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न्यूज क्लिपिंग्स् | ...कुछ ज्यादा ही पीछे छोड़ दिया जंगल को हमने-- मुकेश केजरीवाल

...कुछ ज्यादा ही पीछे छोड़ दिया जंगल को हमने-- मुकेश केजरीवाल

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published Published on Jul 14, 2015   modified Modified on Jul 14, 2015
मुकेश केजरीवाल, नई दिल्ली। जंगलों को काट कर शुरू किए "तरक्की" के सफर में हम इतना आगे बढ़ गए हैं कि अब इनकी कामचलाऊ मौजूदगी कायम करने में भी सांसें फूल रही हैं। अपने ही लक्ष्य के मुताबिक हमें अब तक देशभर में कम से कम 33 फीसद क्षेत्र को हरियाली से भर देना था, लेकिन हम सिर्फ 24 फीसद वन क्षेत्र के साथ इस मुकाम से बेहद दूर खड़े हैं।

सबसे बुरी हालत में हमारे शहर हैं। आबादी घनी होने की वजह से यहां इनकी जरूरत ज्यादा है, मगर यहां सिर्फ 16 फीसद जगह ही हम अपने जीवन रक्षकों को दे पाए हैं। वन और पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक आधुनिक सेटेलाइट तकनीक का उपयोग कर रिमोट सेंसिंग के जरिये जुटाए गए नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि देश की 7.89 करोड़ हेक्टेयर जमीन वन आच्छादित है।

इस तरह यह देश के कुल भूभाग का 24 फीसद होता है। हम चाहें तो इस बात पर संतोष कर सकते हैं कि वर्ष 2013 के सर्वेक्षण पर आधारित यह तस्वीर इससे दो साल पहले के सर्वे से बेहतर हालत पेश करती है। इस दौरान देश में 5.8 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र बढ़ गया।

लेकिन, दूसरी तरफ हमारे लक्ष्य हैं। पिछले दशक में राष्ट्रीय वन आयोग का गठन करते हुए तय किया गया था कि वर्ष 2007 तक देश के 25 फीसद और 2013 तक 33 फीसद हिस्से में पौधरोपण कर लिया जाएगा। राष्ट्रीय वन नीति में भी माना गया है कि हिमालयी और तटीय इलाके में 60 फीसद और मैदानी इलाके में 20 फीसद भूभाग में वन होना चाहिए। वनभूमि के 1.08 हेक्टेयर प्रति व्यक्ति के अंतरराष्ट्रीय औसत से भी भारत बहुत पीछे है।

नई नीति तैयार कर रही सरकार

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर इस बारे में जल्द ही राष्ट्रीय स्तर पर बड़े प्रयास शुरू करने की बात कहते हैं। वह कहते हैं, "तीन साल तक पौधों को भी उसी स्नेह और देखभाल की जरूरत होती है, जैसी कि इस उम्र के छोटे बच्चे को। इसलिए हम नई नीति तैयार कर रहे हैं जिसमें सिर्फ पेड़ लगाना काफी नहीं होगा, बल्कि तीन साल तक उन्हें सुरक्षित रखना भी जरूरी होगा।" महाराष्ट्र में हालात बेहतर करने के लिए यही फार्मूला अपनाया गया है।

गंगा के मैदान में स्थिति बेहद खराब

देश के अंदर भी वन क्षेत्र को लेकर बहुत विषमता है। मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है, लेकिन गंगा के मैदान में जहां सबसे घनी आबादी है, वहां वन बहुत कम सिर्फ पांच फीसद क्षेत्र में हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि मानव आबादी के निकटतम हों तो पेड़-पौधों का अधिकतम लाभ होता है। इसलिए तेजी से होते शहरीकरण के साथ यह बेहद जरूरी हो गया है कि इन शहरों में उसी अनुपात में पेड़-पौधों की तादाद बढ़ाई जाए।

औषधीय महत्व के पौधे लगाएं

आयुर्वेद विशेषज्ञ आचार्य बालकृष्ण कहते हैं कि भारत जैसे देश में जहां वन और पौधों की महिमा से सब अच्छी तरह परिचित हैं, वहां स्थिति को बेहतर करना बहुत मुश्किल नहीं। अगर हम औषधीय महत्व के पौधों को योजनाबद्ध तरीके से लगाएं तो इससे लोगों को अच्छे मुनाफे वाला रोजगार मिल सकेगा, स्वास्थ्यवर्धक औषधियां तैयार हो सकेंगी, साथ ही हरित क्षेत्र में भी वृद्धि होगी।


http://naidunia.jagran.com/national-too-much-forest-we-have-left-behind-422965


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