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न्यूज क्लिपिंग्स् | रेड जोन भोपाल में कोरोना पॉजिटिव निकली आशा की सुरक्षा को किया गया नजरअंदाज, अब बढ़ी दस लाख आशा कार्यकर्ताओं की चिंता

रेड जोन भोपाल में कोरोना पॉजिटिव निकली आशा की सुरक्षा को किया गया नजरअंदाज, अब बढ़ी दस लाख आशा कार्यकर्ताओं की चिंता

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published Published on Apr 28, 2020   modified Modified on Apr 28, 2020

-गांव कनेक्शन, 

उन्नीस अप्रैल को सुबह 11 बजे उसे एक फोन आया कि आपकी रिपोर्ट पॉजिटिव आयी है।

पॉजिटिव रिपोर्ट ... पर मुझे तो सर्दी, खांसी, जुखाम, बुखार कुछ भी तो नहीं है।

आपने 17 अप्रैल को जो कोविड-19 की जांच कराई थी उसमें आपकी रिपोर्ट पॉजिटिव आयी है। आप तैयार रहिये, गाड़ी आपको लेने घर आ रही है।

पर मुझे तो कुछ हुआ ही नहीं है ... नसरीन (बदला हुआ नाम) के इतना बोलते-बोलते उधर से फोन कट हो गया।

नसरीन मध्यप्रदेश के भोपाल शहर के एक गाँव की आशा कार्यकर्ता हैं। भोपाल कोरोना संक्रमण के चलते इस समय रेड जोन में है, बावजूद इसके नसरीन को सुरक्षा की सबसे बेसिक चीजें मास्क और दास्तानें तक नहीं मिलीं, सैनिटाइजर और पीपीई किट तो दूर की बात थी।

कोरोना संक्रमण की जंग में स्वास्थ्य विभाग की पहली मजबूत कड़ी उभरकर सामने आयी इन आशा कार्यकर्ताओं की सुरक्षा को सरकार क्यों अनदेखा कर रही हैं? इस सवाल का जबाव सरकार के ज़िम्मेदार ऑफिसर देने से कतरा रहे हैं।

कोरोना संक्रमण के दौरान आपके यहां आशा कार्यकर्ता को किस तरह के सुरक्षा के इंतजाम किये गये हैं? गाँव कनेक्शन संवाददाता के इस सवाल पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मध्यप्रदेश के डिप्टी डायरेक्टर डॉ शैलेश साकल्ले बोले, "मैं ये सब आपको क्यों बताऊं? मैं इसके लिए अधिकृत नहीं हूँ, इसके बारे में मैं आपको कुछ नहीं बता सकता।" इतना कहकर उन्होंने फोन काट दिया।

जिस आशा कार्यकर्ता के सुरक्षा के नाम पर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं, ये इस महामारी में स्वास्थ्य विभाग की वो मजबूत कड़ी हैं जो इस गर्मीं में पैदल चलकर भारत के हर गाँव के घर-घर की खबर स्वास्थ्य विभाग तक पहुंचा रही हैं। सरकार की नजर में इनकी सुरक्षा प्राथमिकता में भले ही न हो पर देश की ये 10 लाख पैदल फ़ौज लॉकडाउन में बिना किसी ख़ास सुरक्षा इंतजाम के घर-घर जाकर करोड़ों लोगों की देखरेख कर रही हैं।

कोरोना संक्रमण की चपेट में आने से नसरीन के आसपास की आशा घबरा गयी हैं। नसरीन खुद भी चिंतित हैं, "मुझे डर लग रहा है पता नहीं जब मैं ठीक होकर जाउंगी तब आसपास के लोग मुझसे बात करेंगे या नहीं।"

नसरीन की तरह देश की दस लाख आशा कार्यकर्ता जो इस समय दिन रात अपनी जान जोख़िम में डाल रही हैं, गाँव की हर खबर स्वास्थ्य विभाग तक पहुंचा रही हैं, इस काम का मेहनताना इनका महीने का मात्र 1,000 रुपए है। इन लाखों गुमनाम 'कोरोना वॉरियर्स' का काम सोशल मीडिया पर हैशटैग और सुर्खियाँ भले ही न बटोर पाए पर भारत के गांवों में ये करोड़ों लोगों को सुरक्षित रखने में इस समय स्वास्थ्य विभाग के लिए एक मजबूत कड़ी का काम कर रही हैं।

बिना किसी लक्षण के नसरीन ने 17 अप्रैल को कुछ आशाओं की कोविड-19 की जांच के साथ अपनी भी जांच करा ली। नसरीन को उस वक़्त दूर-दूर तक इस बात का अंदेशा भी नहीं था तीन दिन बाद उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आ जायेगी।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा हाल ही में यह कहा गया है कि 80 फीसदी ऐसे मामले हैं जिनमे कोरोना संक्रमण के लक्षण बहुत स्पष्ट दिखाई नहीं दिए हैं। आईसीएमआर के महामारी विज्ञान और संक्रमण रोगों के प्रमुख डॉ. आर. आर. गंगाखेडकर के मुताबिक अब तक किये गये कोविड-19 के परीक्षणों की संख्या देखें तो 31 फीसदी मामलों में ही कोरोना वायरस के लक्षण नजर आये हैं, बाकी के 69 फीसदी ऐसे मामले हैं जिनमें कोरोना संक्रमण के एक भी लक्षण नहीं मिले हैं। लक्षण न मिलने की वजह से बहुत कम लोग ही अस्पताल में कोविड-19 की जांच के लिए आएंगे।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


नीतू सिंह, https://www.gaonconnection.com/desh/asha-found-out-of-corona-positive-in-red-zone-bhopal-ppe-kit-was-not-available-now-one-million-asha-workers-have-increased-concern-47432


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