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न्यूज क्लिपिंग्स् | सशक्तीकरण के लिए स्वच्छ पर्यावरण- नरेन्द्र मोदी

सशक्तीकरण के लिए स्वच्छ पर्यावरण- नरेन्द्र मोदी

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published Published on Oct 5, 2018   modified Modified on Oct 5, 2018
संयुक्त राष्ट्र ने कल मुझे ‘चैंपियंस ऑफ द अर्थ अवॉर्ड' से सम्मानित किया। सम्मान प्राप्त करके मैं बहुत अभिभूत हूं। मैं महसूस करता हूं कि यह पुरस्कार किसी व्यक्ति के लिए नहीं है। यह भारतीय संस्कृति और मूल्यों की स्वीकृति है, जिसने हमेशा प्रकृति के साथ सौहार्द बनाने पर बल दिया है। जलवायु परिवर्तन में भारत की सक्रिय भूमिका को मान्यता मिलना और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस व संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक इरिक सोलहिम द्वारा भारत की भूमिका की प्रशंसा प्रत्येक भारतीय के लिए गर्व का क्षण है।

मानव और प्रकृति के बीच विशेष संबंध रहे हैं। प्रकृति माता ने हमारा पालन-पोषण किया है। प्रारंभिक सभ्यताएं नदियों के तट पर स्थापित हुईं। प्रकृति के साथ सौहार्दपूर्ण तरीके से रहने वाले समाज फलते-फूलते हैं और समृद्ध होते हैं। मानव समाज आज एक महत्वपूर्ण चौराहे पर खड़ा है। हमने जो रास्ता तय किया है, वह न केवल हमारा कल्याण निर्धारित करेगा, बल्कि हमारे बाद इस ग्रह पर आने वाली पीढ़ियों को भी खुशहाल रखेगा। लालच और आवश्यकताओं के बीच असंतुलन ने गंभीर पर्यावरण असंतुलन पैदा कर दिया है। हम या तो इसे स्वीकार कर सकते हैं या पहले की तरह ही चल सकते हैं या सुधार के उपाय कर सकते हैं।

तीन चीजों से तय होगा कि कैसे एक समाज सार्थक परिवर्तन ला सकता है।

पहली चीज आंतरिक चेतना है। इसके लिए अपने गौरवशाली अतीत को देखने से बेहतर कुछ नहीं हो सकता। प्रकृति का सम्मान भारत की परंपरा के मूल में है। अथर्ववेद में पृथ्वी सूक्त शामिल है, जिसमें प्रकृति और पर्यावरण के बारे में अथाह ज्ञान है- यस्यां समुद्र उत सिन्धुरापो यस्यामन्नं कृष्टय: संबभूवु:। यस्यामिदं जिन्वति प्राणदेजत्सा नो भूमि: पूर्वपेयेदधातु। यानी माता पृथ्वी अभिनंदन। उनमें सन्निहित है महासागर और नदियों का जल; उनमें सन्निहित है भोजन, जो भूमि की जुताई द्वारा वे प्रकट करती हैं; उनमें निश्चित रूप से सभी जीवन समाहित हैं; वे हमें जीवन प्रदान करें।

महात्मा गांधी ने पर्यावरण के बारे में बहुत गहराई से लिखा है। उन्होंने ऐसी जीवन शैली को व्यवहार में उतारा, जिसमें पर्यावरण के प्रति भावना प्रमुख है। उन्होंने ‘आस्था का सिद्धांत' दिया, जिसने हमें यह दायित्व सौंपा गया है कि हम अगली पीढ़ी को स्वच्छ धरा प्रदान करें। उन्होंने युक्तिसंगत खपत का आह्वान किया, ताकि विश्व को संसाधनों की कमी का सामना न करना पड़े।

दूसरा पक्ष जन-जागरण का है। हमें पर्यावरण के प्रश्नों पर यथासंभव बातचीत करने, लिखने, चर्चा करने की आवश्यकता है। साथ ही इन विषयों पर अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहन देना भी महत्वपूर्ण है। इस तरह, ज्यादा से ज्यादा लोगों को हमारे समय की गंभीर चुनौतियों को जानने और उन्हें दूर करने के प्रयासों पर सोचने का अवसर मिलेगा। जब हम पर्यावरण संरक्षण से अपने मजबूत रिश्तों के बारे में जागरूक होंगे, उस पर चर्चा करेंगे, तब सतत पर्यावरण की दिशा में हम स्वयं सक्रिय हो जाएंगे। इसीलिए सकारात्मक बदलाव लाने के लिए मैं सक्रियता को तीसरे पक्ष के रूप में रखता हूं।

मुझे यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि भारत के 130 करोड़ लोग स्वच्छता और हरित पर्यावरण के लिए सक्रिय हैं और बढ़-चढ़कर काम कर रहे हैं। देश में 8.5 करोड़ घरों की पहुुंच पहली बार शौचालय तक बनी है और 40 करोड़़ से अधिक भारतीयों को अब खुले में शौच करने की आवश्यकता नहीं है। स्वच्छता का दायरा 39 प्रतिशत से बढ़कर 95 प्रतिशत हो गया है। प्राकृतिक परिवेश पर दबाव कम करने का यह ऐतिहासिक प्रयास है। उज्ज्वला योजना में भी हम यही सक्रियता देखते हैं, जिसकी वजह से घरों में होने वाला वायु प्रदूषण बहुत कम हुआ है, क्योंकि भोजन पकाने की अस्वस्थ विधियों से सांस संबंधी रोगों में काफी बढ़ोतरी हो रही थी। अभी तक पांच करोड़ से अधिक उज्ज्वला कनेक्शन बांटे जा चुके हैं और इसकी वजह से महिलाओं और उनके परिवारों के लिए एक बेहतर और स्वच्छ जीवन सुनिश्चित हुआ है। नदियों की सफाई की दिशा में भारत काफी तेजी से बढ़ रहा है। जीवन रेखा कही जाने वाली गंगा नदी कई हिस्सों में काफी प्रदूषित हो चुकी थी। नमामि गंगे मिशन इस ऐतिहासिक गलती को सुधार रहा है।

हमारे शहरी विकास प्रयासों, अमृत और स्मार्ट सिटी मिशन का मूल तत्व शहरी क्षेत्र में होने वाली वृद्धि और पर्यावरण की देखभाल में संतुलन बनाना है। किसानों को बांटे गए 13 करोड़ से अधिक मृदा स्वास्थ्य कार्डों से काफी लाभ हो रहा है और इससे जमीन की उत्पादकता तथा उसकी पोषकता में बढ़ोतरी होगी। कौशल भारत में हमने समन्वित उद्देश्य अपनाए हैं और विभिन्न योजनाओं से, जिनमें हरित कौशल विकास कार्यक्रम शामिल है, पर्यावरण, वानिकी, वन्य-जीव और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में वर्ष 2021 तक 70 लाख युवाओं को कुशल बनाया जाएगा। देश नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर विशेष ध्यान दे रहा है और पिछले चार वर्षों में यह क्षेत्र काफी सुगम और वहन करने योग्य बन गया है। उजाला योजना के तहत करीब 31 करोड़ एलईडी बल्ब बांटे गए। योजना की वजह से जहां एक तरफ एलईडी बल्बों की कीमतें कम हुईं, वहीं बिजली के बिलों और कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आई।

भारत की पहल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखी जा रही है। मुझे गर्व है कि भारत पेरिस में 2015 में हुई सीओपी-21 वार्ता में आगे रहा है। अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत के मौके पर मार्च, 2018 में दुनिया के कई देशों के नेता नई दिल्ली में इकट्ठा हुए। यह गठबंधन सौर ऊर्जा की क्षमताओं का बेहतर इस्तेमाल करने की एक पहल है। ऐसे समय में, जब दुनिया में जलवायु परिवर्तन की बात हो रही है, भारत से जलवायु न्याय का आह्वान किया गया है। यह समाज के उन गरीब और हाशिये पर खड़े लोगों के अधिकारों और हितों से जुड़ा है, जो जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।

हमारी मौजूदा गतिविधियों का प्रभाव आने वाले समय की मानव सभ्यता पर भी पड़ेगा। सतत भविष्य के लिए वैश्विक जिम्मेदारी लेने की शुरुआत हमें ही करनी है। इस दिशा में जो व्यक्ति और संगठन लगातार मेहनत कर रहे हैं, मैं उन्हें बधाई देना चाहूंगा। वे हमारे समाज में चिर-स्मरणीय बदलाव के अग्रदूत बन चुके हैं। उनके प्रयत्नों के लिए मैं सरकार की ओर से हर तरह की मदद का आश्वासन देता हूं। हम सब मिलकर स्वच्छ पर्यावरण बनाएंगे, जो मानव सशक्तीकरण की आधारशिला होगा।


https://www.livehindustan.com/sports/fifa-world-cup-2018-experts-column/story-editorial-hindustan-column-for-3rd-october-by-pm-narendra-modi-2204466.html


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