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न्यूज क्लिपिंग्स् | कोविड-19 से मौतों के आंकड़े सही नहीं, तकनीकी आधार पर मुआवज़ा ख़ारिज न करें: सुप्रीम कोर्ट

कोविड-19 से मौतों के आंकड़े सही नहीं, तकनीकी आधार पर मुआवज़ा ख़ारिज न करें: सुप्रीम कोर्ट

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published Published on Feb 7, 2022   modified Modified on Feb 10, 2022

-द वायर,

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्यों द्वारा जारी किए गए कोविड-19 से हुईं मौतों संबंधी आधिकारिक आंकड़े ‘सच नहीं’ थे और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे उन मृतकों के परिजनों को मुआवजा प्रदान करें, जिन्होंने मुआवजे के लिए आवेदन दिया है और तकनीकी आधार पर उनके दावों को खारिज न करें.

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के मुताबिक, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि कोविड-19 से हुई मौत संबंधी आंकड़े सही और वास्तविक नहीं हैं और ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि कोविड-19 पीड़ितों के परिजनों द्वारा किए गए मुआवजे संबंधी आवेदन फर्जी हैं.

बहरहाल, द वायर साइंस  ने भी इस संबंध में एक रिपोर्ट में बताया था कि अगर एक मरीज को कोरोना संक्रमण है तो उसकी मौत का कारण उसकी अन्य बीमारियों को बताना बेहद मुश्किल है.

इसका एक कारण यह है कि कोविड-19 मौजूदा बीमारियों को जानलेवा बना सकता है, जैसा कि अधिकांश संक्रामक रोग करते हैं. फिर भी इस मानदंड के चलते देश में कोविड-19 से हुई मौतों की संख्या में कई मौतों को कोविड के तहत नहीं गिना गया.

हाल ही में महामारी विशेषज्ञ प्रभात झा ने द वायर  को बताया था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भारत के कोविड-19 मौतों संबंधी आंकड़ों पर भरोसा नहीं करता है क्योंकि भारत में अन्य देशों की तुलना में मौतों की संख्या को कम गिना गया है.

झा ने 6 जनवरी 2022 को प्रकाशित एक अध्ययन का भी हवाला दिया, जिसमें अनुमान लगाया गया था कि कोविड-19 के कारण भारत में मरने वालों की संख्या आधिकारिक आंकड़ों से छह गुना अधिक हो सकती है.

उल्लेखनीय है कि 2020 से ही ऐसी आशंकाएं हैं कि भारत में महामारी से मौतों को कम करके दिखाया गया है. अगस्त 2021 में द वायर  पर प्रकाशित रिपोर्टर्स कलेक्टिव की एक खोजी रिपोर्ट में गुजरात के मृत्यु रजिस्टर के डेटा के हवाले से बताया गया था कि उस समय तक राज्य में कोविड से मौत का आधिकारिक आंकड़ा रजिस्टर से मिले डेटा से 27 गुना कम था.

बहरहाल उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (एसएलएसए) के सदस्य सचिव के साथ समन्वय करने के लिए समर्पित नोडल अधिकारी नियुक्त करें, ताकि कोविड-19 से जान गंवाने वालों के परिजनों को अनुग्रह राशि का भुगतान किया जा सके.

पीठ ने राज्य सरकारों को एक सप्ताह के भीतर संबंधित राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास नाम, पता और मृत्यु प्रमाण-पत्र के साथ-साथ अनाथों के संबंध में पूर्ण विवरण उपलब्ध कराने का निर्देश दिया और कहा कि इसमें विफल रहने पर मामले को बहुत गंभीरता से लिया जाएगा.

शीर्ष अदालत ने दोहराया कि मुआवजे की मांग करने वाले आवेदनों को तकनीकी आधार पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए और यदि कोई तकनीकी गड़बड़ी पाई जाती है, तो संबंधित राज्यों को उन्हें त्रुटि ठीक करने का अवसर देना चाहिए क्योंकि कल्याणकारी राज्य का अंतिम लक्ष्य पीड़ितों को कुछ सांत्वना और मुआवजा प्रदान करना होता है.

इसने कहा कि राज्यों को दावा प्राप्त होने के 10 दिन की अधिकतम अवधि के भीतर पीड़ितों को मुआवजे का भुगतान करने के लिए सभी प्रयास करने चाहिए.

न्यायालय ने कहा कि इसने अपने पहले के आदेश में कहा था कि राज्य सरकारें अपने पोर्टल पर दर्ज कोविड-19 से संबंधित मौतों का पूरा ब्योरा देने के साथ ही उन व्यक्तियों का पूर्ण विवरण दें जिन्हें अनुग्रह राशि का भुगतान किया जा चुका है, लेकिन इसके बावजूद ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकतर राज्यों ने केवल आंकड़े दिए हैं और कोई पूर्ण विवरण नहीं दिया है.

पीठ ने कहा कि पूरा विवरण देने के पहले के आदेश का उद्देश्य कम से कम उन मामलों को देखना था, जो राज्य सरकारों के पास पंजीकृत हैं और जिनमें मुआवजे के लिए उपयुक्त अधिकारियों से संपर्क नहीं किया गया है.

पीठ ने कहा, ‘विधिक सेवा प्राधिकरण उन तक पहुंचेंगे और देखेंगे कि वे आवेदन करें और वे एक सेतु के रूप में कार्य करेंगे. इसी तरह अनाथों के संबंध में विवरण नहीं दिया गया है. हम सभी राज्य सरकारों को उनके नाम, पते, मृत्यु प्रमाण-पत्र आदि तथा अनाथों के संबंध में पूर्ण विवरण आज से एक सप्ताह के भीतर संबंधित राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को देने का निर्देश देते हैं. ऐसा नहीं करने पर मामले को बहुत गंभीरता से लिया जाएगा.’

शीर्ष अदालत ने कहा कि विधिक सेवा प्राधिकरण का प्रयास उन पीड़ितों तक पहुंचने का होगा, जिन्होंने अभी तक किसी भी कारण से संपर्क नहीं किया है.

पीठ ने कहा, ‘हम संबंधित राज्य सरकारों को एक समर्पित अधिकारी नियुक्त करने का भी निर्देश देते हैं, जो मुख्यमंत्री सचिवालय में उप-सचिव के पद से नीचे का नहीं हो, जो राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव के साथ लगातार संपर्क में रहेगा ताकि वह उसके साथ समन्वय कर सकें और यह देख सकें कि आवेदन पात्र व्यक्तियों से प्राप्त हुए हैं.’

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


द वायर, http://thewirehindi.com/203917/covid-19-deaths-data-not-correct-do-not-dismiss-compensation-on-technical-grounds-sc/


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