Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष का कठिन दौर-सुरेंद्र किशोर

भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष का कठिन दौर-सुरेंद्र किशोर

Share this article Share this article
published Published on Oct 22, 2012   modified Modified on Oct 22, 2012
जनसत्ता 22 अक्टुबर, 2012: भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों पर भी देश का लगभग पूरा राजनीतिक वर्ग आरोपितों का इन दिनों अतार्किक ढंग से बचाव करता नजर आ रहा है। कोई दल या नेता अपनी कमी या गलती मानने को आज तैयार नहीं है। सुधरने का तो कहीं से दूर-दूर तक कोई संकेत नहीं। इससे भी, भ्रष्टाचार की समस्या की गंभीरता का पता चलता है।
देश के अधिकतर नेताओं के ताजा रुख से यह भी साफ है कि इस समस्या का हल दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है। अगला चुनाव भी इसका कोई हल है, ऐसा फिलहाल नहीं लगता। वैसे भी पिछले अनुभव यही बताते हैं कि चुनाव अब मात्र राजनीतिक विकल्प दे रहे हैं, न कि वैकल्पिक राजनीति प्रस्तुत कर रहे हैं। 
प्राप्त संकेतों और खबरों के अनुसार इस देश में चूंकि भ्रष्टाचार का मर्ज काफी गहरा हो चुका है, इसलिए इसे समाप्त करने की कौन कहे, कम करने में भी अभी काफी समय लगेगा। विभिन्न राजनीतिक दलों की इस मुद््दे पर घोषित और अघोषित राय जानने के बाद यह साफ लगता है कि भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ लंबे, कठिन और संघषपूर्ण अभियान की जरूरत पड़ेगी। यह तो आजादी की लड़ाई से भी अधिक कठिन लड़ाई प्रतीत हो रही है।
कई चुनावी बुराइयों की मौजूदगी और उनमें वृद्धि के साथ-साथ जातिगत और सांप्रदायिक वोट बैंक की राजनीति के इस दौर में अगले किसी चुनाव के नतीजे से अण्णा हजारे या फिर अरविंद केजरीवाल को किसी तरह की बेहतरी की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। इसलिए अरविंद को चुनावी अभियान के साथ-साथ लंबे और कठिनतर संघर्ष के लिए भी तैयार रहना चाहिए। क्योंकि निर्णायक जन-जागरण में अभी और समय लग सकता है।
भ्रष्टाचार की समस्या पुरानी है। एक दिन में नहीं पैदा हुई। आजादी के तत्काल बाद ही इसका पौधारोपण हो चुका था। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से जब किसी ने शासन में बढ़ते भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने को कहा तो उनका जवाब था कि इससे शासन में पस्तहिम्मती आएगी। नेहरू खुद तो ईमानदार नेता थे, पर उनके कार्यकाल में भी आमतौर पर भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई तभी हो सकी जब सरकार ऐसा करने को मजबूर हो गई। इससे सदाचारियों में धीरे-धीरे पस्तहिम्मती बढ़ी और समय के साथ भ्रष्टाचारियों का हौसला बुलंद होता गया। आज स्थिति यह हो गई है कि भ्रष्ट तत्त्व गुर्रा रहे हैं और अरविंद केजरीवाल जैसों पर आफत आ पड़ी है।
भ्रष्टाचार को परोक्ष-प्रत्यक्ष सरकारी संरक्षण का इतिहास देखिए। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में यह खबर आई थी कि 1967 के आम चुनाव के समय एक दल को छोड़ कर सारे प्रमुख भारतीय राजनीतिक दलों ने अपने चुनाव खर्चे के लिए विदेशों से नाजायज तरीके से पैसे लिए थे। किसी और एजेंसी या संस्था की जांच से नहीं, खुद भारत सरकार की खुफिया एजेंसी आइबी की एक जांच से यह पता चला था। पर उस रपट को तत्कालीन केंद्र सरकार ने दबा दिया। अगर तब इस पर कार्रवाई हुई होती तो राजनीतिक भ्रष्टाचार पर कुछ अंकुश जरूर लगता। पर इस रपट का संक्षिप्त विवरण ‘न्यूयार्क टाइम्स’ में छप गया। तब लोकसभा में मांग उठी कि उस रपट को सार्वजनिक किया जाए। पर गृहमंत्री वाईबी चव्हाण ने कहा कि उस ‘रपट के प्रकाशन से अनेक व्यक्तियों और दलों के हितों को हानि होगी।’ यानी तब भी सरकार का यही रुख था कि भले देश का नुकसान हो जाए, पर व्यक्तियों और दलों का नहीं होना चाहिए।
आज भी इस देश में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच तभी हो पा रही है जब समय-समय पर विभिन्न अदालतें इस काम के लिए सरकार को मजबूर कर दे रही हैं। वरना पक्के सबूत आ जाने के बावजूद अनेक नेता यही कहते मिलते हैं कि नेताओं के परिजनों-रिश्तेदारों के खिलाफ हमें कुछ नहीं बोलना चाहिए।
अगर एक लाख करोड़ से अधिक राजस्व के नुकसान का आकलन सामने आता है तो कहा जाता है कि सीएजी का आंकड़ा गलत है। पर जब इकहत्तर लाख रुपए की हेराफेरी का आरोप लगता है तो कहा जाता है कि एक केंद्रीय मंत्री के लिए यह छोटी राशि है। यानी वह इतने कम की चोरी क्यों करेगा? यानी एक केंद्रीय मंत्री का रेट भी खुलेआम बताया जा रहा है। जब किसानों की सौ एकड़ जमीन को सत्ताधारी नेता से मिल कर हथियाने का आरोप लग रहा है तो भाजपा अध्यक्ष कह रहे हैं कि यह तो चिल्लर टाइप का आरोप है! आखिर इस देश के नेताओं को क्या हो गया है?
कभी जवाहरलाल नेहरू ने अपना आनंद भवन कांग्रेस पार्टी को दे दिया था। जनसंघ और भाजपा के भी कई पुराने नेताओं ने अपनी जमीन और मकान सार्वजनिक काम के लिए दान कर दिया। मगर उसी दल के कई नेताओं पर आज आरोप लग रहा है कि वे जायज-नाजायज तरीके से अधिक से अधिक जमीन-जायदाद के मालिक बनने की होड़ में शामिल हैं।
राजनीति कहां से चल कर कहां पहुंच चुकी है और आगे और कहां तक जाएगी? राजीव गांधी ने 1984 में ही कहा था कि हम सौ पैसे दिल्ली से भेजते हैं, पर उसमें से सिर्फ पंद्रह पैसे जनता तक पहुंचते हैं। इसे रोकने के लिए हमारे हुक्मरानों ने क्या किया? उलटे अब तो अनेक सत्ताधारी और अन्य प्रभावशाली लोग जनता की जेब से भी कहीं पैसे निकालते जा रहे हैं तो कहीं जमीन हड़प कर उससे निजी संपत्ति बढ़ा रहे हैं।
यही सब देख-समझ कर 2003 में ही सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि ‘भ्रष्टाचार निरोधक कानून अपने उद््देश्यों की प्राप्ति में बुरी तरह विफल रहा है।’ मार्च, 2007 में तो चारा घोटाले से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने यहां तक कहा कि ‘सब इस देश को लूटना चाहते हैं। इसलिए इस लूट को रोकने का एक ही उपाय है कि भ्रष्टाचारियों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान किया जाए।’
इससे पहले मुख्य चुनाव आयुक्त रहे जेएम लिंग्दोह ने 2003 में कहा था कि राजनेता एक कैंसर हैं। हालांकि यह टिप्पणी कुछ ज्यादा ही तल्ख थी, फिर भी इस टिप्पणी को लेकर आत्म-निरीक्षण करने के बदले सत्ताधारी भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष एम वेंकैया नायडू ने कहा कि ‘ऐसी टिप्पणी से एक ऊंचे संवैधानिक पद की गरिमा कम होती है।’ याद रहे कि उससे पहले राजनीतिक दलों ने न सिर्फ चुनाव सुधार की कोशिश विफल कर दी थी और यही दर्शाया किगंभीर चुनावी अनियमितताओं को दूर करने में भी राजनीति की मुख्यधारा की कोई रुचि नहीं रह गई है। इसे लिंग्दोह ने करीब से अनुभव किया था। स्थिति बिगड़ती ही चली जा रही है और आज तो प्रमुख राजनीतिक दलों के नेतागण सार्वजनिक रूप से यह कह रहे हैं कि हम नेताओं के करीबी रिश्तेदारों के खिलाफ कोई टीका-टिप्पणी नहीं करते। जबकि पूरे देश में राजनीति पर अब परिवारवाद बुरी तरह हावी है और अधिकतर नेताओं के परिजन सार्वजनिक हितों को नुकसान पहुंचा कर जायज-नाजायज तरीकों से अपार धन-संपत्ति इकट््ठा करने में दिन-रात लगे हुए हैं।
जब तक अदालत मजबूर न कर दे तब तक किसी भ्रष्ट नेता के खिलाफ आज कोई कार्रवाई नहीं हो पाती है। जन लोकपाल या कारगर लोकपाल कानून बनाने से मुख्य राजनीति ने साफ इनकार कर दिया है। सीबीआइ के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह का अनुभव यह है कि ‘नेता-अफसर का गठजोड़ इतना मजबूत हो चुका है कि इसने स्वार्थवश शासन की सारी संस्थाओं को प्रभावहीन बना दिया है।’ दूसरे विकसित देशों में नाजायज काम कराने के लिए रिश्वत दी जाती है। पर हमारे देश में नियमत: मुफ्त में मिलने वाली सरकारी सुविधाएं और सेवाएं हासिल करने के लिए भी जनता को रिश्वत देने को बाध्य होना पड़ता है।
देश में भ्रष्टाचार की व्यापकता का हाल यह है कि गरीबों को जरूरी स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधाएं उपलब्ध कराने के नाम पर भी सरकारी-गैर सरकारी माफिया पाले-पोसे जा रहे हैं। वन और खनिज संपदा जैसे सार्वजनिक संसाधनों की सरकारी मदद से खुली लूट जारी है। जनता से करों के रूप में वसूले जा रहे पैसों में से हर साल लाखों करोड़ रुपए बड़े-बड़े कारोबारियों को तरह-तरह की रियायतों के रूप में सरकार दान कर रही है। दूसरी ओर, संसाधनों की कमी का रोना रोकर सरकारें देश के बड़े हिस्से में आजादी के छह दशक बाद भी विकास की रोशनी नहीं पहुंचा सकीं। गरीबी और अन्याय के कारण नक्सली बढ़ रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश के करीब दो सौ सत्तर जिलों में नक्सलियों ने शासन को अप्रभावी बना दिया है।
भ्रष्टाचार के कारण देश में अन्य कई समस्याएं भी बढ़ रही हैं। भुखमरी बढ़ रही है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। सीमा पर खतरा मंडरा रहा है। भीतर भी तरह-तरह की अशांति है। महंगाई और गरीबी के कारण अनेक युवा गलत हाथों में पड़ रहे हैं। यह देश के बाहरी और भीतरी दुश्मनों के लिए अनुकूल स्थिति है। पर इसकी कोई चिंता हमारे अधिकतर हुक्मरानों में नहीं दिखती। देश की मूल समस्याओं का समाधान सरकारी संसाधनों के बिना नहीं होगा। संसाधन तब जुटेंगे जब वे भ्रष्टाचार में जाया होने से रुकेंगे। पर इस काम में देश की मुख्यधारा की मौजूदा राजनीति की कोई रुचि दिखाई नहीं पड़ती। हाल में भ्रष्टाचार के आरोपों पर उनकी प्रतिक्रियाओं से यह साफ है कि उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं।
चाणक्य ने कहा था कि ‘जब किसी देश के नागरिक सताए जाते हैं, उनके साथ दुर्व्यवहार होता है, गरीब परेशान और बिखरे हुए होते हैं, तभी उस देश पर दुश्मन देश को आक्रमण का मौका मिलता है, ताकि वे वहां के असंतुष्ट लोगों को तोड़ सकें।’ आज भारत में गरीबों के साथ, जिनकी संख्या कुल आबादी का करीब तीन चौथाई है, क्या हो रहा है? उनके कल्याण के लिए संसाधनों को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ने से बचाने की चिंता किस दल में है? इसके लिए सर्वदलीय चिंता या आम सहमति क्यों नहीं है?
उलटे जब कैंसर की तरह राज्य-व्यवस्था के रोम-रोम में फैले भ्रष्टाचार और उसमें उच्चस्तरीय संलिप्तता के सबूत सामने लाए जाते हैं तो कहा जा रहा है कि इससे लोकतंत्र में जनता की आस्था कमजोर होगी। व्यक्तिगत आरोप लगाना ठीक नहीं है। दूसरी बड़ी समस्याएं उठानी चाहिए। यानी कुछ नेताओं के अनुसार, लोकतंत्र को भ्रष्टाचार से नहीं बल्कि उसकी चर्चा से खतरा है। जिस देश को ऐसे नेताओं से पाला पड़ा हो, वहां भ्रष्टाचार-विरोधियों की लड़ाई आसान नहीं है। क्या यह सिर्फ एक चुनाव के बूते की बात है? हां, यह कहना जरूरी है कि सभी नेता भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं है। अनेक पाक-साफ भी हैं। पर उनकी आज कोई नहीं सुन रहा है।

http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/20-2009-09-11-07-46-16/31150-2012-10-22-05-07-23


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close