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न्यूज क्लिपिंग्स् | मैली हो रही भगीरथी व अलकनंदा

मैली हो रही भगीरथी व अलकनंदा

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published Published on Apr 19, 2010   modified Modified on Apr 19, 2010

उत्तकाशी/गोपेश्वर। उत्तराचल के अधिकांश नगरों को अब भी सीवर लाइन व सीवरेज प्लाट का इंतजार है। शासन का तमाम प्रस्ताव भेजे गए लेकिन बजट के अभाव में फाइलें धूल फाक रही हैं।

नतीजतन, नालियों, पाइपलाइनों से होती हुई सीवर की गंदगी गंगा-भागीरथी, मंदाकिनी और सहायक नदियों में डाली जा रही है। तीर्थधाम बदरीनाथ में सीवर लाइनें सीधे अलकनंदा में खोली गई हैं। सरकारी लापरवाही से नगरों के नियोजित विकास तो बाधक है ही गंगा की सेहत भी खतरे में है। उत्तरकाशी में आठ करोड़ रुपये से सीवर लाइन गंगोरी से ज्ञानसू तक बिछाई गई है, लेकिन आगे का काम रुका पड़ा है। चार छोटे सीवेज प्लाट जर्जर हो चुके हैं। ज्ञानसू में मुख्य प्लाट चार करोड़ लागत की ब्राच सीवर लाइन का प्रस्ताव शासन से अब तक स्वीकृत नहीं हुआ है।

नई टिहरी के भागीरथीपुरम में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लाट है, जहा से गंदगी को अलग कर पानी भागीरथी में छोड़ा जाता है, लेकिन लाइनें चोक होने के कारण नगर की सड़कों पर गंदगी बहती रहती है।

पौड़ी गढ़वाल में 2006 में 25 करोड़ लागत से सीवरेज योजना बनाई गई, लेकिन बजट आवंटित नहीं हुआ। 09 में दोबारा 50 करोड़ की योजना बनी लेकिन बजट के अभाव में स्वीकृति नहीं मिली। गोपेश्वर में सीवर लाइन का काम कछुआ गति से चल रहा है। चमोली में आजादी से पहले की लाइनें जर्जर हो चुकी हैं। हालांकि, गोपेश्वर और चमोली में ट्रीटमेंट प्लाट स्थापित के लिए शासन से दस करोड़ की स्वीकृति मिल गई है।

श्री बदरीनाथ धाम, जोशीमठ, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग व गौचर में भी सीवरेज व्यवस्था नहीं है। सभी जगह गंदगी अलकनंदा में डाली जा रही है। रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय में अब तक सीवर लाइन नहीं है। हैरत की बात यह है कि इसके लिए अब तक योजना भी नहीं बनी है। श्रीनगर गढ़वाल में ट्रीटमेंट प्लाट बजट न मिलने से यह ठीक काम नहीं कर पा रहा।

कोटद्वार [गढ़वाल] में सीवरेज का कोई ट्रीटमेंट प्लाट नहीं है। ऐसे में गंदगी नगर से करीब पांच किमी दूर उत्तर प्रदेश के बिजनौर वन प्रभाग के जंगल में डाली जा रही है। 2002 में स्थानीय प्रशासन ने 40 किमी लंबी सीवर लाइन के लिए 1024.90 लाख का प्राक्कलन तैयार किया लेकिन प्रस्ताव नहीं भेजा गया।

04-05 में पुन: सर्वे कर 3479.19 लाख का प्रस्ताव शासन ने केंद्र को प्रेषित किया। तब से मामला ठंडे बस्ते में है। उत्तराखंड के 65 नगर निकायों में से 39 में सीवरेज प्रणाली उपलब्ध नहीं है। 19 शहर ऐसे हैं जहा सीवरेज प्रणाली प्रयोग में लाई जा रही है, जबकि सात शहरों के कुछ ही हिस्सों में सीवरेज व्यवस्था है। सभी निकायों को सीवरेज प्रणाली से जोड़ने के लिए 1742 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। जल संसाधन विकास निगम ने सभी 65 निकायों में सीवरेज व्यवस्था स्थापित करने के लिए अनुमानित आकलन तैयार किया है।


http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6351794/
 

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