Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | भारत और भारतीयों की ज़िंदगी में क्या चल रहा, ये बिहार के चुनाव नहीं बताते

भारत और भारतीयों की ज़िंदगी में क्या चल रहा, ये बिहार के चुनाव नहीं बताते

Share this article Share this article
published Published on Nov 12, 2020   modified Modified on Nov 12, 2020

-द प्रिंट,

पिछली बार दिप्रिंट हिन्दी के अपने इस स्तंभ में मैंने लिखा था कि बिहार विधानसभा के चुनाव को लेकर मेरे मन में क्यों उत्साह की कोई लहर नहीं उठ रही. मेरे लिखे पर पहली प्रतिक्रिया दिप्रिंट की ओपिनियन एडिटर रमा लक्ष्मी की आई. उन्होंने मुझे चिट्ठी में लिखा: एक सेफेलॉजिस्ट के रूप में आपके लिए ये सब लिखना बहुत तकलीफदेह रहा होगा. ये बहुत कुछ वैसा ही है जैसे कोई अपने परिवार से जुदा हो जाये. लेकिन पिछले लेख में मैंने जो तर्क दिये थे उन पर बहुतों ने गौर न किया. मेरी जान-पहचान के बहुत से लोग बिहार के चुनाव को लेकर बड़े उत्साहित थे.

अपने पिछले लेख में मैंने दरअसल तीन मुख्य बातें कही थीं. एक तो ये कि बिहार उत्तर भारत की राजनीति की धुरी नहीं रहा. दूसरी बात ये कि चुनावों के एतबार से राज्य अब मुकाबले का वैसा अखाड़ा नहीं रहे जिनके सहारे देश के मन-मानस का पता लगाया जा सके. और, तीसरी बात ये लिखी थी कि चुनाव खुद भी देश की राजनीति के लिए अब वैसे अहम न रहे. चुनाव बीतने के साथ ये बात पुरानी हुई तो और अब वक्त पिछले लेख के तर्कों से गुजरते हुए अपने सोचे-लिखे की नोंक-पलक को दुरुस्त करने का है.

उत्तर भारत की राजनीति की धुरी नहीं रहा बिहार
उत्तर भारत के बाकी जगहों पर जो कुछ चल रहा है, उसकी कोई झलक बिहार के चुनाव से मिलती है क्या? न, बिहार के चुनाव से उत्तर भारत के बाकी जगहों में हो रही चीजों का कुछ खास अता-पता नहीं मिलता. इस सिलसिले की एक अहम बात तो यही कि शेष हिन्दी पट्टी की तुलना में बिहार में दलीय प्रणाली कहीं ज्यादा बिखरी-उलझी है. हिन्दी पट्टी के बाकी के राज्यों में चुनावी मुकाबला मुख्य रूप से दो दलों या तीन दलों के बीच होता है लेकिन बिहार में इस बार के चुनावी मुकाबले का आलम ये है कि सबसे ज्यादा सीट जीतने वाली पार्टी आरजेडी को बस 23.11 प्रतिशत वोट मिले हैं.

दूसरी बात ये कि बिहार में राजनीतिक होड़ का चक्का ग्रामीण बनाम शहरी की धुरी पर नहीं घूम रहा. चुनाव के नतीजे राज्य के भीतर मौजूद राजनीतिक क्षेत्रों की अहमियत रेखांकित कर रहे हैं: भोजपुर और मगध महागठबंधन के पीछे चले तो सीमांचल और मिथिला ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का साथ दिया. लेकिन, इन राजनीतिक क्षेत्रों के चुनावी बर्ताव से ऐसी कोई रूपरेखा नहीं उभरती जिसके आधार पर हम हिन्दी पट्टी के किसी दूसरे राज्य के चुनावी बर्ताव के बारे में अनुमान लगा सकें.

इस सिलसिले की तीसरी और आखिरी बात ये कि ओबीसी के जिस समीकरण ने बिहार को मंडल-राजनीति की धुरी बनाया था, उसने अब एक अनूठा मोड़ ले लिया है. ओबीसी समूह की जातियों के दायरे में कुर्मी समुदाय की अनूठी स्थिति, दलित समुदाय के बीच गोलबंदी का अभाव और अत्यंत पिछड़ी जाति (ईबीसी) का उभार के कारण बिहार की राजनीति का जातीय समाजशास्त्र हिन्दी पट्टी के शेष राज्यों से बड़े अलग तर्ज का है.

लेकिन राजनीति के जातीय समाजशास्त्र के ऐसे अटपटेपन के बावजूद इनसे एक सामान्य निष्कर्ष निकाला जा सकता है. बिहार का चुनाव इस बात की गवाही देता है कि हिन्दुत्व की राजनीति की बरतरी की काट करने के एतबार से पुरानी राजनीतिक रणनीतियां कत्तई कारगर नहीं रहीं. बिहार का चुनाव उस नये मॉडल की तरफ भी इशारा करता है जिसके सहारे मंडल की राजनीति के इस उत्तरवर्ती समय में अगड़ी जातियों का प्रभुत्व बदस्तूर कायम है. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) ने बंगाल से लगते बिहार के मुसलमान बहुल इलाके में कामयाबी हासिल की जो बिहार के चुनाव में मौजूद मुस्लिम-विशेषी रुझान का संकेत है. मुसलमानों को धर्म के नाम पर अपनी तरफ गोलबंद करने का एक बना-बनाया सेकुलरी ढर्रा चला आ रहा था, लेकिन अब ये ढर्रा ढ़ीला पड़ चुका है. मुसलमान इस तर्ज के सेकुलरी ढर्रे से एकदम ही उकता चुके हैं.

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


योगेंद्र यादव,https://hindi.theprint.in/politics/bihar-election/bihar-elections-do-now-show-what-is-happening-to-india-and-indians/183195/


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close