Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | बिरसा मुंडा : जिनके उलगुलान और बलिदान ने उन्हें 'भगवान' बना दिया

बिरसा मुंडा : जिनके उलगुलान और बलिदान ने उन्हें 'भगवान' बना दिया

Share this article Share this article
published Published on Nov 15, 2020   modified Modified on Nov 15, 2020

-सत्याग्रह,

महान उपन्यासकार महाश्वेता देवी के उपन्यास ‘जंगल के दावेदार’ का एक अंश :

सवेरे आठ बजे बिरसा मुंडा खून की उलटी कर, अचेत हो गया. बिरसा मुंडा- सुगना मुंडा का बेटा; उम्र पच्चीस वर्ष-विचाराधीन बंदी. तीसरी फ़रवरी को बिरसा पकड़ा गया था, किन्तु उस मास के अंतिम सप्ताह तक बिरसा और अन्य मुंडाओं के विरुद्ध केस तैयार नहीं हुआ था....क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की बहुत सी धाराओं में मुंडा पकड़ा गया था, लेकिन बिरसा जानता था उसे सज़ा नहीं होगी,’ डॉक्टर को बुलाया गया उसने मुंडा की नाड़ी देखी. वो बंद हो चुकी थी. बिरसा मुंडा नहीं मरा था, आदिवासी मुंडाओं का ‘भगवान’ मर चुका था.

आदिवासियों का संघर्ष अट्ठारहवीं शताब्दी से चला आ रहा है. 1766 के पहाड़िया-विद्रोह से लेकर 1857 के ग़दर के बाद भी आदिवासी संघर्षरत रहे. सन 1895 से 1900 तक बीरसा या बिरसा मुंडा का महाविद्रोह ‘ऊलगुलान’ चला. आदिवासियों को लगातार जल-जंगल-ज़मीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल किया जाता रहा और वे इसके खिलाफ आवाज उठाते रहे.

1895 में बिरसा ने अंग्रेजों की लागू की गयी ज़मींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-ज़मीन की लड़ाई छेड़ी थी. बिरसा ने सूदखोर महाजनों के ख़िलाफ़ भी जंग का ऐलान किया. ये महाजन, जिन्हें वे दिकू कहते थे, क़र्ज़ के बदले उनकी ज़मीन पर कब्ज़ा कर लेते थे. यह मात्र विद्रोह नहीं था. यह आदिवासी अस्मिता, स्वायतत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था.

आदिवासी और स्त्री मुद्दों पर अपने काम के लिए चर्चित साहित्यकार रमणिका गुप्ता अपनी किताब ‘आदिवासी अस्मिता का संकट’ में लिखती हैं, ‘आदिवासी इलाकों के जंगलों और ज़मीनों पर, राजा-नवाब या अंग्रेजों का नहीं जनता का कब्ज़ा था. राजा-नवाब थे तो ज़रूर, वे उन्हें लूटते भी थे, पर वे उनकी संस्कृति और व्यवस्था में दखल नहीं देते थे. अंग्रेज़ भी शुरू में वहां जा नहीं पाए थे. रेलों के विस्तार के लिए, जब उन्होंने पुराने मानभूम और दामिन-ई-कोह (वर्तमान में संथाल परगना) के इलाकों के जंगले काटने शुरू कर दिए और बड़े पैमाने पर आदिवासी विस्थापित होने लगे, आदिवासी चौंके और मंत्रणा शुरू हुई.’ वे आगे लिखती हैं, ‘अंग्रेजों ने ज़मींदारी व्यवस्था लागू कर आदिवासियों के वे गांव, जहां व सामूहिक खेती किया करते थे, ज़मींदारों, दलालों में बांटकर, राजस्व की नयी व्यवस्था लागू कर दी. इसके विरुद्ध बड़े पैमाने पर लोग आंदोलित हुए और उस व्यवस्था के ख़िलाफ़ विद्रोह शुरू कर दिए.’

बिरसा मुंडा को उनके पिता ने मिशनरी स्कूल में भर्ती किया था जहां उन्हें ईसाइयत का पाठ पढ़ाया गया. कहा जाता है कि बिरसा ने कुछ ही दिनों में यह कहकर कि ‘साहेब साहेब एक टोपी है’ स्कूल से नाता तोड़ लिया. 1890 के आसपास बिरसा वैष्णव धर्म की ओर मुड गए. जो आदिवासी किसी महामारी को दैवीय प्रकोप मानते थी उनको वे महामारी से बचने के उपाय समझाते. मुंडा आदिवासी हैजा, चेचक, सांप के काटने बाघ के खाए जाने को ईश्वर की मर्ज़ी मानते, बिरसा उन्हें सिखाते कि चेचक-हैजा से कैसे लड़ा जाता है. बिरसा अब धरती आबा यानी धरती पिता हो गए थे.

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


बिरसा मुंडा, https://satyagrah.scroll.in/article/107466/birsa-munda-ulgulan-story
 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close