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न्यूज क्लिपिंग्स् | आवरण कथा/ कोविड कहर : वो कौन गुनहगार है...

आवरण कथा/ कोविड कहर : वो कौन गुनहगार है...

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published Published on May 18, 2021   modified Modified on May 22, 2021

-आउटलुक,

“महामारी की भयंकर दूसरी लहर में बेबस लोग अस्पताल, ऑक्सीजन, दवाइयों के अभाव में बेमौत मरने को मजबूर, सारा ढांचा चरमराया, सत्ता के अपने खेल में मस्त लापरवाह सरकार की खुली पोल”

हर तरफ मौत, मायूसी, बेबसी जैसे पसरी हुई है। जो चंद दिनों पहले कोरोना पर विजय का दंभ भर रहे थे, वे किन्हीं छद्म के आवरणों में छुप गए हैं। किसी को कुछ सूझ नहीं रहा है। ऐसे मंजर की कभी किसी ने कल्पना तक नहीं की होगी। आगरा की वह हृदयविदारक तस्वीर याद कीजिए, जिसमें एक महिला अपने पति को अस्पताल में ऑक्सीजन न मिलने पर ऑटो में खुद मुंह से ऑक्सीजन देने लगी। लेकिन उसकी कोशिश काम नहीं आई और पति की मौत हो गई। वह तस्वीर भी आगरा की ही है, जिसमें एक बेटा (मोहित) एंबुलेंस न मिलने पर अपने बाप की अर्थी कार की छत पर बांधकर श्मशान घाट ले गया। ऐसी दिल दहलाने वाली सैकड़ों तस्वीरें हमारे सामने रोज आ रही हैं, लेकिन बदकिस्मती ऐसी कि यह सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। नीति आयोग की एक समिति ने मई में हर रोज 6 लाख नए मामलों के अनुसार प्लान बी बनाने का सुझाव दिया है। यानी संक्रमण कि सिलसिला मई में दोगुना हो सकता है।

भारत अब पूरी तरह से हेल्थ इमरजेंसी की गिरफ्त में है। फिर भी सरकार नकार के मूड में है, जैसे हर समस्या से निबटने का उसके पास एक ही तरीका है, सच्चाई छुपा दो और सच बोलने वालों को धमका दो। अपने इसी अभियान के साथ सरकार ने सोशल मीडिया से कई पोस्ट डिलीट करने के निर्देश जारी कर दिए हैं, लेकिन फेसबुक, ट्विटर से लेकर सभी प्लेटफॉर्म अस्पताल में लोगों की लाचारी, अंतिम संस्कार की तस्वीरें और वीडियो से भरे पड़े हैं। इन तस्वीरों में श्मशान का मंजर भी भयावह है। श्मशान में नंबर लगाना और पांच-छह घंटे इंतजार करना पड़ रहा है। दिल्ली के कृष्णानगर में रहने वाले हर्ष शर्मा को अपने दादा के दाह संस्कार के लिए 34 नंबर मिला था। घंटों बाद नंबर आया तो चिता पूरी तरह से शरीर को नहीं जला पाई।

इसी तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के प्रणव श्रीवास्तव आउटलुक से बिलखते हुए बताते हैं, ‘‘अपनी बुआ को दाह संस्कार के लिए श्मशान ले जाते वक्त मैंने जो मंजर देखा, वह किसी दुश्मन को भी देखना न पड़े। एक झटके में लोगों के परिवार तबाह हो रहे हैं। तकलीफ यह है कि इन नेताओं की लापरवाही का नतीजा हमें भुगतना पड़ रहा है।’’

देश के हर इलाके से ऐसी ही तस्वीरें और खबरें लगातार आ रही हैं। अस्पतालों के बाहर मृतकों के रोते-बिलखते परिवार, मरीजों से भरी एंबुलेंस की लंबी कतारें, लाशों से पटे मुर्दाघर, अस्पतालों के गलियारों में पड़े और एक बेड पर दो से तीन मरीज। अगर इस हाल में भी इलाज मिल पाता, तो लोग अपने को नसीब वाला मानते। लेकिन उनका तो जैसे नसीब ही रूठ गया। अस्पताल के बेड, कोविड की दवाइयां, ऑक्सीजन, यहां तक कि टेस्ट के रिजल्ट के लिए भी मारामारी मची हुई है। दवाइयों की कालाबाजारी हो रही है। नकली दवाइयां भी धड़ल्ले से बेची जा रही हैं।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


प्रशांत श्रीवास्तव, https://www.outlookhindi.com/story/careless-governments-amid-covid-epidemic-2971


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