Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | बात बोलेगी: बिगड़ा हुआ है रंग जहान-ए-ख़राब का…

बात बोलेगी: बिगड़ा हुआ है रंग जहान-ए-ख़राब का…

Share this article Share this article
published Published on Jul 28, 2021   modified Modified on Jul 31, 2021

-जनपथ,

मौसम पर ये तोहमत लगती है कि एक-सा नहीं रहता। माशूकाएं अपने आशिक पर ये संदेह करती रहती हैं कि ‘मौसम की तरह तुम भी बदल तो न जाओगे’? मौसम अगर थिर हो जाए तो लोगों को फूटी आँख नहीं सुहाता। क्या हो अगर बारिश होती ही रहे, धूप निकली ही रहे और जाड़ा बना ही रहे? लोग ऊब जाते हैं। उकता जाते हैं। मौसम के थिर हो जाने या एक ही स्थिति में टिक जाने से कोफ्त होती है और उसके बदलने की कला या हुनर को तोहमतें नसीब होती हैं। मौसम बेचारा करे भी तो क्या? वह सबके लिए सब समय अच्छा नहीं हो सकता। चाह कर भी। इसलिए वह सबसे बेपरवाह होकर अपने बदलने के हुनर को पूरे मिजाज में जीता है। जिसको जो कहना है कहे। जिसको जो करना हो करे। वह बदलते रहता है।

यहां एक बात पर गौर करना चाहिए कि मौसम पर किसी ने कभी गिरगिट होने की तोहमत नहीं मढ़ी। गिरगिट भी बदलता है। अपना रंग बदलने का हुनर उसमें भी है लेकिन किसी को उसके बदले हुए रंग से कोफ्त नहीं होती बल्कि उसकी बदलने की प्रवृत्ति से अजीब तरह का एक भाव पैदा होता है जिसे लोग अच्छी निगाह से नहीं देखते। बदलता तो वक़्त भी है, लेकिन वक़्त को भी कभी किसी ने गिरगिट नहीं कहा। गिरगिट जैसे अहिंसक और लगभग निष्प्रभ जीव को इस तरह बदलने के लिए कलंकित करने का चलन पता नहीं कब, कैसे, कहाँ और किसने शुरू किया लेकिन जिसने भी कहा होगा उसने इस कहे हुए की इतनी दीर्घ आयु का अनुमान न लगाया होगा। गिरगिट के बदलने को परखने वाली आँखों ने शायद यह भी नहीं सोचा होगा कि यह देश की राजनीति का एक अनिवार्य मुहावरा बन जाएगा। आज तो ऐसे लोग भी गिरगिट का मुहावरा प्रयोग करते हैं जिन्होंने शायद अपनी सगी आँखों से गिरगिट देखा भी न होगा।

इसीलिए गिरगिट के हुनर का आरोपण देश के नेताओं पर किया जाता है। अब तो खैर मीडिया पर भी लगते-लगते आरोप ही थिर हो गया है। गिरगिट मतलब देश के राजनेता और उनकी राजनीति। बदल लेने या बदल जाने की इसी कैफियत से देश के राजनेताओं और राजनीति को गति मिलती है। मौके के हिसाब से खुद को बदल लेने की काबिलियत असल में हमेशा से राजनीति के अंदर निहित उसका आंतरिक बल रही है। जब राजनीति बदलती है, राजनेता बदलते हैं तो अपने साथ बदल देते हैं राजनीति के मुद्दे। पिछले सप्ताह बात जनसंख्या की थी, आज वह जनगणना पर आ गयी है।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


सत्यम श्रीवास्तव, https://junputh.com/column/baat-bolegi-changing-discourse-of-politics-and-our-times/
 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close