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न्यूज क्लिपिंग्स् | चौरी चौरा के सरकारी पुनर्पाठ के ज़रिये गांधी और उनकी अहिंसा को खारिज करने की कवायदें

चौरी चौरा के सरकारी पुनर्पाठ के ज़रिये गांधी और उनकी अहिंसा को खारिज करने की कवायदें

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published Published on Feb 25, 2021   modified Modified on Feb 26, 2021

-जनपथ,

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में ‘चौरी चौरा’ शताब्दी समारोह के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा  दिए गए सम्बोधन को भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के (हाल के दिनों में लोकप्रिय बनाए जा रहे) उस घातक पुनर्पाठ के रूप में देखा जा सकता है जो गांधी और उनकी अहिंसा को पूर्णरूपेण खारिज करता है। संघ परिवार और कट्टर हिंदुत्व की हिमायत करने वाली शक्तियों का गांधी विरोध जगजाहिर रहा है और अनेक बार यह तय करने में कठिनाई होती है कि इस विचारधारा के अनुयायियों को गांधी अधिक अस्वीकार्य हैं या उनकी अहिंसा। मोदी जी की वैचारिक पृष्ठभूमि निश्चित ही गांधी से उन्हें असहमत बनाती होगी। संभव है कि उन्होंने श्री सावरकर द्वारा लिखित ‘’गांधी गोंधळ’’ नामक पुस्तिका में संकलित उन निबंधों को भी पढ़ा हो जो गांधी और उनकी अहिंसा का उपहास उड़ाते हैं।

इन संभावनाओं के बावजूद हम यह भी अपेक्षा करते हैं कि गांधी को मुस्लिमपरस्त, क्रांतिकारियों से घृणा करने वाले, स्वतंत्रता-प्राप्ति में बाधक, ढुलमुल अंग्रेज हितैषी नेता के रूप में प्रस्तुत करने वाली जहरीली सोशल मीडिया पोस्टों से हम सब की ही तरह वे भी बतौर प्रधानमंत्री आहत अनुभव करते होंगे।

इसीलिए 4 फरवरी, 2022 को पूर्ण होने जा रही चौरी चौरा घटना की शतवार्षिकी से ठीक एक वर्ष पहले सालाना आयोजनों की श्रृंखला का एक शासकीय कार्यक्रम द्वारा शुभारंभ करते वक्‍त देश के प्रधानमंत्री को चौरी चौरा की हिंसा का खुला एवं सार्वजनिक समर्थन करते देखना आश्चर्यजनक था। इस बहाने अब आगामी एक वर्ष तक सरकार गांधी पर प्रच्छन्न- और शायद प्रकट रूप में भी- प्रहार कर सकेगी और इन कार्यक्रमों के माध्यम से हिंसा का महिमामंडन हो सकेगा।

प्रधानमंत्री जी ने गांधी और उनकी अहिंसा को खारिज करने के लिए भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के एक ऐसे प्रसंग का चयन किया है जिसमें गांधी के निर्णय की व्यापक आलोचना हुई थी। चौरी चौरा के थाने में 23 भारतीय पुलिसकर्मियों को आक्रोशित भीड़ द्वारा जिंदा जलाये जाने के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन रोक  दिया था। उस समय अधिकतर नेताओं को यह लग रहा था कि आंदोलन निर्णायक दौर में पहुंच रहा है और स्वाधीनता का लक्ष्य अब अत्यंत निकट है। इसके बाद प्रायः सभी नेताओं ने खुलकर गांधी की आलोचना की थी और अंत में जो सहमति बनी, उसके पीछे इन नेताओं का गांधी के प्रति आदरभाव था और शायद यह भय भी था कि गांधी की अपार लोकप्रियता के कारण उनसे असहमति इन नेताओं को अप्रासंगिक न बना दे।

प्रधानमंत्री जी ने अपने उद्बोधन में कहा-

सौ वर्ष पहले चौरी चौरा में जो हुआ, वो सिर्फ एक आगजनी की घटना, एक थाने में आग लगा देने की घटना नहीं थी। चौरी चौरा का संदेश बहुत बड़ा था, बहुत व्‍यापक था। अनेक वजहों से पहले जब भी चौरी चौरा की बात हुई, उसे एक मामूली आगजनी के संदर्भ में ही देखा गया लेकिन आगजनी किन परिस्थितियों में हुई, क्या वजहें थीं, ये भी उतना ही महत्वपूर्ण है। आग थाने में नहीं लगी थी, आग जन-जन के दिलों में प्रज्‍ज्‍वलित हो चुकी थी। चौरी चौरा के ऐतिहासिक संग्राम को आज देश के इतिहास में जो स्थान दिया जा रहा है, उससे जुड़ा हर प्रयास बहुत प्रशंसनीय है। मैं, योगी जी और उनकी पूरी टीम को इसके लिए बधाई देता हूं। आज चौरी चौरा की शताब्दी पर एक डाक टिकट भी जारी किया गया है। आज से शुरू हो रहे ये कार्यक्रम पूरे साल आयोजित किए जाएंगे। इस दौरान चौरी चौरा के साथ ही हर गाँव, हर क्षेत्र के वीर बलिदानियों को भी याद किया जाएगा। इस साल जब देश अपनी आजादी के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है, उस समय ऐसे समारोह का होना इसे और भी प्रासंगिक बना देता है।

चौरी चौरा, देश के सामान्य मानवी का स्वतः स्फूर्त संग्राम था। ये दुर्भाग्य है कि चौरी चौरा के शहीदों की बहुत अधिक चर्चा नहीं हो पायी। इस संग्राम के शहीदों को, क्रांतिकारियों को इतिहास के पन्नों में भले ही प्रमुखता से जगह न दी गई हो लेकिन आज़ादी के लिए उनका खून देश की माटी में जरूर मिला हुआ है जो हमें हमेशा प्रेरणा देता रहता है। अलग-अलग गांव, अलग–अलग आयु, अलग-अलग सामाजिक पृष्ठभूमि, लेकिन एक साथ मिलकर वो सब माँ भारती की वीर संतान थे। आजादी के आंदोलन में संभवत: ऐसे कम ही वाकये होंगे, ऐसी कम ही घटनाएं होंगी जिसमें किसी एक घटना पर 19 स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी के फंदे से लटका दिया गया। अंग्रेजी हुकूमत तो सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी देने पर तुली हुई थी, लेकिन बाबा राघवदास और महामना मालवीय जी के प्रयासों की वजह से करीब–करीब 150 लोगों को लोगों को फांसी से बचा लिया गया था। इसलिए आज का दिन विशेष रूप से बाबा राघवदास और महामना मदन मोहन मालवीय जी को भी प्रणाम करने का है, उनका स्‍मरण करने का है।

अपने पूरे उद्बोधन में गांधी का नामोल्लेख तक न करते हुए प्रधानमंत्री जी ने मालवीय जी की चर्चा अवश्य की जिन्हें श्री गोलवलकर गांधी से असहमत किंतु श्रद्धावश उनका विरोध न कर पाने वाले राजनेताओं में शुमार करते थे।

चौरी चौरा प्रकरण का एक पाठ इसे किसान विद्रोह के रूप में प्रस्तुत करता है। वर्तमान में जब देश भर में किसान आंदोलित हैं तब इन साल भर तक चलने वाले समारोहों के माध्यम से उन्हें यह अवश्य बताया जाएगा कि जिन किसान स्वतंत्रता सेनानियों की शहादत को गांधी और उनके अनुयायियों की कांग्रेस ने अनदेखा कर दिया था उन्हें सौ साल बाद मोदी सरकार ने सम्मान दिया। इसी बहाने यह भी जोड़ दिया जाएगा कि गांधी-नेहरू की जोड़ी द्वारा हाशिये पर डाली गई सरदार पटेल और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जैसी विभूतियों का उद्धार भी मोदी जी ने ही किया।

चौरी चौरा प्रकरण का एक पाठ और भी है। यह पाठ चौरी चौरा प्रकरण एवं बाद में इतिहास में उसके प्रस्तुतिकरण को भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में दलित एवं अल्पसंख्यक वर्ग की भूमिका को गौण बनाने वाले सवर्ण वर्चस्व के आदर्श उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करता है। कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि चौरी चौरा के उपेक्षित दलित और अल्पसंख्यक स्वाधीनता सेनानियों को सम्मानित कर मोदी-योगी सरकार आज की अपनी अल्पसंख्यक एवं दलित विरोधी दमनात्मक नीतियों से लोगों का ध्यान हटाने में सफलता प्राप्त कर लें। इसी बहाने यह चर्चा भी जोर पकड़ सकती है कि आंबेडकर को गांधी-नेहरू ने किनारे लगा दिया था, किंतु यह मोदी ही थे जिन्होंने आंबेडकर को उनका गौरवपूर्ण स्थान वापस दिलाया। प्रधानमंत्री जी प्रतीकों की राजनीति में निपुण हैं और अपनी असफलताओं एवं वर्तमान समस्याओं से ध्यान हटाकर लोगों को अतीतजीवी बनाए रखने का उनका कौशल अनूठा है।

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


डॉ. राजू पांडेय, https://junputh.com/open-space/chauri-chaura-centenary-celebrations-decoding-modi-speech/


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