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न्यूज क्लिपिंग्स् | अमेरिका की बेबस बेटियां- निकोलस क्रिस्टोफ

अमेरिका की बेबस बेटियां- निकोलस क्रिस्टोफ

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published Published on Apr 26, 2012   modified Modified on Apr 26, 2012
अगर आप सोचते हैं कि अवैध देह व्यापार के अड्डे सिर्फ नेपाल या थाईलैंड जैसे देशों में ही हैं, तो एक अमेरिकी लड़की की दास्तान आपकी राय बदल सकती है। सबसे पहले ब्रियान्ना यानी उस लड़की को उसके जन्मदिन के लिए हार्दिक बधाई। हाल ही में उसने अपने जीवन का 16वां वसंत देखा है। ब्राइना ने इसी नाम के इस्तेमाल का अनुरोध किया है, क्योंकि उसे डर है कि अगर उसके असली नाम का खुलासा हुआ, तो वकील बनने का उसका सपना टूट सकता है।

ब्राइना न्यूयॉर्क में पली-बढ़ी है। खूबसूरत है। उसे कविताएं लिखने का शौक है। 12 वर्ष की उम्र में एक शाम ब्राइना ने अपनी मां से झगड़ा किया और घर छोड़कर दोस्तों के पास चली गई। वह तुरंत घर वापस नहीं जाना चाहती थी, क्योंकि उसे फिर से मुसीबत में पड़ जाने का डर था। इस बीच उसके एक दोस्त के बड़े भाई ने उससे कहा कि वह उसके घर रह सकती है। ब्राइना ने सोचा कि अगले दिन सुबह वह अपने घर लौट जाएगी। लेकिन जब सुबह हुई, तो ब्राइना की दुनिया बदल चुकी थी। वह बताती है,'मैंने जब वहां से घर वापस जाने की कोशिश की, तो उसने मुझसे कहा कि तुम नहीं जा सकती, अब तुम मेरी हो।' उसे शरण देने वाला शख्स दलाल निकला। उसने उसे एक कमरे में बंद कर दिया। ब्राइना उस वक्त को याद करते हुए कहती है कि दलाल कभी उसे पीटता था, तो कभी उससे प्यार जताता था।

उसके बाद दलाल ने अमेरिका में देह व्यापार से जुड़ी एक प्रमुख वेबसाइट बैकपेज डॉट कॉम पर ब्राइना का विज्ञापन दिया। ब्राइना का अनुमान है कि उसके दलाल की आधी कमाई का जरिया बैकपेज है। एक कारोबारी संगठन एआईएम समूह के मुताबिक अमेरिका में वेश्यावृत्ति से जुड़े 70 फीसदी विज्ञापन बैकपेज को मिलते हैं। इसमें ज्यादातर ऐसी महिलाओं के विज्ञापन होते हैं, जो स्वेच्छा से इस पेशे में हैं। बैकपेज पुलिस के सहयोग से काम करती है और कोशिश करती है कि कम उम्र लड़कियों के विज्ञापन उसकी साइट पर न जाएं, मगर ब्राइना के मामले में ऐसा नहीं हो सका।

बैकपेज का मालिकाना हक विलेज वॉयस मीडिया के पास है। इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों के दौरान अमेरिका की दिग्गज निवेश कंपनी गोल्डमैन सैश और ट्राइमरान कैपिटल पार्टनर्स व अल्टा कम्युनिकेशंस जैसी कुछ छोटी वित्तीय कंपनियों ने भी इसमें हिस्सेदारी खरीदी है। खोजबीन से मुझे पता चला कि इन कंपनियों के प्रतिनिधियों ने विलेज वॉयस मीडिया के बोर्ड के साथ एक बैठक की थी। इस बैठक के बाद इन कंपनियों की तरफ से बैकपेज के कारोबारी लक्ष्यों के विरोध संबंधी कोई संकेत नहीं मिला। हाल ही में मैंने जब इस बारे में लिखा, तो इन कंपनियों की तरफ से अनेक बहाने बताए जाने लगे। इसके बाद इन कंपनियों ने अपने कदम पीछे खींचने शुरू कर दिए।

ब्राइना से मैं न्यूयॉर्क के एक ऐसे केंद्र 'गेटवेज' में मिला था, जहां देहव्यापार में जबरन धकेली गई लड़कियों का उपचार किया जाता है। यह उत्तर न्यूयॉर्क सिटी से 35 मील दूर स्थित है, जिसकी देखरेख जेविस चाइल्ड केयर एसोसिएशन करता है। वैसे तो यहां 12 से 16 वर्ष तक की लड़कियों के इलाज की अनुमति है, लेकिन एक 11 साल की लड़की को भी प्रवेश दिया गया। केंद्र की निदेशक लाशाउना कट्स के मुताबिक यहां आई सारी लड़कियां बैकपेज के जरिये बेची गई थीं। वहां कुल 13 बिस्तर हैं। जबकि कट्स कहती हैं, अगर यहां 1,300 बिस्तर होते, तो वे भर जाते, क्योंकि अमेरिका में ऐसे मामलों की तादाद काफी ज्यादा है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि किशोर लड़कियां देह व्यापार में अपनी मर्जी से हैं। यह सही है कि ज्यादातर मामले ऐसे नहीं हैं, जिनमें लड़कियों को जबरन इस धंधे में धकेला गया हो, लेकिन धमकी और मारपीट की बात आम है। इस दलदल में धंसी ज्यादातर लड़कियां बताती हैं कि एक तरह के भावनात्मक जाल के कारण वह यहां से निकलने की कोशिश नहीं करतीं। इस जाल में न सिर्फ दलालों का डर है, बल्कि उनका सम्मोहन भी है।

जैसे ब्राइना बताती है कि एक बार उसने खिड़की से बाहर झांका तो देखा कि उसकी मां गली में चिल्ला रही है और दीवारों पर उसकी गुमशुदुगी से संबंधित फोटो वाला पोस्टर लगा रही है। यह देखकर उसने चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन इसी बीच दलाल उसके बाल पकड़कर खींच ले गया और फिर कमरे में बंद कर दिया। उसके बाद यह भी धमकी दी कि चिल्लाने पर उसे मार दिया जाएगा।

ब्राइना बताती है कि अगर वह भागने की कोशिश करती, तो जान से हाथ धोना पड़ सकता था। और अगर वह पुलिस के पास जाती तो हो सकता है, उसे जेल भी जाना पड़ता। दलाल ऐसी लड़कियों को पुलिस पर भरोसा न करने की चेतावनी देते हैं और अकसर वे सही होते हैं। मानव तस्करी से पीड़ितों के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन लॉ स्कूल में एक क्लीनिक चलाने वाले ब्रीजेट कार एक 16 वर्षीया गुमशुदा लड़की की कहानी बताते हैं। दरअसल लड़की के गायब होने के बाद उसके परिजनों ने उसकी तसवीर बैकपेज पर देखी और अधिकारियों को सूचित किया। इसके बाद पुलिस ने दलाल के ठिकानों पर छापा मारकर तीन हफ्ते से बंधक लड़की को छुड़ाया।

ब्राइना की आपबीती से साफ है कि पुलिस और अभियोजन पक्ष को पीड़ित लड़कियों की जगह दलालों को निशाना बनाना चाहिए। इस दलदल में फेंकी गई लड़कियों को आसरे की जरूरत है, न कि जेल की। इसके अलावा दलालों को बढ़ावा देने वाले बैकपेज जैसे ऑनलाइन माध्यमों पर पाबंदी लगानी चाहिए। अवैध देह व्यापार हर जगह अस्वीकार्य है, चाहे वह थाईलैंड हो या नेपाल या फिर अमेरिका।

द न्यूयॉर्क टाइम्स

http://www.amarujala.com/Vichaar/Columnist/Nicholas-Kristof/America-poor-daughters-54-464.html


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