Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | ग्रामीण भारत में कोरोना : फसल बेचने में असमर्थ बंगाल के किसानों पर बढ़ रहा है क़र्ज़ का बोझ

ग्रामीण भारत में कोरोना : फसल बेचने में असमर्थ बंगाल के किसानों पर बढ़ रहा है क़र्ज़ का बोझ

Share this article Share this article
published Published on Apr 13, 2020   modified Modified on Apr 13, 2020

-न्यूजक्लिक, 

गोपीनाथपुर, कृष्णपुर और सर्पलेहना गाँव पश्चिम बंगाल राज्य के तीन अलग-अलग कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों में स्थित हैं। किस मात्रा में सिंचाई की उपलब्धता है, उसी अनुपात में जमीन में खेती-बाड़ी की जा सकती है जो कि इन क्षेत्रों में अलग-अलग है। गोपीनाथपुर बांकुरा क्षेत्र के कोटुलपुर ब्लॉक में पड़ता है, जो कि कृषि क्षेत्र के लिहाज से पश्चिम बंगाल के सबसे विकसित क्षेत्रों में से एक है। दूसरी और नादिया जिले का कृष्णापुर गाँव एक ऐसे क्षेत्र में पड़ता है, जिसने कृषि में भूजल सिंचाई के व्यापक विस्तार की वजह से हाल के दिनों में जोरदार वृद्धि देखी है। यह वह इलाका है जहाँ से लोगों का भारी संख्या में अंतर-राज्यीय और अंतर्राष्ट्रीय पलायन भी होता है। वहीँ दूसरी तरफ इस इलाके में ईंट भट्टे में काम के लिए पश्चिम बंगाल के पश्चिमी जिलों और झारखंड से प्रवासियों की आमद भी होती है। बीरभूम जिले में सर्पलेहना जो कि पश्चिम बंगाल के लाल मिट्टी वाले क्षेत्र में पड़ता है, में सिंचाई की उपलब्धता ना के बराबर है और इस वजह से कृषि उपज काफी कम है। आदिवासी समुदाय इस क्षेत्र में आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

इन गाँवों में खेती के तीन सीजन हैं: अमन (मुख्य मानसून का मौसम जिसमें प्रमुख फसल घान की होती है, हालाँकि कुछ क्षेत्र चावल या जूट की मानसून-पूर्व वाली खेती भी प्रचलन में है), रबी के सीजन में (सर्दियों के मौसम में आलू या सरसों उगाई जाती है), और बोरो (गर्मियों के मौसम में चावल या तिल की एक सिंचित फसल उगाई जाती है)।

गोपीनाथपुर

इस गाँव में किसान मुख्यतया धान, आलू और तिल की खेती करते हैं। आलू की फसल फरवरी के अंत और मार्च के मध्य के बीच खेतों से निकाल ली जाती है, और बेचने के लिए इस फसल को मार्च और अप्रैल में बाजार में ले जाया जाता है। राज्य सरकार के निर्देशानुसार आलू की फसल को खेतों से निकालने के काम में कोई बाधा नहीं आई है और 28 मार्च तक आलू की बिक्री जारी रही। हालाँकि 28 मार्च के बाद से शहर के लिए आलू को ले जाना संभव नहीं हो सका है, और गाँव के भीतर ही बेहद सीमित मात्रा में इसकी बिक्री हो पा रही है।

लेकिन खेतों से आलू निकालने से पहले आंधी के साथ-साथ बारिश के प्रकोप के चलते इस फसल को काफी नुकसान हुआ था, विशेष रूप से जो इलाके निचले पड़ते हैं। जिसके चलते कटाई में देरी होने के साथ-साथ उत्पदान भी औसत की तुलना में कम हुआ है। इस प्रकार कुल मिलाकर किसानों को इस सीजन की फसल पर काफी नुकसान हुआ है – जिसमें से कई लोगों को तो मौसम की मार के चलते और इस फसल कटाई के समय मज़दूरों की कमी के कारण 50% और 70% तक का नुकसान झेलना पड़ा है।

हालांकि इस साल आलू की पैदावार पहले से कम होने के परिणामस्वरूप इसका बाजार भाव ऊँचा बना हुआ है, लेकिन अक्सर किसानों के पास अपने माल को रोक कर रख पाना संभव नहीं रह जाता क्योंकि जिन व्यापारियों से उन्हें उधार खरीद की सुविधा मिलती है, उन्हें औने-पौने दामों में अपना माल निकालने के लिए वे मजबूर होते हैं। इसके साथ ही कोविड-19 महामारी और सरकारी प्रतिबंधों के लागू हो जाने के बाद से तो कई किसानों को अपने उत्पादों पर मोलभाव करने का वक्त ही नहीं रहा, और वे किसी तरह अपनी फसल बेचने के लिए दौड़ पड़े। मार्च के महीने में कोतुलपुर में आलू की सबसे प्रचलित वैरायटी 'ज्योति' का लागत मूल्य 11 रुपये प्रति किलोग्राम चल रहा था। आमतौर पर किसान आलू की फसल का एक हिस्सा सीजन में बेचकर दूसरे हिस्से को बाद में बेहतर दामों पर बेचने के लिए कोल्ड स्टोरेज में जमा करवा देते हैं। लेकिन इस बार कोल्ड स्टोरेज में मज़दूरों की कमी की वजह से आलू की समय पर छंटाई और भंडारण सम्बन्धी संचालन समस्याएं बनी हुई हैं।

नियमित तौर पर कुछ अन्य सब्जियों की बिक्री होती थी वो भी काफी सीमित हो चुकी है: सबसे नजदीक की सब्जी मंडी पाटपुर इस गांव से पांच किमी की दूरी पर है। लेकिन यातायात का कोई साधन न होने के कारण किसान अपनी तैयार उपज बेच नहीं पा रहे हैं और औने-पौने दामों में उन्हें इसे स्थानीय बाजार में बेचना पड़ रहा है, लेकिन इसके ग्राहक ही काफी सीमित हैं।

जब खेतीबाड़ी का सीजन अपने चरम पर होता है तो बाँकुड़ा के पश्चिम में पुरुलिया जिले से खेत मज़दूर इस गाँव में काम के लिए आया करते थे, लेकिन आवाजाही पर लगे प्रतिबंधों के कारण वे इस बार आने में असमर्थ हैं। यहाँ तक कि गाँव में रह रहे खेत मज़दूर तक कोविड -19 संक्रमण के डर के मारे काम पर नहीं आ रहे हैं। हालाँकि गाँव में मज़दूरों की इस कमी के बावजूद भी खेत मजूरी की दर में कोई वृद्धि देखने को नहीं मिली है। कुछ स्थानीय मज़दूर इन किसानों के खेतों में बंटाई के दर पर जो अनुबंध हो रखा है, उस पर काम करना जारी रखे हुए हैं। जबकि जो छोटे किसान परिवार हैं वे अपने परिवार के साथ मिलकर अपने खेतों में काम पर लगे हैं। इनमें से कई सदस्य वे भी हैं जो काम के सिलसिले में गाँव से बाहर नहीं जा पा रहे।

खेती में काम आने वाली वस्तुओं से सम्बन्धित दुकानें बंद पड़ी हैं, और आवाजाही की अनुपलब्धता के चलते फ़िलहाल कोई नए माल की सप्लाई भी नहीं आ रही है। यह एक चिंता का विषय है क्योंकि मार्च के अंतिम हफ्ते से लेकर अप्रैल के पहले हफ्ते के बीच में ही बोरो धान की रोपाई का समय होता है। सवाल इसके बीजों की आपूर्ति की कमी का नहीं है, क्योंकि यह काम पिछले महीने ही हो चुका था। मुख्य चिंता का विषय तो उर्वरकों और कीटनाशक दवाओं की कमी को लेकर है, विशेषकर छोटे किसानों के लिए। इन छोटे कृषक परिवारों के पास इनका स्टॉक रख पाना संभव नहीं होता, और अक्सर अपनी फसल के दाम पर तय किये गए सौदे के आधार पर उधार में उन्हें ये बाजार से उपलब्ध होता आया है।

कई किसानों ने मज़दूरों और खाद एवम अन्य कृषि सामग्री के संकट को देखते हुये बोरो धान की खेती को सीमित खेतों में उगाने का निश्चय किया है। लेकिन सबसे बड़ी आफत इस सीजन में तो उन पट्टे पर काम कर रहे किसानों पर आने वाली है जो पूर्वनिर्धारित फिक्स्ड-रेंट (अधिया या बटाई जैसी शर्तों) पर खेती-किसानी  करते हैं। यदि ये लोग बोरो चावल की खेती को कम करते हैं या खाद और कीटनाशकों की कमी के कारण पैदावार में कमी आती है तो इस सबका नुकसान भी उन्हें ही झेलना होगा।

इस गांव में रहने वाले कई पुरुष सदस्य दूसरे जिलों और राज्यों में दिहाड़ी मज़दूर के रूप में काम करते हैं। ये मज़दूर लोग और कई अन्य प्रवासी भी मार्च के मध्य में गाँव लौट आए थे। इन लोगों खासकर निर्माण श्रमिकों के बीच इस बारे में चिंता बनी हुई है कि क्या लॉकडाउन की समाप्ति के बाद उनके ठेकेदार उन्हें फिर से काम पर रखेंगे भी या नहीं। इतना तो तय है कि ये ठेकेदार निर्माण कार्य के रुक जाने वाले दिनों का भुगतान तो मज़दूरों को नहीं ही करने जा रहे हैं। कृषक परिवारों में जो लोग छोटे गैर-कृषि व्यवसाय से सम्बद्ध हैं, विशेष रूप से कन्फेक्शनरी, कपडे की दुकानों और खाने-पीने के स्टाल लगाने वाले, उनका तो सारा काम-धंधा ही लॉकडाउन की वजह से पूरी तरह से चौपट हो रखा है। आज के दिन गाँव में मनरेगा से सम्बन्धित काम भी बंद पड़े हैं।

कृष्णापुर

नदिया जिले में कृष्णानगर बस्ती से 25 किलोमीटर दूर में कृष्णापुर गाँव बसा है। गाँव में कृषक परिवार काफी संख्या में हैं, और इन परिवारों के कई सदस्य काम की तलाश में देश से बाहर रहते हैं, खासकर मलेशिया में नारियल तेल के बागानों में काम करते हैं। जेब में पैसे न होने की वजह से इनमें से अधिकांश प्रवासी भारत लौटने में असमर्थ थे। हालाँकि देश के भीतर कार्यरत कई प्रवासी मार्च के मध्य तक कर्नाटक और गुजरात के साथ कई अन्य राज्यों से लौट पाने में कामयाब रहे। मार्च के मध्य से ही ईंट भट्टों का काम बंद हो चुका था, और इसके चलते प्रवासी ईंट भट्ठा मज़दूरों के जीवन पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका बन गई है।

लॉकडाउन की वजह से खेती-बाड़ी के काम से जुड़े लोगों के सामने सबसे बड़ी चिंता की वजह मज़दूरों की कमी की बनी हुई है। अप्रैल का महीना जूट की बुवाई का होता है। जूट की फसल की बुवाई के लिए खेतों को तैयार करने के लिए भारी मात्रा में मज़दूरों की जरूरत पड़ती है। आज की तारीख में भाड़े पर मज़दूरी करने वाले लोग नहीं रहे, इसलिये थोड़ा बहुत जो काम हो रहा है वो परिवार के सामूहिक श्रम की बदौलत हो पा रहा है और बुवाई जारी है। खेती का सामान रखने वाली दुकानें गाँव में बंद पड़ी हैं और जैव-रासायनिक की आपूर्ति ब्लैक मार्केट से हो रही है, जो दो से तीन रुपये प्रति किलोग्राम के बढ़े दर पर उपलब्ध है। बारिश के मौसम से पहले-पहले जूट की कटाई हो जानी चाहिए ताकि इसे नहर में भिगोया जा सके और तर करने के लिए तैयार किया जा सके।

पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


राया दास, https://hindi.newsclick.in/West-Bengal-Farmers-Suffer-Debt-COVID-19-Coronavirus-Lockdown-India


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close