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न्यूज क्लिपिंग्स् | भारत में कृषि क्षेत्र को सुधार की जरूरत, किसान आंदोलन की जीत से आगे बढ़कर नया घोषणापत्र बनाने का समय

भारत में कृषि क्षेत्र को सुधार की जरूरत, किसान आंदोलन की जीत से आगे बढ़कर नया घोषणापत्र बनाने का समय

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published Published on Dec 16, 2021   modified Modified on Dec 17, 2021

-द प्रिंट,

किसान आंदोलन की ऐतिहासिक जीत के साथ एक खतरा यह बंध गया है कि कहीं आंदोलन यथास्थितिवाद के गर्त में ना लुढ़क जाये. ऐसा ना तो इष्ट-अभीष्ट है और ना ही आंदोलन के लिए व्यावहारिक. हां, हमारे आंदोलन को यथास्थितिवाद के रसातल में ढकेलने का काम एक-दूसरे के विरोधी नजर आने वाले दो खेमों की तरफ से हो सकता है.

ऐसा एक खेमा बाजारवादी सुधारों के पैरोकार पंडितों का है जो अभी बौद्धिक और राजनीतिक बंजर-ऊसर में फंसकर अपनी सारी कुंठा किसानों पर निकाल रहा है. इस खेमे से यह खटराग सुनाया जा रहा है कि अब हमारे देश के कृषि-क्षेत्र को कोई सुधार नहीं सकता. वहीं इस खेमे के दूसरी तरफ देखें तो एक आशंका यह कचोटती है कि कहीं किसान आंदोलन के कुछ धड़े यह ना मान बैठें कि जो होना था सो हो गया और अब खेती-बाड़ी के मामलों को उसी ढर्रे पर चलना है जिसपर वे चलते आये हैं.

अगर ऐसा होता है तो फिर ये दिल तोड़ने वाली बात होगी.

सच ये है कि तीन कृषि कानूनों के अमल में आने के पहले हमारे देश में खेती-किसानी कोई बेहतर हालत में नहीं थी. तब भी कृषि-क्षेत्र आर्थिक, पारिस्थितिक और अस्तित्वगत संकट से घिरा था. तीन कृषि कानूनों ने ति-तरफा संकट से घिरे कृषि-क्षेत्र को विपदा के एक और जंजाल में फंसाना चाहा.

बेशक कानून निरस्त हो गये हैं लेकिन जो संकट पहले से चले आ रहे हैं वे अभी टले नहीं हैं. भारत में कृषि-क्षेत्र को हरचंद सुधार की जरूरत है लेकिन ये सुधार किसानों पर कहीं और से थोपे नहीं जाने चाहिए बल्कि ये सुधार किसानों की पसंद और जरूरत के मुताबिक होने चाहिए.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


योगेन्द्र यादव, https://hindi.theprint.in/opinion/celebrations-on-three-farm-laws-repeal-can-wait-time-to-write-new-manifesto-for-indian-agriculture/257115/


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