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न्यूज क्लिपिंग्स् | ‘घर बनवाने के लिए पैसे जुटाए थे लेकिन गांव का हाल देखकर नाव बनवा ली’

‘घर बनवाने के लिए पैसे जुटाए थे लेकिन गांव का हाल देखकर नाव बनवा ली’

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published Published on Oct 21, 2020   modified Modified on Oct 21, 2020

-द वायर,

सुपौल जिले के निर्मली विधानसभा क्षेत्र का पिपराही गांव सिकरहट्टा-मंझारी तटबंध पर दीघिया चौक से करीब ढाई किलोमीटर दूर है. यहां जाने के लिए कोसी नदी की एक धारा को नाव से पार करना पड़ता है.

सितंबर-अक्टूबर के महीने में पहले नदी की इस धारा में पानी कम होता था लेकिन तीन -चार वर्षों से यह नदी की मुख्य धारा बन गई है और इसमें अब पूरे 12 महीने इतना पानी रहता है कि बिना नाव के पार नहीं किया जा सकता है.

नदी के दोनों तटों पर दर्जनों छोटी नावें दिख रही हैं. महिलाएं घास के गट्ठर लिए चली आ रही हैं और फिर उसे नाव में रखकर तटबंध के पास अपने घरों तक पहुंच रही हैं. ये उनका रोज का काम है.

मवेशियों के चारे के लिए उन्हें हर रोज चार पांच घंटे कई किलोमीटर तक नदी के दियारे में चलना पड़ता है.

इस तटबंध के पूरब के आधा दर्जन गांवों के लोगों को मई से सितंबर महीने तक पांच बार बाढ़ का सामना करना पड़ा. पिपराही गांव पश्चिमी और पूर्वी तटबंध के बीच है.

कोसी नदी के ये दोनों तटबंध कोसी प्रोजेक्ट के तहत 1954 में बनने शुरू हुए और 1962 तक बन गए. करीब 14 वर्ष बाद पश्चिमी तटबंध से अंदर सिकरहट्टा-मंझारी तटबंध बना.

यह तटबंध सरकारी रिकार्ड में 18 किलोमीटर लंबा है और इसका नाम सिकरहट्टा-मंझारी लो तटबंध (एसएमएलई) है. इस तटबंध को बाद में पिच किया गया और ये कोसी महासेतु की सड़क से जुड़ती है. अब यह काफी खराब हालत में है.

दिघिया चौक से ही एक तरफ कोसी महासेतु के लिए बनाया गया गाइड तटबंध आकर जुड़ता है. पिपराही से पूर्वी तटबंध करीब आठ किलोमीटर दूर है. इस गांव के पास ढोली, कटैया, भूलिया, सियानी और झउरा हैं गांव है.

पिपराही से लेकर पूर्वी तटबंध तक कोसी की तीन और धाराएं प्रवाहित होती हैं. पिपराही और झउरा निर्मली प्रखंड में आते हैं तो कटैया, भूलिया और सियानी सरायगढ़ भपटियाही प्रखंड में आते हैं.

ये सभी गांव सुपौल जिले की पांच विधानसभाओं में से एक निर्मली विधानसभा क्षेत्र के हैं.

पूर्व सरपंच रामजी सिंह ने बताया, ‘इस वर्ष 13 मई को ही बाढ़ आई. इसके बाद से सितंबर महीने तक पांच बार बाढ़ आई. पूरब और पश्चिम की तरफ आए कोसी का पानी आया. गांव की 1,500 एकड़ रकबे की फसल तो डूबी ही गांव में भी कमर तक पानी आ गया.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हालत खराब देख बच्चों और महिलाओं को नाव से नदी पार करा कर रिश्तेदारों के यहां भेजा. बाद में हम सभी लोग भी नाव से माल मवेशी लेकर तटबंध की तरफ आ गए. पानी कम होने पर वापस लौटे. इस बुरे वक्त में यह बड़ी नाव हमारे परिवार के साथ-साथ गांव वालों के बहुत काम आई.

रामजी के भतीजे गुणानंद ने तीन लाख खर्च कर यह नाव आठ महीने पहले बनवाई थी. गुणानंद सेना में जवान हैं. छुट्टी में गांव आए गुणानंद ने नाव बनवाने की कहानी बताते हुए कहा कि पिछले साल बाढ़ आई तो वे ड्यूटी पर थे.

जब घर में पानी भर गया तो यहां की हालत के बारे में उन्हें बताया गया, तब घर के सभी लोगों को गांव से तत्काल बाहर निकालने की जरूरत थी.

वे बताते हैं, ‘हमने एक दुधौला गांव में बड़ी नाव वाले को फोन कर कहा कि हम आपको 20 हजार रुपये तक देंगे, आप गांव जाकर घर के लोगों और गांव वालों को बाहर निकालिए, लेकिन नाव वाला मौके पर नहीं पहुंच पाया. पूरे परिवार को काफी तकलीफ से गुजरना पड़ा. यह स्थिति मुझसे देखी नहीं गई. मैंने घर बनवाने के लिए पैसे जुटाए थे लेकिन मैंने घर बनवाने का फैसला बदल दिया. मैंने सिमराही में नाव बनवाने के लिए लोहा खरीदा और बनवाया.’

उन्होंने बताया, ‘नाव बनवाने में 26 क्विंटल लोहा लगा. नाव बनाने वाले ने 3,500 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से मजदूरी ली. इस नाव ने हमें भरोसा दिया कि बाढ़ के समय हम सरकार-प्रशासन के भरोसे नहीं रहेंगे.’

अपनी बात पूरी करते हुए गुणानंद कहते हैं, ‘हर गांव में सरकार को दो-तीन बड़ी नाव हमेशा के लिए देनी चाहिए जो उनके काम आए. गांव के लोग तीन लाख रुपये लगाकर नाव नहीं बनवा पायेंगे। ‘मैं नौकरी में था, तो किसी तरह इंतजाम कर पाया.

गुणानंद की यह नाव ‘फौजी की नाव’ नाम से लोकप्रिय हो रही है.

रामजी कहते हैं कि सरकार और प्रशासन कभी हमारी जरूरत पर नाव नहीं दे पाता है. बाढ़ के समय हमने सुपौल के सांसद को फोन कर कहा कि नाव की व्यवस्था करवाइए, तो वे बोले कि 50 नाव की व्यवस्था की गई है लेकिन कोई नाव हम लोगों को नहीं मिल पाए.

बूधन सिंह व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि अधिकारी बाढ़ देखने स्टीमर से आते हैं लेकिन गांव के लोगों को नाव नहीं मुहैया कर पाते.

कोसी नदी के पूर्वी और पश्चिमी तटबंध के अंदर रहने वाले लोगों के लिए अन्न-पानी की तरह नाव एक बेहद जरूरी चीज है. बिना नाव उनकी जिंदगी चल ही नहीं सकती.

गांव से बाहर आने-जाने के लिए, फसल और चारे की ढुलाई के लिए और वक्त-बेवक्त बीमार लोगों को अस्पताल पहुंचने के लिए भी नाव ही एकमात्र सहारा है, जो उन्हें सड़क या तटबंध तक पहुंचा देती है और वहां से किसी साधन का जुगाड़ कर अस्पताल पहुंच जाते हैं.

पिपराही गांव के पास स्थित गांव ढोली के लोगों ने भी इस वर्ष लोहे की दो बड़ी नाव बनवाई हैं. छोटी नावें तो अब काफी हो गई हैं. पिपराही में 30 से अधिक छोटी नावें हैं. इन नावों से लोग नदी पार करते हैं. मवेशियों के लिए चारे लाते हैं.

दिघिया से सिकरहट्टा तक तटबंध के दोनों तरफ रहने वाले गांवों के लोगों ने भी अपने लिए नाव रखी है. एक छोटी नाव लगभग 35 हजार रुपये में तैयार हो जाती है, जिसमें दो से तीन लोग बैठ सकते हैं.

इससे बड़ी नाव की लागत 70 हजार तक आती है. ये डोंगी नाव से बड़ी होती हैं और फसल ढुलाई के काम आती हैं. ये नावें जामुन, शीशम और साखू की लकड़ियों से बनती हैं.

बाढ़ के समय छोटी नावें सुरक्षित नहीं हैं. बाढ़ के वक्त लोहे की बड़ी नाव बहुत काम लायक होती है.

पिपराही गांव की फौजी की नाव में 150 लोग एक साथ आ-जा सकते हैं. इससे ट्रैक्टर और जेसीबी मशीन भी जा सकती है. करीब 70 से 80 मन अनाज की भी ढुलाई की जा सकती है.

डागमारा ग्राम पंचायत के सिकरहट्टा चूरियासी गांव के संजय जामुन की लकड़ी का नाव तैयार कर रहे हैं. नाव बन चुकी है और अब उस पर तारकोल का लेपन किया जा रहा है.

उन्होंने बताया, ’70 हजार रुपये में नाव तैयार हुई है. अब नदी के दूसरी तरफ अपने खेतों में काम पर जाने और फसल-चारे की ढुलाई में आसानी होगी.’

सिकरहट्ट-मंझारी तटबंध पर चलते हुए कई जगहों पर नई नावें बनती दिखीं. सभी ग्रामीण अपने प्रयासों से यह काम कर रहे हैं.

कोसी में हादसों को रोकने और लोगों की आवाजाही व खेतीबाड़ी के काम को आसान करने के लिए अधिक से अधिक नावों की सख्त जरूरत है, लेकिन सरकार ने इसके लिए कोई काम नहीं कर रही है.

कोसी प्रोजेक्ट के लिए तटबंध निर्माण के समय सरकार ने वादा किया था कि विस्थापित लोगों को तटबंध के अंदर अपने खेत तक आने-जाने के लिए पर्याप्त नौकाओं की व्यवस्था की जाएगी लेकिन आज तक यह व्यवस्था नहीं हो सकी है.

अब भी लोगों को तटबंध के अंदर अपने रिहाइश व खेतों तक जाने के लिए निजी नावें ही सहारा बनी हुई हैं. बाढ़ के समय भी प्रशासन पर्याप्त संख्या में नावों की तैनाती नहीं कर पता है.

बाढ़ के दिनों में और सामान्य दिनों में भी अपनी जरूरतों के लिए तटबंध के अंदर से निकटवर्ती बाजार, ब्लॉक, तहसील, जिला मुख्यालय के आना-जाना होता है.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


मनोज सिंह, http://thewirehindi.com/144199/bihar-supaul-kosi-river-embankment/


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