जन-सुनवाई का काम कांचीपुरम्, तिरुवन्नमलाई, तिरुवल्लूर, मदुरै, तिरुनेल्लवेली, कृष्णागिरी और वेल्लोर जिले में हो रहा है।

 अक्तूबर महीने के २४ और २५ तारीख को पैनल के सदस्य तमिलनाडु के विभिन्न क्षेत्रों का भ्रमण करेंगे और प्रभावित लोगों की शिकायतों को सुनेंगे। भ्रमण करने वाले दलों की संख्या तीन है। २६ तारीख को भ्रमणकारी दल चैन्नई में एकत्र होंगे और जनसुनवाई के निष्कर्षों का साझा करेंगे।


संक्षिप्त पृष्ठभूमि:

साल २००५ में सेज से संबंधित अधिनियम लागू हुआ। इसके बाद से अबतक १०४६ विशेष आर्थिक क्षेत्रों को देश में मंजूरी हासिल हो चुकी है और सैकड़ों सेज मंजूरी के विभिन्न चरणों में हैं यानी इनसे जुड़े विस्थापन और मुआवजे आदि का आकलन किया जा रहा है। सेज की मंजूरी के बीच लगातार उसका विरोध हुआ है। सेज को लेकर किसानों, डेवलपर्स और सरकार के बीच लगातार ठनी रही है।

सेज कानून की कुछ खास बाते इस प्रकार हैं- यह कानून विशेष आर्थिक क्षेत्रों के निर्माण को जनोपयोगी कार्य का दर्जा देता है। इस कानून में विनिर्माण( मेन्यूफैक्चरिंग) की परिभाषा करते हुए उसमें विनिर्माण के साथ साथ उत्पादन प्रक्रिया सहित खेती, पशुपालन, बागवानी, कीटपालन, मुर्गीपालन, रेशम के कीड़ों का पालन और खनन आदि को भी शामिल किया गया है। एक तरफ सेज के अन्तर्गत व्यापक आर्थिक गतिविधियों को शामिल किया गया है तो दूसरी तरफ विशेष आर्थिक क्षेत्रों की संख्या और इनके अधिकतम आकार के बारे में भी कोई सीमा नहीं तय की गई है। कानून में यह भी गुंजाइश बना दी गई है कि अधिगृहित जमीन का महज ५० फीसदी हिस्सा आर्थिक गतिविधियों के लिए काम में लाया जा सके। सेज में किसी स्थानीय निकाय को भागीदारी की अनुमति नहीं है और ना ही सेज की बनावट में पर्यावरणीय सरकारों या श्रमिक सरोकारों की कोई दखल है। सेज कानून में एक धारा ३१(९) है जो सेज की संरचना को किसी भी जवाबदेही से मुक्त करता है।


सेज का प्रभाव बड़े व्यापक स्तर पर होने जा रहा है। इसके प्रभाव की व्यापकता को देखते हुए एनएपीएम, नेशनल कंपेन फॉर पीपल्स राइट टू इन्फारमेशन, टाटा इंस्टीट्यूट ऑव सोशल साइंसेज. इंडिया सेंटर फॉर ह्यूमन राइटस् लयर्स नेटवर्क, नेशनल सेंटर फॉर एडवोकेसी स्टडीज सहित कई अन्य संगठनों ने पिछले महीने एक बैठक की ताकि सेज के प्रभावों के संबंध में जनसुनवाई की जा सके। जन सुनवाई का उद्देश्य देश के विभिन्न भागों में सेज के प्रभावों से संबंधित आकलन करना है। गौरतलब है कि जनसुनवाई का काम गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात, आध्रप्रदेश, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और दिल्ली जैसे राज्यों में हो चुका है। इससे संबंधित जानकारी निम्नलिखित लिंक पर मौजूद है।

http://sez.icrindia.org/index.php?option=com_content&v
iew=section&id=8&Itemid=35

 

 

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