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न्यूज क्लिपिंग्स् | नीति आयोग का स्वास्थ्य सूचकांक: नहीं काम आ रहा 'डबल इंजन’, यूपी-बिहार सबसे नीचे

नीति आयोग का स्वास्थ्य सूचकांक: नहीं काम आ रहा 'डबल इंजन’, यूपी-बिहार सबसे नीचे

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published Published on Dec 28, 2021   modified Modified on Dec 29, 2021

-न्यूजक्लिक,

देश ललकारने वाले अंधे नारों से मिलकर नहीं बनता। ना ही कुछ अमीर लोगों के पैसे से बनता है। देश इंसानों से मिलकर बनता है। इसलिए किसी देश की तरक्की का सबसे बड़ा पैमाना वही है जो इंसानों की तरक्की के होते हैं। इसी में से एक पैमाने का नाम है देश का स्वास्थ्य क्षेत्र। इस स्वास्थ्य क्षेत्र को लेकर नीति आयोग की स्वास्थ्य सूचकांक की चौथी रिपोर्ट आई है। यह रिपोर्ट 2018-19 के साल में स्वास्थ्य क्षेत्र के हालत को आधार बनाकर साल 2019 - 20 के स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए प्रस्तुत की गई है। यानी नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक में कोरोना महामारी के दौर को शामिल नहीं किया गया है। सूचकांक कोरोना महामारी के दौर के एक साल पहले का है।

नीति आयोग द्वारा जारी किए गए स्वास्थ्य सूचकांक में पूरे देश को तीन कैटेगरी में बांटा गया है। बड़े राज्य, छोटे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश। बड़े राज्य में 19 राज्य शामिल हैं। छोटे राज्य में आठ राज्य शामिल है। केंद्र शासित प्रदेश में 7 राज्य शामिल हैं।

नीति आयोग का यह स्वास्थ्य सूचकांक कई आधारों पर बनाया गया है। मुख्यतया इसमें तीन कैटेगरी शामिल है। पहली कैटेगरी हेल्थ आउटकम से जुड़ी है यानी आबादी में स्वास्थ्य की दशा किस तरह की है? इसमें जन्म के समय मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर, मातृत्व मृत्यु दर, लिंगानुपात जैसे पैमानों पर आबादी का स्वास्थ्य क्या है? इस पर फोकस किया गया है।

दूसरी कैटेगरी स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रशासन से जुड़ी है। जिसमें इसे शामिल किया गया है कि स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े प्रशासनिक पद कितनी है? उनका ढांचा क्या है? उस पर कोई कार्यरत है या नहीं?

तीसरी कैटेगरी में निर्धारित डॉक्टरों की संख्या और मौजूद डॉक्टरों की संख्या, निर्धारित हॉस्पिटलों की संख्या और मौजूद हॉस्पिटलों की संख्या, निर्धारित हेल्थ केयर प्रोवाइडर की संख्या और मौजूद हेल्थ केयर प्रोवाइडर की संख्या से जुड़ी जानकारियों को इकट्ठा कर स्वास्थ्य सूचकांक बनाने का काम किया गया है। इस तरह से स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ी ढेर सारी जरूरी बातों को आधार बनाकर नीति आयोग ने इस स्वास्थ्य सूचकांक की गणना की है।

मोटे तौर पर कहा जाए तो जो राज्य स्वास्थ्य सूचकांक में पहले नंबर पर होगा वह ओवरऑल स्वास्थ्य के मामले में भारत का सबसे बढ़िया राज्य होगा। जो इस सूचकांक में सबसे निचले पायदान पर होगा ओवरऑल स्वास्थ्य के मामले में भारत का सबसे खराब राज्य होगा।

भारत के सबसे बड़े 19 राज्यों में केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना स्वास्थ्य सूचकांक की सूची में सबसे आगे खड़े हैं। यानी इन तीन राज्यों की स्वास्थ्य क्षेत्र की ओवरऑल परफारमेंस भारत के दूसरे राज्यों के मुकाबले बेहतर है। सबसे निचले पायदान पर योगी आदित्यनाथ की सांप्रदायिकता में झुलसा उत्तर प्रदेश खड़ा है। स्वास्थ्य क्षेत्र में सबसे अधिक बदहाली उत्तर प्रदेश में है।

यह राज्य चुनाव में जाने वाला है। मुख्यधारा की मीडिया में पैसे के दम पर इस राज्य की बुनियादी सुविधाओं से जुड़े हर पहलू पर डंका बजवाया जाता है। लेकिन बुनियादी सुविधाओं की छानबीन करने पर जो सच्चाई बाहर आती है उसमें यह राज्य सबसे फिसड्डी नजर आता है।साल 2017 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि केरल कि अस्पतालों को उत्तर प्रदेश से अस्पताल चलाना सीखना चाहिए। नीति आयोग का स्वास्थ्य सूचकांक बता रहा है कि केरल के अस्पतालों को देखकर उत्तर प्रदेश को अपने अस्पतालों को ठीक करने के बारे में सोचना चाहिए।

अगर सूचकांक के स्कोर के लिहाज से देखें तो उत्तर प्रदेश को 100 में से महज 30 का स्कोर मिला है। इतने कम स्कोर के साथ उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य सूचकांक में सबसे निचले पायदान पर हैं। 30 के स्कोर के बाद 31 का स्कोर बिहार को मिला है। बिहार की स्थिति उत्तर प्रदेश से तिनके के बराबर बेहतर है। लेकिन देश भर में सबसे खराब स्वास्थ्य क्षेत्र के मामले में दूसरे नंबर पर है।

सबसे ज्यादा स्कोर केरल को मिला है। केरल का स्कोर 82 है। यानी उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे हिंदी पट्टी के ओवरऑल स्वास्थ्य क्षेत्र के परफॉर्मेंस जब तकरीबन तीन गुना और अधिक बेहतर होगा तब जाकर के वह केरल के बराबर पहुंचेगा।

बिहार और उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य क्षेत्र का ओवरऑल परफारमेंस का बुरा हाल बिहार और उत्तर प्रदेश के राजकाज की बनी बनाई महिमा को बड़े बुरे तरीके से तोड़ता है। यह दोनों राज्य राजनीति के मामले में भारत के सबसे धुरंधर राज्य में मशहूर है लेकिन यहां की शासन व्यवस्था कितनी अधिक लचर है इसका नजारा स्वास्थ्य सूचकांक से दिखलाई पड़ता है।

उत्तर प्रदेश के इतने कम स्कोर के बाद भी नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत उत्तर प्रदेश को बधाई दे रहे हैं। उनके बधाई देने का कारण केवल यह है कि साल 2018-19 के मुकाबले साल 2019- 20 नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक में उत्तर प्रदेश में 5 अंक की बढ़ोतरी की है। इससे ज्यादा बढ़ोतरी किसी दूसरे राज्य की नहीं है। इसलिए अमिताभ कांत उत्तर प्रदेश को बधाई दे रहे हैं।

अब इसे क्या कहा जाए? यह विशुद्ध तौर पर चुनावी राजनीति की तिकड़म बाजी है। नहीं तो जनता को दिमाग में रखकर विश्लेषण करने वाले अमिताभ कांत से पूछ सकते हैं कि उत्तर प्रदेश जैसा बड़ा राज्य जिसकी आबादी तकरीबन 20 करोड़ है। जिसकी प्रति व्यक्ति आय भारत के प्रति व्यक्ति आय से आधी है।( भारत की ₹86000 प्रति व्यक्ति आय और उत्तर प्रदेश की तकरीबन ₹41000 प्रति व्यक्ति आय) वैसे राज्य का स्कोर अगर 5 अंकों की बढ़ोतरी के बाद भी भारत के दूसरे राज्यों से सबसे कम है। महज 30 है। तो इसमें बधाई की क्या बात? क्या हम यह उम्मीद कर रहे थे की उत्तर प्रदेश को 30 से भी कम अंक आने चाहिए। इसलिए हम उसे बधाई दे रहे हैं।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


अजय कुमार, https://hindi.newsclick.in/NITI-Aayog-health-index-Double-engine-govt-not-working-UP-Bihar-at-the-bottom


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