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न्यूज क्लिपिंग्स् | हर किसी के हिस्से है मुट्ठी भर आसमान-पुष्यमित्र

हर किसी के हिस्से है मुट्ठी भर आसमान-पुष्यमित्र

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published Published on Nov 5, 2013   modified Modified on Nov 5, 2013

दुमका की वंदना के पास जन्म से ही पूर्ण विकसित हाथ नहीं हैं, मगर उसके दोनों पैर न सिर्फ दुनिया में रंग बिखेर रहे हैं बल्कि वह इन्हें पैरों से कंप्यूटर ऑपरेटर की नौकरी कर अपना जीवन भी चला रही है. जमशेदपुर की रंजू नेत्रहीन है, लिखित परीक्षा पास करने के बावजूद झारखंड पब्लिक सर्विस कमीशन ने उसे अधिकारिक स्तर की नौकरी के काबिल नहीं समझा था. मगर आरटीआइ के जरिये उसने अपने लिए न्याय हासिल किया और आज वे जमशेदपुर में बिक्री कर पदाधिकारी की जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं. इन दोनों के अलावा भी कई लोग हैं जो शारीरिक मानसिक कमियों के बावजूद खास तरीके से अपनी दुनिया में उजाला फैला रहे हैं. वे साबित कर रहे हैं कि इस दुनिया में हर किसी के हिस्से में एक मुट्ठी आसमान है. उस आसमान को छूने का कमाल सिर्फ आत्मबल से किया जा सकता है.

वंदना की कहानी
किसी फूल सी हमेशा खिली रहने वाली दुमका की वंदना के पास जन्म से ही पूर्ण विकसित हाथ नहीं हैं. होश में आने के बाद हो सकता है अपना यह अधूरापन उन्हें सालता भी हो. मगर वंदना ने तय किया कि वे अपने मन में किसी तरह के निराशा के बोध को छाने नहीं देंगी. उन्होंने अपने पैरों से दोनों काम लेना शुरू कर दिया. चलना-फिरना भी और लिखना-पढ़ना भी. यह सिर्फ मजबूरी का विकल्प नहीं था, उन्होंने इन पैरों से ऐसे तमाम काम किये, जो हाथों से किये जा सकते हैं. रंगों और तसवीरों की दुनिया में रमने वाली वंदना ने इन पैरों से तसवीरें भी बनायीं और उनके पांव कंप्यूटर के की-बोर्ड पर भी चलते रहे.

पढ़ाई का जुनून
पढ़ने-लिखने के प्रति वंदना का लगाव बचपन से ही बना रहा. वह अपनी कक्षा में अगली पंक्ति के विद्यार्थियों में गिनी जाती रही. बाद में इसके कारण उनके जीवन में बड़ी खुशियां भी आयीं. इग्नू से स्नातक की पढ़ाई करते हुए वंदना ने नि:शक्तजनों की श्रेणी में देश में पहला स्थान हासिल किया. उनकी इस उपलब्धि के कारण उन्हें अप्रैल, 2013 में देश के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों से प्रो. ग्रोवर अवार्ड से सम्मानित किया गया.

आइएएस बनने का सपना
वंदना बताती हैं कि उनका सपना आइएएस बनने का है, मगर वह जिस पारिवारिक स्थितियों के साथ जी रही हैं उसमें यह सपना पूरा होने की उम्मीद कम ही लगती है. वे कहती हैं कि घर में इतनी आमदनी नहीं होती कि वे यूपीएससी की तैयारी के लिए कोचिंग कर सके. फिलहाल वह इग्नू से बीएड की पढ़ाई पूरी कर रही हैं.

कंप्यूटर ऑपरेटर की अस्थायी नौकरी
इतनी बेहतरीन शैक्षणिक उपलब्धि के बावजूद वंदना आज इग्नू के दुमका स्टडी सेंटर में कंप्यूटर ऑपरेटर की अस्थायी नौकरी कर रही हैं. उनकी तमन्ना सिर्फ एक सरकारी नौकरी हासिल करने की है. वे चाहती हैं कि झारखंड सरकार उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें कोई सरकारी नौकरी दे दे. मगर दुमका के समाजसेवी सच्चिदानंद सोरेन कहते हैं कि जैसी उनकी उपलब्धि है, और प्रतिभा है, सरकार को चाहिये कि वे उन्हें वैसी मदद उपलब्ध कराये जिससे वह आइएएस बनने का अपना सपना पूरा कर सके.

रंजू का संघर्ष
मूल रूप से डालटेनगंज की रहने वाली रंजू कुमारी आज जमशेदपुर के सेल्स टैक्स डिपार्टमेंट में सीटीयू के पद पर काम कर रही हैं. मगर उन्हें यह पद बड़े संघर्षो के बाद मिला है. उन्हें साबित करना पड़ा है कि अगर व्यक्ति नेत्रहीन हो तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह अधिकारी का पद संभाल नहीं सकता है. उन्होंने अपने संघर्ष के जरिये झारखंड लोक सेवा आयोग की आंखें खोली है.

आरटीआइ को बनाया हथियार
रंजू ने जेपीएससी की द्वितीय परीक्षा में भागीदारी की थी. मगर लिखित परीक्षा पास करने के बावजूद उन्हें साक्षात्कार के लिए बुलावा नहीं भेजा गया. ऐसे में उन्होंने आरटीआइ के जरिये जेपीएससी सूचना मांगी. जब वहां से सूचना नहीं मिली तो वे अपील करते हुए आयोग में गयीं. आयोग में जेपीएससी की ओर से कहा गया कि चयन प्रक्रिया की गोपनीयता के चलते उन्हें जानकारी नहीं दी गयी है. मगर तत्कालीन सूचना आयुक्त बैजनाथ मिश्र ने कहा कि चयन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और चयनित अभ्यर्थी प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं, ऐसे में गोपनीयता भंग होने का सवाल नहीं उठना चाहिये.

जेपीएससी का बुलावा
सूचना आयोग के कड़े रुख के बाद जेपीएससी की ओर से रंजू को साक्षात्कार के लिए बुलावा भेजा गया और उन्होंने साक्षात्कार में सफलता प्राप्त कर वित्त सेवा में योगदान दिया. आज वे अपना दायित्व बखूबी निभा रही हैं.

रंजू की सफलता खास
रंजू की इस सफलता ने जहां झारखंड में निशक्तों के अधिकारों का संरक्षण और स्थापना की है, वहीं इसका खास महत्व इस लिहाज से है कि जब जेपीएससी की इस परीक्षा के परिणाम को हाइकोर्ट की ओर से निरस्त कर दिया था तब भी अदालत ने कहा था कि इस आदेश को रंजू कुमारी के मामले में लागू न किया जाये. उनका चयन पूरी तरह वैध है.

आरटीआइ सिटीजन अवार्ड
रंजू कुमारी के इस संघर्ष को सलाम करते हुए झारखंड आरटीआइ फोरम ने 10 अक्तूबर 2009 को उन्हें आरटीआइ सिटीजन अवार्ड से सम्मानित किया. इस समारोह में उन्हें दीप प्रज्‍जवलित करने का सम्मानजनक अवसर भी उपलब्ध कराया गया.


http://www.prabhatkhabar.com/news/59723-story.html


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