Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | जवानी कहीं दीवानी न हो जाये!- अनिल रघुराज

जवानी कहीं दीवानी न हो जाये!- अनिल रघुराज

Share this article Share this article
published Published on Mar 14, 2016   modified Modified on Mar 14, 2016
इधर जवानी का जलवा-जलाल कुछ ज्यादा ही चढ़ गया है. मानव संसाधन में युवाओं की भूमिका का बखान बराबर हो रहा है. हम दुनिया के सबसे जवान देश हैं. हमारी 65 प्रतिशत आबादी 35 साल से कम की है. मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी कुछ दिन पहले बमक पड़ीं कि 50 साल के राहुल गांधी युवा कैसे हो सकते हैं. खैर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस पर बड़े संजीदा हैं. राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि साल 2030 में दुनिया की नजर हिंदुस्तान की वर्कफोर्स पर रहनेवाली है और हमें अभी से वैश्विक स्तर की वर्कफोर्स तैयार करने के काम में लग जाना चाहिए.

गुरु-गंभीर सवाल यह है कि युवा शक्ति को श्रम शक्ति में कैसे बदला जाये और उसके रोजी-रोजगार की व्यवस्था कैसे हो. यह भारत की विकासगाथा से जुड़ा सबसे बड़ा जोखिम भी है. लेकिन, शायद हमारा सरकारी तंत्र इसको लेकर उतना गंभीर नहीं है. बीमारी का इलाज कराना हो, तो डॉक्टर तीन महीने से ज्यादा पुराना एक्स-रे या मेडिकल रिपोर्ट स्वीकार नहीं करता. लेकिन, सरकार के पास देश में रोजगार का अद्यतन आंकड़ा जून 2012 का है. 

राष्ट्रीय सैंपल सर्वे के 68वें दौर के बाद सरकारी स्तर पर हकीकत को पता लगाने की कोई कोशिश नहीं की गयी. हां, इतना जरूर हुआ कि पिछले महीने 8 फरवरी को सरकार ने उसी सर्वे के आधार पर यह रिपोर्ट जरूर जारी कर दी कि देश के प्रमुख धार्मिक समूहों में रोजगारी व बेरोजगारी की स्थिति क्या है? क्या राष्ट्रीय रोजगार का सच धार्मिक समूहों में बांट कर देखा जा सकता है?

रोजगार का मामला आज दुनिया में कितना गंभीर माना जाता है, इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि अमेरिका ने अपनी पूरी मौद्रिक नीति इस पर टिका दी कि जब तक बेरोजगारी की दर 6.5 प्रतिशत पर नहीं आ जाती, तब तक वह बाजार में डॉलर छाप कर डालता रहेगा. इस चक्कर में वहां के केंद्रीय बैंक ने 2008 से 2014 के बीच सिस्टम में नोटों की मात्रा 800 अरब डॉलर से बढ़ा कर 4.5 लाख करोड़ डॉलर कर डाली. अभी भी अमेरिका ने अपना सारा तंत्र इतना चौकस रखा है कि हर महीने की 4-5 तारीख को ठीक पिछले महीने में रोजगार सृजन और बेरोजगारी के आंकड़े उसके पास आ जाते हैं. मसलन, 4 मार्च को अमेरिका के केंद्रीय श्रम विभाग ने बता दिया था कि फरवरी में उनके यहां रिटेल, रेस्टोरेंट व हेल्थकेयर क्षेत्र में 2.42 लाख नये लोगों को नौकरी दी गयी है और देश में बेरोजगारी की दर 4.9 प्रतिशत की संतोषजनक सीमा में है.

मुश्किल यह है कि दुनिया के सबसे युवा देश भारत की सरकार चार साल पुराने आंकड़ों से काम चला रही है. कमाल तो यह हो गया कि प्रधानमंत्री मोदी को रोजगार पर अपनी सरकार की उपलब्धि बताने के लिए मॉन्स्टर इंप्लाइमेंट इंडेक्स का सहारा लेना पड़ा. आप जानते ही होंगे कि मॉन्स्टर निजी क्षेत्र में ऑनलाइन नौकरियों के आवेदन जमा करने की वेबसाइट है, उसी तरह जैसे शादी के लिए शादीडॉटकॉम या जीवनसाथीडॉटकॉम. प्रधानमंत्री ने बताया कि 2014 में उनकी सरकार बनने के समय मॉन्स्टर का रोजगार सूचकांक 150 पर था, जबकि जनवरी 2016 में यह 229 पर पहुंच चुका है. लेकिन क्या रोजगार में डेढ़ गुना से ज्यादा की यह वृद्धि वास्तव में कहीं जमीन पर नजर आती है?

चिंता में डालनेवाली वास्तविकता यह है कि अभी देश में हर साल 1.3 करोड़ युवा लोग नौकरी की लाइन में जुड़ रहे हैं और यह सिलसिला 2030 तक बदस्तूर जारी रहेगा. हर साल पिछले साल का बैकलॉग नौकरी तलाशनेवाले लोगों में जुड़ता जायेगा. कुछ लोग कहते हैं कि देश की आबादी जिस तरह से बढ़ रही है, उसमें कोई भी सरकार सभी के लिए रोजगार की व्यवस्था कैसे कर सकती है. सही बात है कि देश में आबादी बढ़ने की दर रोजगार के जुड़ने की दर से ज्यादा चल रही है. लेकिन, इसका समाधान परिवार नियोजन या आपातकाल जैसी नसबंदी में नहीं है. दुनिया गवाह है कि शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी सामाजिक सेवाओं का स्तर उठते ही आबादी की बढ़त थम जाती है. देश में इसका उदाहरण केरल है और दुनिया में जापान से लेकर जर्मनी व अमेरिका तक इसका सबूत पेश करते हैं.

दुखद स्थिति है कि अपने यहां सामाजिक सेवाओं पर खर्च वित्त वर्ष 2014-15 में सकल घरेलू उत्पाद (डीजीपी) का 7 प्रतिशत हुआ करता था और 2015-16 के संशोधित अनुमान में यह घट कर 6.7 प्रतिशत पर आ गया है. पिछले कई सालों से केंद्र सरकार का शिक्षा खर्च जीडीपी के 3 प्रतिशत और स्वास्थ्य खर्च पर 1.3 प्रतिशत पर अटका हुआ है. कोई कहेगा कि मूलतः शिक्षा व स्वास्थ्य राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. लेकिन को-ऑपरेटिव फेडरलिज्म के नारे के शोर में केंद्र व राज्यों को मिल कर इसका समाधान निकालना होगा.

वैसे, आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि हमारे यहां बेरोजगारी की सरकारी दर 4.2 प्रतिशत है. अमेरिका इतनी कोशिशों के बाद भी 4.9 प्रतिशत पर पहुंच पाया. मगर, हम बिना कुछ किये ही उससे बेहतर स्थिति में हैं. इस विचित्र स्थिति में भारत की एक शानदार हकीकत छिपी हुई है. 

वह यह है कि अधिकतर भारतीय रोजगार के पीछे नहीं, बल्कि रोजी के पीछे भागते हैं. हमारे देश में बेरोजगारी का आंकड़ा इस गणना से निकाला जाता है कि नौकरी चाहनेवालों में से कितनों को नौकरी नहीं मिली. इसीलिए गांवों से लेकर कस्बों और शहरों तक बेरोजगारी से त्रस्त होने के बावजूद हमारे यहां बेरोजगारी की दर अमेरिका से बेहतर है.

लेकिन, जैसे-जैसे लोग अपनी चौहद्दियों से निकल कर सही मायनों में राष्ट्रवादी बनने लगे हैं, वैसे-वैसे आंकड़ों और हकीकत का अंतर कम होता जा रहा है और युवा पीढ़ी में बेचैनी बढ़ती जा रही है. अब भगीरथ ने स्वर्ग से गंगा का आवाहन तो कर लिया है, लेकिन शिव की जटाओं ने उसे संभाला नहीं और जवानी दीवानी हो गयी तो प्रलय आ सकता है. इसलिए सावधान! देश सावधान! सरकार सावधान!

http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/738694.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close